यह ख़बर 18 जून, 2011 को प्रकाशित हुई थी

पीएम को लोकपाल दायरे में लाने के खिलाफ है सरकार

खास बातें

  • सरकार ने शनिवार को कहा कि वह 'प्रथम दृष्टया' प्रधानमंत्री के पद को प्रस्तावित लोकपाल विधेयक के दायरे में लाने के खिलाफ है।
नई दिल्ली:

सरकार ने शनिवार को कहा कि वह 'प्रथम दृष्टया' प्रधानमंत्री के पद को प्रस्तावित लोकपाल विधेयक के दायरे में लाने के खिलाफ है लेकिन एक बार प्रधानमंत्री का पद छोड़ देने के बाद गलत कार्यों के लिए उन पर 'अभियोग' चलाया जा सकता है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, "सरकार के भीतर हम प्रथम दृष्टया यह महसूस करते हैं कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चाहिए।" सिब्बल ने कहा, "इसके साथ ही हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री द्वारा कार्यालय छोड़ देने पर उन्हें अभियोजन से मुक्त नहीं होना चाहिए।" ज्ञात हो कि केंद्र सरकार और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले सामाजिक कार्यकर्ता एक महीने से अधिक समय से प्रधानमंत्री, न्यायाधीशों और नौकरशाहों को लोकपाल के दायरे में लाने सहित कई 'बुनयादी मुद्दों' पर एक दूसरे पर शाब्दिक तीर छोड़ रहे हैं। 10 सदस्यों वाली मसौदा समिति में शामिल सरकार के नुमाइंदों में से एक सिब्बल ने हालांकि स्पष्ट किया कि विधेयक का मसौदा मंत्रिमंडल में जाने के बाद ही सरकार इस मुद्दे पर निर्णय लेगी। उन्होंने कहा कि यदि सामाजिक संगठन ठोस दलील दें तो समिति में शामिल पांच केंद्रीय मंत्री प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार निरोधी विधेयक के दायरे में लाने के लिए तैयार हो सकते हैं। मसौदा समिति में सरकार के सदस्य केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी समिति के सह-अध्यक्ष हैं। जबकि समिति में सरकार के अन्य सदस्य केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम, केंद्रीय कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली और केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद शामिल हैं। सिब्बल ने कहा कि यह 'एक व्यक्ति मनमोहन सिंह का सवाल नहीं है बल्कि यह एक संस्था का सवाल है।' उन्होंने दलील दी, "दुनिया में कहीं भी किसी प्रधानमंत्री पर पद पर रहते हुए उस पर अभियोग चलाया गया है? यदि ऐसा हुआ हो तो मुझे बताएं।"


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