यह ख़बर 10 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करना बड़ी चुनौती

खास बातें

  • पांच मंत्रियों और समाज के पांच प्रतिनिधियों वाली इस समिति के लिए विधेयक का प्रारूप तैयार करना नाकों चने चबाने जैसा काम साबित होने वाला है।
New Delhi:

लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने को लेकर सरकार और अन्ना हजारे की अगुवाई में समाज के बीच एक संतोषजनक समझौता हो गया। लेकिन पांच मंत्रियों और समाज के पांच प्रतिनिधियों वाली इस समिति के लिए विधेयक का प्रारूप तैयार करना नाकों चने चबाने जैसा कठिन काम साबित होने वाला है। संयुक्त समिति के समक्ष लोकपाल की शक्ति एवं स्वरूप, उसके अधिकार क्षेत्र, जांच और शिकायतों के निपटारे, कार्रवाई करने की क्षमता और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वालों को संरक्षण देने जैसे विषयों का समाधान ढूंढना चुनौतीपूर्ण रहने की संभावना है। विधेयक का प्रारूप 30 जून तक तैयार करके उसे संसद के मॉनसून सत्र में पेश करना है। समिति गठित होने से पहले लोकपाल विधेयक के संबंध में सरकार ने जो प्रारूप बना रखा है, उसके अनुसार आम जनता से शिकायत प्राप्त होने पर भी लोकपाल स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई शुरू नहीं कर सकते हैं। वहीं, समाज के प्रस्ताव में कहा गया है कि लोकपाल को स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने का अधिकार होगा और उसे किसी से इस संबंध में अनुमति प्राप्त करने की जरूरत नहीं होगी। लोकपाल विधेयक के मसौदे पर इन महत्वपूर्ण चुनौतियों के बावजूद हालांकि, प्रसिद्ध अधिवक्ता तथा संयुक्त समिति के सह अध्यक्ष शांति भूषण ने उम्मीद जताई है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाला यह विधेयक आम सहमति से पारित हो जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित निकाय पूर्णत: निष्पक्ष होगा, जिस पर कोई राजनीतिक दल या न्यायापालिका से जुड़ा कोई व्यक्ति दबाव नहीं डाल सकेगा। सरकार के प्रस्ताव में कहा गया है कि लोकपाल के दायरे में सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री ही आएंगे। लेकिन विदेश, सुरक्षा और रक्षा मामलों में प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच नहीं की जा सकेगी। भ्रष्टाचार से जुड़े अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के मामलों को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) और लोकपाल दोनों इन मामलों को देखेंगे। उधर, हजारे की ओर से तैयार प्रस्ताव में कहा गया है कि लोकपाल के दायरे में राजनीतिज्ञ, अधिकारी और न्यायाधीश सभी आएंगे। सीवीसी और सम्पूर्ण सरकारी सतर्कता तंत्र लोकपाल में समाहित होगा। सरकार के प्रस्ताव के अनुसार, लोकपाल चयन समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद के दोनों सदनों के नेता, दोनों सदनों में विपक्ष के नेता, विधिमंत्री और गृहमंत्री होंगे, जबकि समाज के प्रस्ताव में कहा गया है कि चयन समिति में न्यायिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, नोबेल एवं मैगसायसाय जैसे पुरस्कार प्राप्त लोग शामिल हों। समाज के प्रस्ताव में कहा गया है कि लोकपाल को भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने और उन्हें बर्खास्त करने का अधिकार होगा। लोकपाल को न्यायाधीशों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करने का अधिकार होगा। वहीं, सरकार के प्रस्ताव के अनुसार, लोकपाल के दायरे में नौकरशाह और न्यायाधीश सीधे नहीं आएंगे।


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