यह ख़बर 22 जुलाई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

...जिनसे एक्सीडेंट होते हैं, सभी की कारों के शीशे काले हैं : सुप्रीम कोर्ट

खास बातें

  • उच्चतम न्यायालय ने कार के शीशों पर निर्धारित सीमा से ज्यादा मोटी काली फिल्म हटाने के न्यायिक आदेश पर ढुलमुल तरीके से हो रहे अमल को लेकर दिल्ली सरकार को आड़े हाथ लिया है।
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने कार के शीशों पर निर्धारित सीमा से ज्यादा मोटी काली फिल्म हटाने के न्यायिक आदेश पर ढुलमुल तरीके से हो रहे अमल को लेकर दिल्ली सरकार को आड़े हाथ लिया है।

न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर अभी भी बड़ी संख्या में ऐसी गाड़ियां चल रही हैं जिनके शीशों पर मोटी काली फिल्म लगी है। ऐसी कारों के मालिक या चालक अक्सर दुर्घटनाओं के बाद बचकर निकल जाते हैं। न्यायालय ने कहा कि इनमें से अधिकांश गाड़िया उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों की होती हैं जिन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है।

न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में बहुत कम फैसले पर अमल हुआ है। आज भी कुछ नहीं हो रहा है। यह तो मध्यम वर्ग है जिस पर इसका असर पड़ रहा है। जेड श्रेणी वाले (जेड और जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा वाले अतिविशिष्ठ व्यक्ति), जिनसे दुर्घटनाएं होती हैं, सभी की कारों के शीशे काले हैं।’’

न्यायालय ने कहा कि अतिविशिष्ट व्यक्ति, जिन्हें निश्चित प्रक्रिया के पालन के बाद अपनी गाड़ियों में काले शीशों की अनुमति दी गई थी, इस छूट का अनुचित लाभ उठा रहे हैं।

न्यायाधीशों ने कार के शीशों के लिए फिल्म तैयार करने वाले उद्यमियों के संगठन की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। ये उद्यमी कार के शीशों पर काली फिल्म लगाने संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश पर स्पष्टीकरण और इसमे सुधार चाहते हैं।

अपराधियों द्वारा काले शीशे वाली गाडियों के इस्तेमाल की घटनाओं से चिंतित उच्चतम न्यायालय ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे कारों में निर्धारित सीमा से अधिक काले शीशों पर प्रतिबंध लगाने के आदेश पर सख्ती से अमल करें।

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प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 27 अप्रैल को कहा था कि निर्माता टिन्टेड शीशों वाली गाड़ियों का उत्पादन कर सकते हैं लेकिन इनमें सामने और पीछे के शीशे में 70 फीसदी तक और खिड़कियों में 40 फीसदी तक दिखाई पड़ना चाहिए।