यह ख़बर 09 दिसंबर, 2011 को प्रकाशित हुई थी

लोकपाल का मसौदा पेश, टीम अन्ना नाराज

खास बातें

  • रिपोर्ट में लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की अनुशंसा की गई है जबकि प्रधानमंत्री को इसके दायरे से रखने का मसला संसद पर छोड़ दिया गया है।
New Delhi:

लोकपाल विधेयक पर बहुप्रतीक्षित संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में पेश कर दी गई। रिपोर्ट में लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की अनुशंसा की गई है जबकि प्रधानमंत्री को इसके दायरे से रखने का मसला संसद पर छोड़ दिया गया है। टीम अन्ना ने रिपोर्ट को निर्थक करार देते हुए अनशन का संकेत दिया है। मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी संसद की स्थायी समिति की ओर से तैयार किए गए विधेयक के मसौदे का यह कहकर विरोध किया है कि इसमें राजनीतिक भावना का अभाव है। समिति में शामिल 30 सदस्यों में से 10 सदस्यों ने विभिन्न मुद्दों पर असहमति नोट दिया है। कांग्रेस सांसद और स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी ने राज्यसभा में विधेयक का मसौदा पेश किया। उन्होंने कहा कि समिति ने समूह 'ए' और 'बी' के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में रखने की अनुशंसा की है, जबकि समूह 'सी' और 'डी' के कर्मचारियों मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) के दायरे में रखने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा, "समूह 'सी' के कर्मचारियों को सीवीसी के तहत रखा गया है, जो एक संवैधानिक इकाई है। लोकपाल को इससे बड़ी संवैधानिक इकाई का दर्जा देते हुए इसके दायरे में समूह 'ए' और 'बी' के अधिकारियों को रखा गया है।" उन्होंने कहा कि समिति ने 24 मुद्दों पर चर्चा की और उनमें से 13 पर सहमति बनी। असंतोष के अधिकतर नोट (13) समूह 'सी' के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने को लेकर था। सिंघवी ने कहा, "समिति राजनीतिक मंच नहीं है। कोई भी व्यक्तिगत तौर पर असंतोष नोट दे सकता है और यह रिपोर्ट में परिलक्षित होता है।" उन्होंने कहा कि एक अन्य विवादास्पद मुद्दा प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने को लेकर था, जिसे संसद पर छोड़ दिया गया है। समिति ने इस सम्बंध में तीन राय व्यक्त की है- प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा जाए, नहीं रखा जाए और उन्हें शामिल करने का फैसला स्थगित कर दिया जाए। समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि संसद में सांसदों के भाषण एवं आचरण को लोकपाल के दायरे में न रखा जाए। न्यायपालिका को इसके दायरे से बाहर रखने की अनुशंसा की गई है। सिटिजन चार्टर की मांग के समाधान के लिए एक विधेयक लाने की सिफारिश की गई है। साथ ही लोकपाल को गलत शिकायतों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का अधिकार देने की अनुशंसा भी की गई है। समिति ने लोकपाल के दायरे में कॉर्पोरेट, गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और मीडिया को लाने की सिफारिश की है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रहे अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक के सरकार के कमजोर मसौदे के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस विधेयक के प्रति गम्भीर हैं। अन्ना हजारे ने कहा, "सरकार द्वारा तैयार इस कमजोर विधेयक के पीछे राहुल गांधी हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री ने मुझे लिखित में प्रभावी लोकपाल का आश्वासन दिया था और संसद में प्रस्ताव भी पारित किया गया था।" उन्होंने समाचार चैनलों से कहा, "प्रधानमंत्री लोकपाल विधेयक के प्रति गम्भीर दिखते हैं, अन्यथा वह संसद में तीन प्रस्ताव पारित होने के बाद लिखित आश्वासन नहीं देते।" टीम अन्ना समूह-सी और डी के सरकारी कर्मचारियों, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने और रिपोर्ट में सिटिजन चार्टर का उल्लेख न होने से नाराज है। वहीं, भाजपा ने कहा है कि रिपोर्ट में 'राजनीतिक भावना' का अभाव है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने कहा, "मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि यह रिपोर्ट एक वकील के मसौदे की तरह है जिसमें राजनीतिक एवं प्रशासनिक भावना नहीं है।" भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता डी. राजा ने दलील दी कि सभी सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना सम्भव नहीं होगा। साथ ही उन्होंने सामाजिक संगठनों द्वारा तैयार लोकपाल विधेयक के अन्य मसौदों पर चर्चा करने की मांग की। सिंघवी ने विपक्षी दलों की आलोचनाओं का जवाब देते हुए कहा, "हमारा काम सभी को अथवा किसी एक को खुश करना नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि यह रिपोर्ट पूरे देश का भला करेगी।"


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