यह ख़बर 22 मई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

कापीराइट संशोधन विधेयक को संसद की मंजूरी

खास बातें

  • गीतकारों, कलाकार एवं रचनाकारों को उनकी कृति पर आजीवन रायल्टी प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करने वाले कापीराइट संशोधन विधेयक को मंगलवार को संसद ने मंजूरी दे दी।
नई दिल्ली:

गीतकारों, कलाकार एवं रचनाकारों को उनकी कृति पर आजीवन रायल्टी प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करने वाले कापीराइट संशोधन विधेयक को मंगलवार को संसद ने मंजूरी दे दी। लोकसभा ने आज कापीराइट संशोधन विधेयक 2011 को मंजूरी दी। राज्यसभा इसे पहले ही पारित कर चुका है।

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक विधेयक है जिसमें रचनाकारों, साहित्याकारों समेत सभी पक्षों के हितों का खास ध्यान रखा गया है। इस विधेयक के माध्यम से रचनाकारों और साहित्याकारों को उनकी कृति का वाणिज्यिक उपयोग किये जाने पर आजीवन राल्यटी मिल सकेगी क्योंकि कई कलाकारों और रचनाकारों को वृद्धावस्था में धन की समस्या का सामना करना पड़ा है।

उन्होंने कहा कि रायल्टी की हिस्सेदारी में कोई दुविधा नहीं है और बंटवारे की व्यवस्था की गई है। सभी पक्षों के अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है और उनके संरक्षण की भी व्यवस्था की गई है। अगर कोई समस्या आई तब सरकार इसका ख्याल रखेगी। मंत्री ने कहा कि प्रकाशकों के समानांतर इस्तेमाल (दो स्थानों पर कृति के प्रकाशन एवं उपयोग) पर व्यक्त किये गए विचारों पर एक समिति विचार कर रही है।

उन्होंने कहा कि अगर लोक संगीत का वाणिज्यिक उपयोग होता है, तब भी उस कलाकार को इसकी रायल्टी मिलेगी। इससे पहले भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने विधेयक का स्वागत करते हुए कहा कि बहुत जद्दोजहद के बाद ही सही लेकिन सरकार ने कम से कम विधेयक को मौजूदा स्वरूप में स्वीकार किया है, जो काबिले तारीफ है।

उन्होंने कहा कि इस विधेयक का अध्ययन कर रही संसद की स्थाई समिति ने भी इसे मौजूदा प्रारूप देने में कड़ी मेहनत की है, जो बधाई की पात्र है।

सुषमा ने देश में गीतकार, गायक, संगीतकार और अन्य कलाकारों को उनके हिस्से का लाभ नहीं मिलने से उनकी दुर्दशा बयां करते हुए साठ के दशक में मशहूर गायिका रहीं मुबारक बेगम का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना’ जैसे लोकप्रिय गीत को संगीतबद्ध करने वाले कुलदीप सिंह मुंबई के अंधेरी में एक झोंपड़ी में रहते हैं, जिनके बारे में गीतकार और राज्यसभा सदस्य जावेद अख्तर ने उन्हें जानकारी दी थी।

भाजपा नेता ने कुलदीप सिंह का एक पत्र दिखाते हुए कहा कि बाद में उन्होंने एक चिट्ठी लिखकर अपनी स्थिति बताई। इस दौरान दर्शक दीर्घा में गीतकार जावेद अख्तर बैठे थे जो समय समय पर कलाकारों को कॉपीराइट का अधिकार मिलने की आवाज उठाते रहे हैं।

सुषमा ने कहा, ‘‘आज सरकार चेती है और अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। आज विपक्ष भी सरकार के साथ पूरे सदन से इस विधेयक को पारित करने का अनुरोध करता है।’’ नेता प्रतिपक्ष ने फिल्म निर्माताओं द्वारा इस विधेयक पर विरोध की आशंकाओं के संदर्भ में कहा कि 1998 में सूचना और प्रसारण मंत्री रहते उन्होंने ही फिल्म को उद्योग का दर्जा दिया था।

सुषमा ने कहा, ‘‘मेरा फिल्म निर्माताओं के साथ भी मधुर रिश्ता है। तब मैं फिल्म निर्माताओं के साथ खड़ी थी लेकिन आज उन कलाकारों के साथ खड़ा होने की जरूरत है जिनके साथ अन्याय हो रहा है।’’ उन्होंने कहा कि कलाकार की रचना का फायदा निर्माता उठायें और जो बोल लिखे, धुन बनाये उसे कुछ नहीं मिले, यह ठीक नहीं है।

कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि रचनात्मकता को मापा नहीं जा सकता। पांच मिनट का गीत लिखने में 50 घंटे की प्रक्रिया और मेहनत लगती है। थरूर ने कहा कि हम इस विधेयक का समर्थन करते हुए पंडित शिवकुमार शर्मा, उस्ताद अमजद अली खान, ए आर रहमान और जावेद अख्तर जैसे कलाकारों के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं। थरूर ने विपक्ष द्वारा विधेयक पर एकजुटता प्रदर्शित करने पर खुशी व्यक्त की।

जदयू नेता शरद यादव ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि संगीतकारों, कलाकारों, रचनाकारों आदि को इस विधेयक के जरिये कॉपीराइट के दायरे में लाने का प्रयास किया गया है जो पहले इससे अलग रखे गये थे।

यादव ने मंत्री सिब्बल की ओर मुखातिब होते हुए यह भी कहा, ‘‘आपके किसी काम से मेरी सहमति नहीं रहती लेकिन इस विधेयक से मैं सहमत हूं।’’ उन्होंने यह भी कहा कि कलाकारों को संरक्षण तो मिल रहा है लेकिन यह विधेयक यही नहीं रुक जाना चाहिए और जो लोक कलाकार छूट रहे हैं उनका भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

सपा के शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि यह विधेयक काफी पहले आना चाहिए था जिसमें हिन्दुस्तान के साहित्यकारों, गीतकारों, रचनाकारों के हितों का खास ख्याल रखा गया है। उन्होंने कहा कुछ निर्माता इसका विरोध कर रहे हैं, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर रचनाकार या गीतकार नहीं होगा तब फिल्में कैसे बनेंगी।

माकपा के अनुप कुमार साहा ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि कई रचनाकार और कलाकार वृद्धावस्था में मुफलिसी में अपना जीवन व्यतीत करते हैं, ऐसे लोगों को आजीवन पेंशन दिया जाना चाहिए।

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बीजद के तथागत सत्पथी ने विधेयक को एकपक्षीय करार देते हुए कहा कि इसमें फिल्मों के निवेशकों और कला को प्रोत्साहित करने वालों का ख्याल नहीं किया गया है और सभी पक्षों की हिस्सेदारी स्पष्ट नहीं की गई है। चर्चा में बसपा के दारा सिंह चौहान, अन्नाद्रमुक के एस सेमालई, बीपीएफ के एस के बसुमतियारी और द्रमुक के के सेल्वन ने भी हिस्सा लिया।