यह ख़बर 21 मई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

लोकपाल विधेयक अटका, अन्ना फिर करेंगे आंदोलन

खास बातें

  • लोकपाल विधेयक सोमवार को राज्यसभा में पेश किया गया। इसके साथ ही इस पर उच्च सदन में चर्चा शुरू हो गई। दूसरी ओर, बीजेपी ने बिल को सेलेक्ट समिति को भेजे जाने पर कड़ा विरोध जताया है।
नई दिल्ली:

लोकपाल विधेयक लगभग चार महीने बाद सोमवार को राज्यसभा में दोबारा पेश किया गया लेकिन इसके पारित होने संभावना एक बार फिर लटक गई। नाटकीय घटनाक्रम के बीच विधेयक को कुछ ही देर बाद प्रवर (सेलेक्ट) समिति को भेज दिया गया। उधर, अन्ना हजारे ने विलम्ब किए जाने को गहरी चाल करार देते हुए 25 जून से एक और आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया।

यह विधेयक इससे पहले पिछले साल 29 दिसम्बर को संसद के विस्तारित सत्र के दौरान राज्यसभा में पेश किया गया था और देर रात तक बहस चलने के बाद इसे पारित किए बिना सत्र स्थगित कर दिया गया था।

बाद में कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मामलों के राज्यमंत्री वी. नारायणसामी ने इस आरोप का खंडन किया कि सरकार विधेयक को पारित कराने की इच्छुक नहीं है।

यह भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक बजट सत्र के दूसरे चरण में सोमवार को पेश किया गया और उसे 15 सदस्यीय प्रवर समिति के पास भेज दिया गया। यह समिति मानसूत्र सत्र के तीसरे सप्ताह (मध्य अगस्त) में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। मतलब साफ है कि यह विधेयक नवम्बर-दिसम्बर में होने वाले शीतकालीन सत्र तक टल गया है।

राज्यसभा में सोमवार को नारायणसामी ने अपराह्न 5.40 बजे जैसे ही विधेयक पेश किया, समाजवादी पार्टी (सपा) के नरेश अग्रवाल ने इसे प्रवर समिति के पास भेजने की अनुशंसा की। इस पर विपक्षी दलों के सदस्य नाराज हो गए। उन्होंने केंद्र सरकार पर सपा सांसद की आड़ लेने का आरोप लगाया।

इसके बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों के बीच इस बात को लेकर तीखी नोकझोंक हुई कि सपा सदस्य ऐसी अनुशंसा कर सकते हैं कि नहीं। सदस्यों ने इसके लिए नियम पुस्तिका का भी सहारा लिया। हालांकि इसी बीच नारायणसामी ने इसे प्रवर समिति में भेजने का एक और प्रस्ताव पेश कर दिया।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या वास्तव में सरकार लोकपाल विधेयक पारित करना चाहती है? उन्होंने कहा, "शीतकालीन से लेकर बजट सत्र पार हो गया। सरकार के पास हर किसी से चर्चा का उपयुक्त समय था। खेल खेलने की बजाय देश आपसे स्पष्ट जवाब चाहता है। यह खेल देखते हुए 42 साल गुजर गए।"

इन सबके बावजूद नारायणसामी द्वारा पेश प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।

वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और वाम दलों ने भी सरकार पर प्रहार किया। जहां मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने सरकार से निजी क्षेत्र को लोकपाल के दायरे में लाने को कहा, वहीं बसपा की राज्यसभा सदस्य मायावती ने कहा कि सरकार को अपनी जिम्मेदारी नहीं भूलनी चाहिए। उन्होंने सपा सदस्य द्वारा लाया गया प्रस्ताव प्रवर समिति को भेजे जाने पर आपत्ति की।

उधर, अन्ना ने महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित अपने गांव में संवाददाताओं से कहा कि वह 25 जून से फिर से आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा, "कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार लोकपाल नहीं चाहती है। इसने मजबूत लोकपाल के जरिए देश से भ्रष्टाचार को मिटाने का जो वादा किया था उससे पीछे हट रही है।"

टीम अन्ना के सदस्य मनीष सिसौदिया ने कहा, "सरकार नाटक कर रही है..विधेयक प्रवर समिति को भेजना कोई समाधान नहीं है। समाधान यही है कि इस विधेयक को नष्ट कर नया विधेयक लाया जाए।" उन्होंने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे में जबकि संसद की कार्यवाही मंगलवार को समाप्त हो रही है, सरकार केवल खानापूर्ति करने के लिए इसे राज्यसभा में पेश करने जा रही है।

टीम अन्ना की सदस्य किरण बेदी ने ट्विटर पर लिखा, "नया विधेयक लोगों को गुमराह करने, खानापूर्ति करने और विपक्षी दलों पर जिम्मेदारी थोपने के उद्देश्य से पेश किया जा रहा है।"

इस बीच, नारायणसामी ने सफाई दी, "सरकार ने वह किया जो सम्भव था।"

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यह पूछने पर कि विधेयक मानसून सत्र में पारित होगा या शीतकालीन सत्र में, उन्होंने कहा, "हम देखेंगे। यह इस पर निर्भर है कि प्रवर समिति किस गति से कार्य करती है।"