पीएम मोदी की डिग्री : सीआईसी के सार्वजनिक करने के आदेश पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई

पीएम मोदी की डिग्री : सीआईसी के सार्वजनिक करने के आदेश पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई

दिल्ली हाईकोर्ट ने सीआईसी के पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री सार्वजनिक करने के आदेश पर रोक लगा दी है.

खास बातें

  • दिल्ली यूनिवर्सिटी ने सीआईसी के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी
  • मार्कशीट की जानकारी मांगने वाले नीरज कुमार को नोटिस
  • एएसजी ने कहा, विवि की तीसरे पक्ष को लेकर एक जिम्मेदारी
नई दिल्ली:

दिल्ली यूनिवर्सिटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को सार्वजनिक करने के केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी है. हाई कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएम मोदी की मार्कशीट की जानकारी मांगने वाले नीरज कुमार को नोटिस दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने सीआईसी के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है.

इस मामले की अगली सुनवाई 24 अप्रैल को होगी. दिल्ली यूनिवर्सिटी की याचिका में सीआईसी के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें पीएम मोदी की मार्कशीट को सार्वजनिक करने को सही बताया गया है. आदेश में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति इस बारे मे सम्बंधित विभाग से जानकारी मांग सकता है. मार्कशीट के बारे में जानकारी दी जा सकती है क्योंकि वह प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं है.

दिल्ली विवि की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने हाईकोर्ट में दलील दी कि विवि इस तरह तीसरे पक्ष की डिग्री का ब्योरा बाहरी व्यक्ति को नहीं दे सकता क्योंकि विवि की तीसरे पक्ष को लेकर एक जिम्मेदारी बनती है.

गौरतलब है कि केंद्रीय सूचना आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय को वर्ष 1978 में बीए डिग्री पास करने वाले सभी विद्यार्थियों के रिकॉर्ड की पड़ताल करने का निर्देश दिया था. विश्वविद्यालय के अनुसार इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह परीक्षा उत्तीर्ण की थी. आयोग ने विश्वविद्यालय के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी की यह दलील खारिज कर दी थी कि यह तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत सूचना है. उसने कहा था कि इस दलील में उसे दम या कोई कानूनी पक्ष नजर नहीं आता है.

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सीआईसी ने विश्वविद्यालय को 1978 में कला स्नातक उत्तीर्ण होने वाले सभी विद्यार्थियों के क्रमांक, नाम, पिता के नाम, प्राप्तांक समेत सभी सूचनाएं देखने देने तथा इनसे संबंधित रजिस्टर के संबंधित पेज की प्रमाणित प्रति मुफ्त में उपलब्ध कराने का आदेश दिया था. आरटीआई आवेदक नीरज कुमार ने विश्वविद्यालय से 1978 में बीए की परीक्षा में शामिल होने वाले विद्यार्थियों की कुल संख्या, उनके परीक्षा परिणाम (उत्तीर्ण या अनुतीर्ण), क्रमांक, नाम, पिता के नाम, प्राप्तांक आदि सूचनाएं मांगी थीं.

उक्त सूचनाएं देने से इनकार करते हुए विश्वविद्यालय के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी ने जवाब दिया था कि मांगी गई सूचनाएं संबंधित विद्यार्थियों की निजी सूचनाएं हैं, उसके उद्घाटन का किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई नाता नहीं है.

सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कहा था कि "इस प्रश्न के सिलसिले में, कि क्या पहचान से संबंधित ऐसी सूचनाओं का खुलासा निजता का उल्लंघन है या क्या यह निजता का अवांछित उल्लंघन है, पीआईओ ने ऐसा कोई सबूत नहीं दिया है या इस संभावना पर कोई सफाई नहीं दी कि डिग्री से संबंधित सूचना के खुलासे से निजता उल्लंघन होता है या निजता का अवांछनीय उल्लंघन है."

आयोग के समक्ष सीपीआईओ मीनाक्षी सहाय ने कहा कि 'इस साल बीए प्रोग्राम में दो लाख विद्यार्थी थे और जब तक बीए प्रोग्राम के विषय का जिक्र नहीं किया जाता है तब तक मांगी गई सूचना जैसे 1978 में परीक्षा में शामिल होने वाले विद्यार्थियों के नाम, उत्तीर्ण, अनुत्तीर्ण आदि जानकारी देना मुश्किल होगा. उन्होंने कहा कि 1978 का परीक्षा परिणाम डिजिटल स्वरूप में भी नहीं है.

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इस पर नीरज ने कहा कि ऐसे परिणाम नोटिस बोर्ड या कभी-कभी अखबारों में प्रकाशित करने की दिल्ली विश्वविद्यालय की पहले की परिपाटी थी, इसका मतलब यह है कि सीपीआईओ ने जिन सीमाओं का उल्लेख किया है, उसके बगैर ही मांगी गई सूचना जन प्राधिकार के पास थी और उसे प्रकाशित किया गया था या सार्वजनिक रूप से सामने रखा गया था. डीयू के 1978 के डिग्री रिकॉर्ड का मुद्दा तब सामने आया जब आम आदमी पार्टी ने प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर सवाल किए थे और उससे विवाद खड़ा हुआ था.

इस विवाद के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार तरुण दास ने पिछले साल कहा था, "हमने अपने रिकॉर्ड चेक किए और यह प्रमाणित किया जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री प्रामाणिक है. उन्होंने 1978 में परीक्षा पास की थी और उन्हें 1979 में डिग्री प्रदान की गई थी."


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