घूस नहीं दिया तो 22 सालों से डीडीए में घिस रहे हैं चप्पल

नई दिल्‍ली:

22 सालों में मेरी मां गुजर गई, पिता चल बसे, भाई का देहांत हो गया, पत्नी नहीं रही। अब लगता है मेरे मरने के बाद ही कुछ होगा। कभी आंखें डबडबा जातीं, तो कभी बेकाबू हुए आंसूओं को रुमाल से पोंछने लगते। 82 साल के राजपाल मेहरा को डीडीए ऐसे ही बीते 22 सालों से रुला रहा है।

मामला पिता की संपत्ति चार भाइयों के नाम पर करने का है जिसे लेकर राजपाल ने 1993 में आवेदन किया था। लेकिन डिमांड रिश्वत की हुई जो इन्हें गंवारा नहीं। लिहाजा मामला आजतक अटका है। राजपाल बताते हैं कि शुरू में 10 हजार रुपये रिश्वत की मांग डीडीए के कर्मचारी ने की थी। मैंने कहा रिश्वत नहीं दूंगा तो सजा अब तक मिल रही है।
 
म्यूटेशन यानी नाम दर्ज कराने के इस मामले को लेकर शुरू के 6 सालों तक तो डीडीए यूं ही खामोश बैठा रहा और 1999 में राजपाल ने जब ये मामला डीडीए उपाध्यक्ष के जनता दरबार में उठाया तो घर पर डीडीए से चिट्ठियां आने का सिलसिला शुरू हुआ जिसमें सारे दस्तावेज फिर से जमा कराने को कहा गया। अब जाकर आरटीआई के एक जवाब में डीडीए ने माना है कि विभाग से गलती हुई है।

इतना ही नहीं डीडीए में सचिव के एडवाइजर प्रिंसिपल कमिश्नर रहे विश्वमोहन बंसल ने 2009 में ही कहा था कि आखिर इस मामले में वक्त क्यों लग रहा है। इसका जवाब बंसल साहब को भी रिटायर होने के पांच साल बाद तक नहीं मिला। विश्वमोहन बंसल कहते हैं कि बाप से संपत्ति बेटों को जानी है और बराबर-बराबर जानी है। किसी को कोई दिक्कत नहीं तो फिर विभाग को क्या दिक्कत है।

अब जब ये मामला एनडीटीवी ने डीडीए के उपाध्यक्ष के सामने रखा तो वे भी हैरान रह गए कि सारे दस्तावेजों की मौजूदगी में इतनी देर कैसे हो गई। डीडीए उपाध्यक्ष बलविन्दर कुमार ने भरोसा दिलाया है और कहा है कि आप उनको हमारे पास भेज दीजिए, अगर सब कागज ठीक हैं तो फिर हम हाथों हाथ म्यूटेशन का काम कर देंगे।

ये पूरा मामला श्रीलाल शुक्ल के रागदरबारी के लोकप्रिय किरदार लंगड़ की याद दिला जाता है जो नकल के लिए चौदह सालों तक धर्मयुद्ध लड़ता है, लेकिन डीडीए और राजपाल की ये लड़ाई उससे भी कहीं लंबी खिंच गई लेकिन अभीतक अधर्म भारी पड़ा है।

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