लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी की फाइल तस्वीर
भारत में आज भी इमरजेंसी का अंदेशा बचा हुआ है और मौजूदा राजनीतिक माहौल में ऐसे कवच नहीं दिख रहे जो इसे रोक सकें। इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जब ये बात कही तो राजनितिक गलियारों में हंगामा शुरू हो गया।
बीजेपी ने फौरन सफाई दी कि ये किसी नेता के खिलाफ़ इशारा नहीं है। हालांकि इस बयानबाज़ी में जैसे आडवाणी की बात की पुष्टि होने लगी। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने यहां तक कह दिया कि आडवीणी एक बुद्धिजीवी नेता हैं और उनकी बात पर विचार करने के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को पार्टी के 25-30 नेताओं की बैठक बुलानी चाहिये।
दरअसल इमरजेंसी के तीस साल पूरे होने से ठीक पहले इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक इंटरव्यू में आडवाणी ने कहा है - संवैधानिक और क़ानूनी सुरक्षा कवचों के बावजूद लोकतंत्र को कुचल सकने वाली ताक़तें फिलहाल मज़बूत हैं; ये भरोसा दिलाने वाला कोई क़दम नहीं दिखता कि फिर से नागरिक अधिकार ख़ारिज या मुअत्तल नहीं किए जाएंगे; मैं नहीं कहता कि राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है, लेकिन कमज़ोरियों के कारण भरोसा नहीं होता; भारतीय राजनीति में मुझे नेतृत्व के किसी विशिष्ट पहलू का भरोसा दिलाने वाले निशान नहीं मिलते।'
जानकार मानते हैं कि लाल कृष्ण आडवाणी ने इशारों में बीजेपी की मौजूदा लीडरशिप की क्षमता और उसके कामकाज के तरीके पर सवाल उठाए हैं। हालांकि वो ये मानते हैं कि पिछले चालीस साल में हालात बदले हैं और मौजूदा हालात में किसी भी पॉलिटिकल लीडरशिप के लिए मीडिया को नियंत्रित करना संभव नहीं होगा।
आडवाणी के इस बयान से बीजेपी के विरोधियों को सीधे सरकार पर हमला बोलने का मौक़ा मिल गया है। कांग्रेस नेता अजय माकन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली पर सवाल उठाऐ तो नीतिश कुमार ने कहा कि आडवाणी सबसे वरिष्ठ नेता हैं और उनके बयान को बेहद गंभीरता से लिया जाना चाहिये। जबकि सीपीएम महासचिव सीताराम येचूरी ने कहा कि उनकी पार्टी पहले से सरकार के तानाशाही रुख पर सवाल उठाती रही है।
इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर ये अंदेशा जताया है कि इमरजेंसी का पहला प्रयोग कहीं दिल्ली में तो नहीं हो जाएगा? बेशक, आडवाणी ने एक बड़ी बहस छेड़ी है और इसके घेरे में उनकी अपनी सरकार भी है जिस पर संस्थाओं को कमज़ोर करने का इल्ज़ाम है।