ऐसे हज़ार इंटरव्यू हों ताकि बलात्कारी के मनोविज्ञान को समझा जा सके : केटीएस तुलसी

नई दिल्ली:

हंगामे पहले राज्यसभा में हुआ। सदन को 11 बज कर 36 मिनट तक स्थगित करना पड़ा। सदन की कार्यवाही जब फिर शुरु हुई तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सरकार का पक्ष रखा। कहा कि किसी भी क़ीमत पर डॉक्यूमेंटरी को प्रसारित नहीं होने देंगे। सरकार हर तरह का कानूनी रास्ता ले रही है।

महिला सांसदों ने भी अपनी बात रखी। अनु आगा ने सवाल उठाया कि जब कोई वारदात होती है तभी हम क्यों जागते हैं। कुछ सांसदों ने 16 दिसंबर के दोषियों को फांसी नहीं दिए जाने पर भी सरकार को घेरने की कोशिश की। इस पर पहले निर्मला सीतारमन और फिर गृहमंत्री ने ध्यान दिलाया कि ये कोर्ट के अधिकारक्षेत्र का मामला है।

लोकसभा में भी ज़ीरो आवर के दौरान सांसदों ने अपनी नाराज़गी जताई। सरकार ने यहां भी भरोसा दिया कि डाक्यूमेंट्री नहीं प्रसारित होने दी जाएगी। लेकिन तकनीकि दिक्कत ये है कि सरकार देश में प्रसारण तो रोक लेगी लेकिन विदेश में क्या करेगी।
गृहमंत्रालय की तरफ से इस बाबत एक नोट विदेश मंत्रालय को भेजा गया है। सरकार की कोशिश भारतीय अदालत के फैसले को विदेशी अदालतों में ले जाकर मुहर लगाने की होगी।

सरकार इसे सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक किसी भी रूप में सामने नहीं आने देना चाहती। लेकिन इस पूरी बहस के बीच कुछ आवाज़ें ऐसी भी हैं जो बलात्कारी के इंटरव्यू पर इस डाक्यूमेंट्री को ग़लत नहीं मानती।

कानून के जानकार केटीएस तुलसी का कहना है कि ऐसे हज़ार इंटरव्यू होने चाहिए ताकि अपराधियों के मनोविज्ञान को पढ़ा जा सके। अपराध विज्ञान के लिहाज़ से ये बहुत ज़रूरी है। हालांकि तुलसी इसे सार्वजनिक तौर पर दिखाए जाने को सही नहीं मानते। बल्कि इसे शोध और अनुसंधान के लिए इस्तेमाल करने के पक्ष में हैं।

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राज्यसभा में बोलते हुए जावेद अख़्तर तो मानो फट पड़े। उन्होंने सीधे शब्दों में कहा कि अच्छा हुआ है कि ये डॉक्यूमेंट्री बनी है। इससे गंदगी देखने में आसानी होगी। उन्होंने ये भी कहा कि जिस तरह का बयान बलात्कारी दे रहा है वैसी ही सोच समाज के बहुत से लोगों की है। लेकिन क्या इस डाक्यूमेंट्री को दिखाया जाना चाहिए इस सवाल पर वे कहते हैं कि ये कोई मुद्दा ही नहीं है। बन गया है तो दिखा देने में हर्ज नहीं है। यहां नहीं दिखाओगे तो लोग बाहर के चैनल पर देख लेंगे। इसे रोकना शायद सरकार के बस में ना हो।