मैगसायसाय अवार्ड विजेता बेजवाड़ा बोले - लोगों द्वारा मैला उठाने के काम को पूरी तरह बंद कराना मेरा लक्ष्य

मैगसायसाय अवार्ड विजेता बेजवाड़ा बोले - लोगों द्वारा मैला उठाने के काम को पूरी तरह बंद कराना मेरा लक्ष्य

बेजवाडा विल्सन

खास बातें

  • बचपन से देख रहे थे उनके माता-पिता दूसरे का मैला उठाने का काम कर रहे हैं
  • माता-पिता जो काम कर रहे थे वह गलत है, यह काम उनकी मर्यादा के खिलाफ है
  • इस काम के बारे में माता-पिता को समझाने के लिए छह साल लग गए
नई दिल्ली:

“अगर में इस समुदाय से नहीं होता तब भी मैं इसके खिलाफ आवाज़ उठाता, अगर दुनिया में किसी भी जगह इस तरह का काम होता और मुझे पता चलता तब भी मैं इसके खिलाफ आवाज़ उठाता। मैं यह देख नहीं सकता कि लोग दूसरे का मैला उठा रहे हैं। यह कहना है बेजवाड़ा विलसन का। बेजवाड़ा विलसन को काफी कम लोग जानते हैं। उनके काम को लेकर कभी ज्यादा चर्चा भी नहीं हुई, लेकिन आज बेजवाड़ा चर्चा में है क्योंकि उन्हें मैगसायसाय अवार्ड मिला है। इसे एशिया का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है।

अवार्ड मिलने के बाद एनडीटीवी ने बेजवाड़ा से बात की। बेजवाड़ा ने ऐसी कई दिलचस्प बात बताई जिसे जानकर लोग हैरान हो जाएंगे। बेजवाड़ा ने बताया कि बचपन से देख रहे थे कि उनके माता-पिता दूसरे का मैला उठाने का काम कर रहे हैं। फिर बेजवाड़ा जब 16 साल के हो गए तब उन्होंने यह महसूस किया कि उनके माता-पिता जो काम कर रहे हैं वह गलत है, यह काम उनकी मर्यादा के खिलाफ है।

बेजवाड़ा ने अपने माता-पिता को समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उनके माता-पिता यह बात समझने के लिए तैयार नहीं थे। उनके माता-पिता को यह लगता था कि वह दलित समुदाय में पैदा हुए हैं और उनको यह काम ही करना है।

बेजवाड़ा ने एक और चौंकाने वाला खुलासा भी किया। उन्होंने बताया कि जब शिक्षा खत्म करने के बाद वह रोज़गार केंद्र में अपना नाम रजिस्टर कराने पहुंचे तब उन्हें भी उनके माता-पिता की तरह दूसरों के मैला साफ़ करने के काम करने के लिए सलाह दी गई।

यह परिवर्तन का क्षण था। बेजवाड़ा को यह एहसास हुआ कि जिस देश से वह प्यार करते हैं वहां कितना भेदभाव है। यहीं से बेजवाड़ा को कुछ बदलाव लाने की अलख जगी। 1982 में बेजवाड़ा ने कुछ युवाओं के साथ मिलकर लोगों को समझाने का काम शुरू किया। अपने समुदाय के लोगों को यह एहसास कराने की कोशिश की कि वह जो कर रहे हैं वह गलत है।

बेजवाड़ा ने यह भी बताया कि इस काम के बारे में समझाने के लिए खुद उनको छह साल लग गए और उनको पता चला कि सिर्फ दलित समुदाय के लोग यह काम कर रहे हैं और उनको यह काम करने के लिए मजबूर भी किया जा रहा है। बेजवाड़ा ने बताया कि 1982 में करीब 20 लाख दलित यह काम कर रहे थे जिनमें से 80 प्रतिशत महिलाएं थीं।

सबको समझाना मुश्किल हो रहा था। लेकिन बेजवाड़ा हार मानने वाले नहीं थे, वह अपनी आवाज़ उठाते रहे फिर धीरे-धीरे सब बदलने लगा। उनके माता-पिता भी मान गए। फिर बेजवाड़ा अपने पड़ोसी को समझाने लगे, अपने रिश्तेदारों को समझाने लगे, धीरे-धीरे यह बात आगे बढ़ती गई। लोगों को यह एहसास हुआ कि यह उनका काम नहीं है और न ही वह इस काम के लिए पैदा हुए हैं। वह पढ़-लिख कर दूसरे काम भी कर सकते हैं।

फिर बेजवाड़ा ने सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाना शुरू किया, सरकार को इस काम के खिलाफ कानून बनाने के लिए सलाह देते रहे और सरकार मान गई। 1993 ने सरकार के तरफ से कानून भी बनाया गया। इस कानून में ऐसा करवाने पर एक साल का सजा का प्रावधान भी है।

1993 में बेजवाड़ा ने सफाई कर्मचारी आंदोलन शुरू किया जिसमें कई युवा जुड़े। इस आंदोलन का मुख्य मकसद लोगों द्वारा मैला साफ करने वाले काम को पूरी तरह बंद करना।


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