यह ख़बर 14 अक्टूबर, 2011 को प्रकाशित हुई थी

पीएम ने जताई RTI समीक्षा की जरूरत, भाजपा को आपत्ति

खास बातें

  • प्रधानमंत्री ने आरटीआई की आलोचनात्मक समीक्षा की बात कही है लेकिन साथ ही उन्होंने साफ किया कि इस कानून को हल्का करने का कोई इरादा नहीं है।
New Delhi:

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को कहा कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की गहन समीक्षा की जरूरत है, ताकि सरकारी कामकाज पर नकरात्मक असर न पड़े तो वहीं विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आरोप लगाया कि सरकार अधिनियम में छेड़छाड़ कर उसे कमजोर करना चाहती है। सूचना आयुक्तों के छठे वार्षिक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "आरटीआई अधिनियम प्रभावी रहा है, लेकिन इस बात को लेकर चिंताएं हैं कि इससे ईमानदार और अपने विचारों की पूर्ण अभिव्यक्ति करने वाले लोक सेवक हतोत्साहित हो सकते हैं।" प्रधानमंत्री ने कहा, "आरटीआई अधिनियम की क्षमता और इसकी प्रभावशीलता को स्वीकारने तथा इसकी प्रशंसा करने के बावजूद हमें इसकी गहन समीक्षा करनी चाहिए। कुछ चिंताएं हैं, जिन पर चर्चा करने और उन्हें ईमानदारीपूर्वक दूर करने की आवश्यकता है।" गौरतलब है कि सलमान खुर्शीद और वीरप्पा मोइली सहित प्रधानमंत्री के अन्य मंत्रिमंडलीय सहयोगी आरटीआई की समीक्षा की सिफारिश करते रहे हैं। पिछले महीने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम का नाम आरटीआई के कारण ही आया था। वित्त मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया नोट आरटीआई के माध्यम से ही हासिल किया गया था और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को इस पर सफाई देनी पड़ी थी। अपने सम्बोधन में मनमोहन सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा सम्बंधी कानून से आरटीआई और मजबूत होगा। साथ ही उम्मीद जताई कि अगले कुछ महीनों में यह कानून लागू हो जाएगा। सूचनाओं को सार्वजनिक करने और सरकारी प्राधिकरणों के पास उपलब्ध सीमित समय तथा संसाधानों के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसी स्थिति की अपेक्षा नहीं की जाती, जिसमें सरकारी प्रतिष्ठानों के पास ऐसी सूचनाओं के लिए आवेदनों की भरमार हो, जो सार्वजनिक हित में न हो। उन्होंने इस बात पर विचार की आवश्यकता बताई कि किस तरह जनहित में मांगी जाने वाली सूचनाओं और निर्थक जानकारियों के आवेदन से एक साथ निपटा जाए। उन्होंने कहा, "..मैं समझता हूं कि हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि किसी भी विचार को सार्वजनिक जांच और चर्चा में एकतरफा ढंग से लाने पर उसकी विकृत या अधूरी तस्वीर सामने आ सकती है, जो वास्तव में अंतिम निर्णय लेने की प्रक्रिया में अपनाई गई हो। आरटीआई का नकारात्मक असर सरकारी कामकाज पर नहीं होना चाहिए।" उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सरकार व्यापक कानूनी, कार्यकारी तथा तकनीकी एजेंडे के प्रति प्रतिबद्ध है और आरटीआई इस दिशा में महत्वपूर्ण साधन साबित हो सकता है। उन्होंने कहा, "प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए हम आरटीआई को अधिक प्रभावी बनाना चाहते हैं।" आरटीआई अधिनियम में छूट की धाराओं को लेकर गहन समीक्षा की आवश्यकता बताते हुए प्रधानमंत्री ने सम्मेलन के प्रतिभागियों से ठोस सलाह देने को कहा। उन्होंने कहा कि आरटीआई में निजता सम्बंधी मुद्दों के निपटारे का प्रावधान है, लेकिन कुछ क्षेत्र हैं जिस पर विचार करने की आवश्यकता है। उधर, भाजपा ने आरटीआई की 'गहन समीक्षा' के प्रधानमंत्री के बयान पर उनसे स्पष्टीकरण की मांग की। भाजपा नेता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा, "हमने कभी उम्मीद नहीं की थी कि प्रधानमंत्री स्वयं कहेंगे कि आरटीआई पर पैसा और अधिकारियों का समय बर्बाद हो रहा है। हम समझते हैं कि यह इस बात का बड़ा संकेत है कि आरटीआई अधिनियम को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।" उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इसलिए आरटीआई अधिनियम को कमजोर करना चाहती है, क्योंकि इसके जरिये हुए खुलासों से वह मुश्किल में फंसी है। रूड़ी ने कहा, "हम जानते हैं कि आरटीआई के कारण सरकार पर कई आरोप लगाए जा रहे हैं.. क्या सरकार को इस बात का भय है कि वह अपनी विश्वसनीयता पहले ही खो चुकी है और यदि यह अधिनियम लम्बे समय तक रहता है तो वह कहीं नहीं टिक पाएगी।" उन्होंने कहा, "इस तरह के बयान जारी करने के उद्देश्यों को लेकर सरकार और प्रधानमंत्री को सफाई देनी चाहिए।"


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