संयुक्‍त राष्‍ट्र को जितने चाहे उतने पत्र लिखे पाक, सच्‍चाई नहीं बदलेगी : भारत

संयुक्‍त राष्‍ट्र को जितने चाहे उतने पत्र लिखे पाक, सच्‍चाई नहीं बदलेगी : भारत

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप (फाइल फोटो)

खास बातें

  • पाकिस्‍तान को जम्मू कश्मीर के अंदरूनी हालात पर टिप्पणी करने का हक नहीं
  • इस्लामाबाद को आंतकवाद पर चर्चा करने के लिए एक प्रतिनिधि भेजना चाहिए
  • बिना सोचे समझे हस्तक्षेप सीमा पार से आतंकवाद है जिसमें पाकिस्तान लिप्त है
नई दिल्‍ली:

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र को एक और पत्र लिखे जाने को खारिज करते हुए भारत ने कहा कि ऐसा करने से यह सच्‍चाई नहीं बदलेगी कि इस्लामाबाद ने जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से को गैरकानूनी तरीके से तथा जबरन अपने कब्जे में कर रखा है और उसे घाटी के अंदरूनी हालात पर टिप्पणी करने का कोई हक नहीं है.


विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाने के लिए 22 सांसदों को विशेष दूत के तौर पर भेजने के पाकिस्तान के फैसले की आलोचना भी की. उन्होंने कहा कि इससे अच्छा होता कि एक दूत को सही संदेश के साथ सही देश भेजा जाता. उनका संकेत था कि इस्लामाबाद को सीमा पार से जारी आंतकवाद पर चर्चा करने के लिए एक प्रतिनिधि भेजना चाहिए.

उन्होंने कहा ‘‘वह जितने चाहें, उतने पत्र लिख सकते हैं लेकिन इससे वास्तविकता नहीं बदलेगी. वास्तविकता यही है कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से पर पाकिस्तान का गैरकानूनी तथा जबरन कब्जा है.’’ स्वरूप ने कहा, ‘‘जहां तक जम्मू कश्मीर के अंदरूनी हालात का सवाल है तो हम मानते हैं कि पाकिस्तान को इस पर टिप्पणी करने का कोई हक नहीं है और हम इससे निपटने में पूरी तरह सक्षम हैं.’’

संवाददाताओं ने उनसे नवाज शरीफ द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को एक माह में दूसरी बार पत्र लिख कर हस्तक्षेप करने की मांग किए जाने के बारे में पूछा था. नवाज ने बान की मून से एक तथ्यान्वेषी मिशन को जम्मू कश्मीर भेज कर घाटी में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन की जांच करने की मांग की है. कश्मीर मुद्दा उठाने के लिए विभिन्न देशों में दूत भेजने के शरीफ के फैसले पर स्वरूप ने कहा कि एक ही संदेश होगा कि सीमा पार से आतंकवाद को समर्थन रोका जाए, जम्मू कश्मीर में हिंसा के लिए उकसावा बंद किया जाए और भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने पर विराम लगे.

उन्होंने कहा, ‘‘22 दूतों को विभिन्न देशों में भेजने से उनके बेबुनियाद और असमर्थनीय दावे जायज नहीं हो जाएंगे. गलत संदेश के साथ गलत देशों में 22 दूतों को भेजने के बजाय एक दूत को सही संदेश के साथ सही देश में भेजना बेहतर होता.’’ चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के बारे में पूछने पर स्वरूप ने कहा कि यह पाकिस्तान के गैरकानूनी कब्जे वाले भारत के संप्रभु भूभाग से हो कर गुजरता है और जाहिर है कि वहां, ‘‘तीसरे पक्ष के सहयोग से बनने वाली किसी भी परियोजना को लेकर भारत को चिंता होगी ही.’’

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा था कि पाकिस्तान भी आतंकवाद का पीड़ित है. इस पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत ने यह नहीं कहा कि वह पीड़ित नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हम पूछ रहे हैं कि आतंकवाद किसने पैदा किया. यह एक असली मुद्दा है. जो चीज समझने की जरूरत है वह यह है कि अत्याचार कैसे शुरू हुआ.’’

स्वरूप ने कहा, ‘‘हमारे लिए असली मुद्दा यह है कि अच्छे और बुरे आतंकवाद के मध्य कोई अंतर नहीं होना चाहिए और केरी ने यह साफ तौर पर कहा है.’’ शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव को लिखे अपने पत्र में बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर मोदी की टिप्पणी को अवांछित और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के प्रतिकूल बताते हुए इसकी आलोचना की है. इस बारे में पूछने पर स्वरूप ने कहा कि दमन के शिकार लोगों का मुद्दा उठाना गलत नहीं हो सकता.

स्वरूप ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के जिन प्रस्तावों का शरीफ जिक्र कर रहे हैं वह इतिहास का हिस्सा हैं और उन्हें उठाने का कोई मतलब नहीं है. नयी वास्तविकताओं और नए संदर्भ में आगे बढ़ने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘अगर बात करें कि यह गलत है तो दुनिया के कई नेता कटघरे में आ जाएंगे. अगर हमें लगता है कि दुनिया के किसी हिस्से में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो हमें उस पर चिंता जाहिर करने का पूरा हक है. हम इन चिंताओं को उठाएंगे और अतीत में भी हम ऐसा करते रहे हैं.’’

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘बिना सोचे समझे हस्तक्षेप सीमा पार से आतंकवाद है जिसमें पाकिस्तान लिप्त है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘आतंकवादी बहादुर अली का पकड़ा जाना देश के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप का एक उदाहरण है जहां आप हथियारबंद लोगों को भेज रहे हैं और इसका एकमात्र उद्देश्य दूसरे देश में आतंक तथा नरसंहार करना है. यह वास्तविक हस्तक्षेप है और पाकिस्तान को इसे रोकने की जरूरत है.’’

स्वरूप ने कहा कि शिमला समझौता और वर्ष 1999 का लाहौर घोषणापत्र वह फ्रेमवर्क होना चाहिए जिसके दायरे में भारत पाकिस्तान के साथ आगे बढ़ना चाहता है. बलूच भाषा में आकाशवाणी की सेवाएं बढ़ाए जाने के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘बेशक, नयी सेवाएं जोड़ी जा सकती हैं या वर्तमान सेवाओं को मांग के आधार पर बढ़ाया जा सकता है.’’

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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