महाराष्ट्र : एसटी/एसटी छात्रों की स्कॉलरशिप में हजार करोड़ रुपये का गबन, पांच आरोपी गिरफ्तार

गढ़चिरौली:

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों की छात्रवृत्ति के गबन का बड़ा मामला सामने आया है। मामले में गढ़चिरौली की लोकल क्राइम ब्रांच ने अभी तक नौ शिक्षण संस्थाओं के खिलाफ मामला दर्ज कर पांच लोगों को गिरफ्तार किया है।

एक अनुमान के मुताबिक, यह घोटाला हज़ारों करोड़ का है और इसमें कई बड़े अधिकारी और नेता शामिल हो सकते हैं। दरअसल अनुसूचित-जाति, जनजाति के इन बच्चों को पढ़ाई के लिए सरकार वजीफा देती है, जिसकी आड़ में महाराष्ट्र के कई ज़िलों में हजारों करोड़ के फर्ज़ीवाड़े का खेल शुरू हुआ। बच्चों के नाम पर फर्जी एडमिशन लिए गए। आरोप है कि वजीफे की रकम इन संस्था के संचालकों ने हड़प ली।

मामले की जांच में जुटे गढ़चिरौली लोकल क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर रविंद्र पाटिल ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि गढ़चिरौली में जो संस्थापक हैं, उन्होंने फर्जी फॉर्म इकट्ठा किए, एजेंट बनाए और घर पर जाकर खेती में काम करने वाले, मज़दूरी करने वाले ऐसे बच्चों के फॉर्म इकठ्ठा किए, उनका ऑनलाइन फॉर्म खुद उन्होंने भरा, साइन किए और फॉर्म जमा किए, 300 बच्चों का फॉर्म भर कर उनका पैसा कॉलेज के एकाउंट से ले लिया। यही नहीं तय संख्या से ज्यादा 300 और बच्चे जो अनुसूचित जाति, डीटीएनटी और ओबीसी वर्गों से आते थे, उनके लिए भी समाज कल्याण विभाग से स्कॉलरशिप ली।

पाटिल के मुताबिक, यह घोटाले पिछले कई वर्षों से जारी है, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कुछ लोग फर्जी संस्थाएं खड़ी कर पिछले चार साल से करोड़ों की स्कॉलरशिप हड़प चुके हैं।

हमने जब जानना चाहा तो पता लगा कि यूजीसी से मान्यता प्राप्त संस्था से तकनीकी शिक्षा लेने वाले हर एससी-एसटी छात्र पर महाराष्ट्र सरकार 48000 रुपये सालाना खर्चती है, जिसमें 2300 रुपये छात्र के खाते में जमा होते थे, 9000 रुपये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञानमंडल के खाते में, जबकि बाकी के तक़रीबन 35,000 रुपये संस्था के खाते में। लेकिन जब कुछ चेक वापस आने लगे, तो प्रशासन को शक हुआ और मामले की जांच शुरू हुई तो हज़ारों करोड़ के इस घोटाले की परतें खुलने लगीं।

पुलिस को लगता है कि मामले में कई सरकारी अधिकारियों की मिली भगत हो सकती है। पाटिल कहते हैं, 'इसमें सरकारी कर्मचारियों की मिली भगत हो सकती है, क्योंकि फर्ज़ी कागज़ातों के बिना पर करोड़ों रुपये नहीं निकाले जा सकते। इन संचालकों ने वर्धा, चंद्रपुर, गोंदिया और भी कई ज़िलों में ऐसे ही कॉलेज वहां बनाए हैं, हमने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, आगे की जांच शुरू है।

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इस योजना के तहत वर्धा की एक संस्था ने पुणे की एक संस्था के साथ मिलकर राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ज्ञानमंडल की स्थापना की थी। साल 2010 में ज्ञानमंडल ने पूरे राज्य में 262 स्टडी सेंटर को मान्यता दी, जो 2-3 कमरों में चलते थे, ज्यादातर सेंटरों में प्रिंसिपल से लेकर चपरासी तक एक ही शख्स था।

पुलिस ने अभी तक 9 संस्थाओं के फर्जीवाड़े को उजागर करके कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन उसे शक है कि सभी 262 संस्थाएं फर्जी हो सकती हैं और इन्हें चलाने में सरकारी तंत्र में बैठे बड़े सफेदपोश शामिल हो सकते हैं।