यह ख़बर 07 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

मांझी की चिंता, योजना आयोग खत्म कर कहीं पूंजीपतियों के ज़िम्मे विकास छोड़ने की मंशा तो नहीं

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

योजना आयोग की जगह एक वैकल्पिक संस्था बनाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री के घर हुई बैठक में यूं तो कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने सुझाव और विचार रखे। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपनी बातों के ज़रिए एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया।

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री के योजना आयोग के अस्तित्व पर पुनर्विचार संबंधी भाषण से आम जनता में ये धारणा फैली है कि सरकार देश में योजना की प्रक्रिया छोड़ना चाहती है और विकास को बाज़ारी शक्तियों के और पूंजीपतियों के ज़िम्मे छोड़ देना चाहती है।

मांझी ने अपने वकत्व में प्रधानमंत्री की संबोधित करते हुए आगे कहा कि जिस प्रकार से इस बैठक के एजेंडा एवं स्वरूप की सूचना दी गई है उससे यह लगता है कि आपने इस विषय पर अपना मन बना लिया है और राज्य यहां मात्र मुहर लगाने के लिए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही यह मंशा जता दी थी कि वह योजना आयोग को ख़त्म करना चाहते हैं और उसकी जगह एक ज्यादा प्रभावी संस्था बनाना चाहते हैं। सरकार लगतार इस क़वायद में जुटी है। इसी सिलसिले में आज देश भर के मुख्यमंत्रियों की बैठक ली गई। बैठक के बाद के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ज्यादातर मुख्यमंत्री आयोग को ख़त्म कर नई संस्था बनाने के पक्ष में हैं। जेटली ने प्रधानमंत्री के हवाले से कहा कि ज्यादातर विकसित देशों में सरकार के ढ़ांचे से बाहर के थिंक टैंक बड़ी भूमिका निभाते हैं।

दरअसल सरकार का मानना है कि योजना आयोग अपनी ज़िंदगी जी चुका है। बदले वक्त में सरकारी योजनाओं के अलावा निजी कंपनियों का भी विकास के काम में बड़ा योगदान होता है। योजना बनाने में उनको साथ लिए बिना देश का समग्र विकास संभव नहीं। इसलिए एक ऐसी संस्था हो जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के नुमाइंदे तो हो हीं, सरकार से इतर महत्वपूर्ण व्यक्तियों को भी इसका हिस्सा बनाया जाए।

लगता है कि सरकार के इसी ख्याल को मांझी पूंजीपतियों और बाज़ारवादी शक्तियों के बढ़ावे से जोड़ कर देख रहे हों। हालांकि ये भी एक बड़ा सच है कि 1950 में बना योजना आयोग देश को विकास के उस मुकाम तक ले जाने में नाकाम साबित हुआ जिसकी देश को ज़रूरत है। ऐसे में मोदी की नई पहल से कई मुख्यमंत्रियों को उम्मीद की एक नई रौशनी भी दिखती है।

बैठक में कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने राज्य की ज़रूरतों के हिसाब से केंद्र को नीति तय करने की मांग की। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योजना बजट से राज्य को मिलने वाली हिस्सेदारी के कमतर होने पर चिंता जतायी और मांग की कि इसका कम से कम 50 फीसदी हिस्सा राज्य को एकमुश्त तौर पर मिले। वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम की तरफ से सुझाव आया कि कैश सब्सिडी को लोगों के खाते में राज्य सरकारों के ज़रिए ही ट्रांसफर किया जाना चाहिए।

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बैठक में ममता बनर्जी और उमर अब्दुल्ला अपनी-अपनी वजहों से नहीं पहुंचे। ये दोनो चाहे जो संदेश देना चाहते हों लेकिन हक़ीकत यह है कि संघीय ढांचे के तहत राज्य को मदद के लिए केंद्र के पास आना ही पड़ता है। ऐसे में केंद्र की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए उन्हें भी यहां आकर अपनी बात मज़बूती से रखनी चाहिए थी ताकि कल को शिकायत की नौबत न आए।