मरियप्पन थांगावेलू (तस्वीर : AFP)
खास बातें
- मरियप्पन तमिलनाडु के सालेम जिले से ताल्लुक रखते हैं
- उनकी मां सब्जी बेचने का काम करती हैं
- उनके भाईयों ने गरीबी की वजह से पढ़ाई बीच में छोड़ दी
सालेम: रियो पैरालिम्पिक्स में ऊंची कूद में भारत की ओर से स्वर्ण पदक जीतने वाले 22 साल के मरियप्पन थांगावेलू के लिए यह सफर आसान नहीं रहा है. वह एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. तमिलनाडु के सालेम जिले से आने वाले मरियप्पन की परवरिश उनकी मां सरोजा सब्जियां बेचती हैं और उन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश की है. दिन के सौ रुपए कमाने वाली सरोजा अपने बेटे की जीत पर फूले नहीं समां रही हैं. वह कहती हैं 'उसे टीवी पर गोल्ड जीतते हुए देखकर बहुत खुशी हुई. वह बहुत ही शांत रहने वाला लड़का है और सबके साथ अच्छे से पेश आता है.'
----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- -----
मरियप्पन और भाटी ने रचा इतिहास
भाटी ने पोलियो को दिखाया अंगूठा
----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- -----
इससे पहले सरोजा दिहाड़ी मजदूर थीं और ईंट उठाने का काम करती थीं. वह कहती हैं 'जब मुझे छाती में दर्द की शिकायत हुई तो मरियप्पन ने किसी से पांच सौ रुपए उधार लिए और मुझसे कहा कि मैं सब्जियां बेचने का काम कर लूं.'
तस्वीर - AFP
मरियप्पन ने बीबीए की पढ़ाई एवीएस कॉलेज से पूरी की जहां के शारीरिक शिक्षा निदेशक ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और मरियप्पन को आगे बढ़ाया. वह 'करो या मरो' क्लब का हिस्सा भी था जहां उसे प्रोत्साहन मिला करता था. मरियप्पन के भाई टी कुमार बताते हैं 'बाद में बैंगलुरू के सत्या नारायण ने उसे दो साल तक ट्रेनिंग दी और साथ में 10 हज़ार रुपए का मासिक वेतन (स्टायपेंड) भी दिया.'
----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- -----
तमिलनाडु सरकार ने किया ईनाम का एलान
----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- -----
1995 में जब मरियप्पन महज़ पांच साल के थे तब उनके स्कूल के पास एक सरकारी बस से टक्कर होने के बाद वह अपना पैर खो बैठे. लेकिन वह रुके नहीं, 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उनके परिवार को दो लाख रुपए का मुआवज़ा दिया गया. सरोजा ने कानूनी खर्चों के लिए लाख रुपए भरे और बाकी के एक लाख अपने बेटे के भविष्य के लिए जमा कर दिए.
मरियप्पन के तीन भाई और एक बहन है जिसकी शादी हो गई है. गरीबी की वजह से बड़े भाई टी कुमार को पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी. दूसरा भाई स्कूल के आगे पढ़ ही नहीं पाया. सबसे छोटा भाई अभी 12वीं में है. उनकी मां कहती हैं कि अगर मदद मिले तो वह अपने बेटों को कॉलेज भेजना चाहेगी.
पति के द्वारा परिवार को कथित तौर पर छोड़ देने के बाद सरोजा ने अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश की है. काफी वक्त तक कोई भी इस परिवार को किराए पर मकान देने के लिए तैयार नहीं था. अभी भी मरियप्पन का परिवार पांच रुपए महीने के किराए पर एक छोटे से घर में रहता है.