यह ख़बर 17 अक्टूबर, 2012 को प्रकाशित हुई थी

विकलांगों के पैसे में सेंध : सलमान खुर्शीद के दावे में कई दरारें

खास बातें

  • एनडीटीवी इंडिया की टीम बुलंदशहर जाकर पिछले तीन दिनों से केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट की लिस्ट में शामिल नामों की तलाश कर रही है।
बुलंदशहर:

एनडीटीवी इंडिया की टीम बुलंदशहर जाकर पिछले तीन दिनों से केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट की लिस्ट में शामिल नामों की तलाश कर रही है।

ट्रस्ट का दावा है कि उसने अप्रैल, 2010 में 42 लोगों को बैसाखी, सुनने की मशीनें और तिपहिया जैसी चीजें बांटीं। लिस्ट में कम से कम छह नाम ऐसे हैं, जो ट्रस्ट के दावे पर सवाल उठाते हैं। हमारी टीम ने पाया कि इनमें से कुछ का पता नहीं है और कुछ को कोई मदद नहीं मिली है।

बुलंदशहर के बरहना गांव में रहने वाली 17 साल की प्रीति न ठीक से बोल सकती है, न सुन सकती है और न ही चल पाती है। सलमान खुर्शीद के जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट की लिस्ट बताती है कि अप्रैल 2010 के कैंप में उसे बैसाखी दी गई। बुलंदशहर प्रशासन ने भी मान लिया कि प्रीति को बैसाखी मिली है, लेकिन प्रीति और उसका परिवार इसे गलत बताते हैं। इसके बाद हम पहुंचे बुलंदशहर के एक और गांव चितसोना।

जाकिर हुसैन ट्रस्ट की लिस्ट के मुताबिक चितसोना के प्रदीप कुमार को एक तिपहिया दिया गया है, लेकिन प्रदीप कुमार नाम का कोई शख्स इस गांव में रहता ही नहीं। बुलंदशहर का ही एक और गांव है बतरी, जहां अपने टूटे हुए तिपहिया पर घूमते हुए मिले 17 साल के जयकिरण। ट्रस्ट की लिस्ट में उनका भी नाम है, लेकिन उनका दावा भी कुछ और है।

हमारा अगला पड़ाव रहा गांव लडपुर। हम 83 साल की विमला देवी की तलाश करते रहे। लिस्ट के मुताबिक 2010 के कैंप में उन्हें कान से सुनने की मशीन दी गई थी, लेकिन ग्राम प्रधान तक को ऐसी किसी महिला का पता नहीं। इसी तरह, लड्डूपुरा गांव के चरण सिंह के पास बैसाखी है, लेकिन उन्हें अप्रैल, 2010 के कैंप से नहीं मिली है, यहां तक कि उन्हें जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट का नाम भी नहीं मालूम है।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

नगला उग्रसेन गांव के शीशपाल अब इस दुनिया में नहीं है। बीते साल उनका देहांत हुआ। ट्रस्ट का दावा है कि उन्हें बैसाखी मिली, लेकिन शीशपाल के बेटे के मुताबिक यह दावा सरासर गलत है। बुलंदशहर के जिला विकलांग कल्याण अधिकारी कहते हैं कि पूरी जांच के बाद ही सब कुछ साफ होगा।