बदली हुई रणनीति से माओवादियों पर भारी पड़ती सीआरपीएफ

बदली हुई रणनीति से माओवादियों पर भारी पड़ती सीआरपीएफ

नई दिल्‍ली:

माओवादियों के खिलाफ सीआरपीएफ की बदली हुई रणनीति ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। अब सीआरपीएफ ने पहले की तरह हर इलाके में दबदबे यानी कि एरिया डोमिनेट करना लगभग छोड़ दिया है। जहां उसे पक्की खबर या फिर खुफिया जानकारी मिलती है वहीं अपनी कार्रवाई करती है। वो भी सोची समझी रणनीति के तहत।

 

वैसे नक्सल विरोधी अभियान में लगे सुरक्षा बलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इलाके में बिछाये गये लैंड माइन हैं। सुरक्षा बलों पर 40 फीसदी हमला माओवादी इन्हीं छुपे आइईडी की बदौलत ही कर पाते हैं। हमले में इस्तेमाल आइईडी के बदौलत ही सीआरपीएफ के जवान बड़ी संख्या में हताहत होते हैं।
 

सीआरपीएफ के मुताबिक इस साल सितंबर तक 31 माओवादी मारे जा चुके हैं जबकि पिछले साल ये संख्या 24 थी। पिछले साल की तुलना में इस बार माओवादी हमलों में सिर्फ दो जवान शहीद हुए हैं जबकि 2014 में ये आंकड़ा 50 के करीब था। माओवाद प्रभावित इलाकों में 85 बटालियन यानी करीब 85 हजार जवान तैनात हैं।
 

पिछले साल इनसे करीब 31 हथियार माओवादी लूटने में सफल हुए थे लेकिन इस साल महज एक पिस्टल ही लूट पाए। इतना ही नहीं, पिछले साल जहां 233 माओवादियों ने सरेंडर किया था। वहीं इस साल अब तक 377 नक्सली हथियार डाल चुके हैं।
 

सीआरपीएफ के अनुसार माओवादियों के साथ मुठभेड़ में अब उनकी हताहतों की संख्या काफी कम हो गई है। ये सब नई और सोची समझी रणनीति की वजह से हो रहा है। कोई भी ऐसा दिन नहीं होता है जब दोनों तरफ से गोलाबारी ना हो, पर अब हालात बदल चुके हैं। बावजूद इसके नक्सली इलाकों में आइईडी सीआरपीएफ के लिये चिंता का सबसे बड़ा कारण है।
 

पिछले साल जहां 904 आइईडी हमले हुए थे, इस साल सितंबर तक ही 1303 हमले हो चुके हैं। छतीसगढ़ को छोड़कर बाकी सभी प्रभावित राज्यों में सीआरपीएफ को नक्सलियों को लेकर खुफिया जानकारी मिल रही है जिससे उनके खिलाफ कार्रवाई करना अब आसान हो गया है।
 

सीआरपीएफ के मुताबिक छतीसगढ़ के बस्तर इलाके में ये समस्या सबसे ज्यादा गंभीर है क्योंकि बस्तर तेलंगाना, ओडिशा और महाराष्ट्र की सीमा से जुड़ा है। इस इलाके में सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। अकेले छतीसगढ़ में करीब 600 हार्डकोर नक्सली सक्रिय हैं जो सीआरपीएफ के लिये सबसे बड़ी चुनौती है।

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