यह ख़बर 21 अक्टूबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

निहाल किदवई की कलम से : हुदहुद की यादें-2

विशाखापट्टनम के करीब तबाही का दृश्य (फाइल फोटो)

बेंगलुरु:

हम लोग सुबह तकरीबन 4.30 इस उम्मीद से उठे की सुबह की बुलेटिन के लिए वीडियो और कुछ रिपोर्ट भेज दे। होटल का दरवाज़ा खोलते ही पहला झटका लगा जब काफी तेज़ बह रही हवा ने ये साफ़ कर दिया कि ओबी वैन का डिश नहीं खोली जा सकती।

अगर कोशिश की गई तो या तो डिश टूट जाएगी या फिर उड़ जाएगी। यानी अपलिंकिंग अब सिर्फ 3जी के ज़रिये ही हो सकता था।

रिपोर्ट तैयार करने के बाद तकरीबन 5 बजे जब हम सड़क पर पहुंचे तो गहरा अंधेरा छाया था। तेज़ हवा और बारिश भी शरू हो चुकी थी। थोड़ा आगे बढ़ने पर कई पेड़ रास्ते में गिर गए।

कैमरामैन गोविन्द ने कई शॉट्स लिये। उन्होंने मेरी रिपोर्ट रिकॉर्ड की और हम उसे 3जी तकनीक के ज़रिये अपलिंक करने और अपने दूसरे सहयोगी हृदयेश जोशी और मदन लाल के पास पहुंचे। रास्ते में हमें बिजली के तार और खम्भे गिरे मिले। इससे /u साफ़ हो गया कि बिजली काटी जा चुकी है, यानी मोबाइल टॉवर्स 6 से 8 घंटे में बंद होने वाले हैं, क्योंकि उसमें इतना ही बेकअप होता है।

रास्ते में गिरे पेड़ों से बचते बचाते हम किसी तरह पहली रिपोर्ट और विजुअल्स भेजने में कामयाब हो गए। यानी हुदहुद तूफान के आने से काफी पहले ही विशाखापत्तनम शहर की शकल बदलनी शरू हो चुकी थी। पुलिस और सरकारी अधिकारियों और एनडीआरएफ की सरगर्मी से अहसास हुआ कि प्रशासन पूरी तरह से तैयार है।

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अभी सिर्फ सुबह के 7 बजे थे। दुकानें बन्द थी। थोड़ी गहमा गहमी पूरे शहर में सिर्फ़ एक जगह दिख रही थी वह था किंग जॉर्ज सरकारी हॉस्पिटल। बेचारे गरीब मरीज़ जाएं तो कहां जाएं।