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अहमदाबाद:
गुजरात सरकार के अन्न और नागरिक आपूर्ति विभाग ने गरीबी की नई परिभाषा जारी की है। इसके मुताबिक ग्रामीण इलाकों में जिस परिवार के हर सदस्यों की मासिक आमदनी 324 रुपये तक है, वे गरीब नहीं हैं, जबकि शहरों में 501 रुपये हर महीने कमाने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है।
इसका मतलब है कि ग्रामीण इलाकों में 10 रुपये 80 पैसे प्रतिदिन कमाने वाला और शहरों में 17 रुपये प्रति दिन कमाने वाला गरीब नहीं हो सकता। यह सारी जानकारी गुजरात सरकार के अन्न और नागरिक आपूर्ति विभाग की वेबसाइट पर डाली गई है।
वेबसाइट में लिखा गया है कि गरीबी रेखा के नीचे आने के अन्य नियमों के अलावा अगर गांवों में किसी आदमी की आमदनी 324 रुपये और शहरों में 501 रुपये महीने से कम है, तो वह बीपीएल की सुविधाओं को लेने का हक रखता है।
खास बात यह है कि केंद्र सरकार की तरफ से जारी गरीबी की परिभाषा की भाजपा ने पहले जमकर आलोचना की थी। इससे पहले भी योजना आयोग की तरफ से यह कहा गया था कि ग्रामीण इलाकों में 26 रुपये प्रति दिन कमाने वाले गरीब नहीं हैं।
इसके बाद कांग्रेस नेता राज बब्बर ने मुंबई में 12 रुपये में, जबकि रशीद मसूद ने दिल्ली में पांच रुपये में भरपेट भोजन मिलने का बयान दिया था, जिसकी बड़ी तीखी आलोचना हुई थी। खुद गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी भी अपनी रैलियों में गरीबी के इस मानक का मजाक उड़ाते देखे गए हैं।
खुद हाल के महीने में नरेंद्र मोदी ने कानपुर की रैली में कहा था कि भारत का योजना आयोग जिसकी अगुवाई प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री करते हों, वहां से कहा गया है कि 26 रुपये हर दिन कमाने वाला गरीब नहीं…अगर यह आंकड़ा सही है तो भगवान ही इस देश को बचा सकता है…