यह ख़बर 15 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

एनडीटीवी एक्सक्लूसिव : यमुना किनारे उग रही हरी सब्जियों का काला सच

नई दिल्ली:

मंडी से लेकर सड़क किनारे रखी हरी-भरी साग सब्जियां अपनी ओर हर किसी को खींचती हैं, लेकिन इनकी सिंचाई लेकर धुलाई जिस पानी से हो रही है, वह पानी जहरीला हो चुका है। बात दिल्ली से गुजरने वाली यमुना नदी की हो रही है और साथ ही यमुना से सटे उस बड़े भू-भाग की जिस पर धड़ल्ले से खेती हो रही है।

वजीराबाद पुल से लेकर कालिंदी कुंज तक करीब 22 किलोमीटर की दूरी में 3000 हेक्टेयर पर खेती की जा रही है। इससे मौसमी सब्जियां दिल्ली की अलग-अलग मंडियों में पहुंच तो रही हैं, लेकिन न तो नदी का पानी साफ है और न ही ग्राउंड वाटर। दी एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट यानी टेरी की रिपोर्ट तो इस बात की तरफ भी इशारा करती है कि यमुना के आसपास की मिट्टी भी खेती के लिहाज से खराब हो चुकी है।

अब बात इस मिट्टी और पानी से उगने वाली साग-सब्जियों की। गोभी, बैंगन, मूली, गाजर, बथुआ, मेथी, पालक, हरी मिर्च, धनिया और इसके अलावा मौसमी सब्जियां इस जमीन की अहम पैदावार में से हैं। इतना ही नहीं कई जगहों पर तो यमुना के पानी में ही इन सब्जियों की धुलाई भी की जाती है तो दूसरी तरफ किसानों ने खेतों में ट्यूबवेल लगा रखा है, लेकिन जमीन से निकलने वाला पानी भी मापदंड पर खरा नहीं उतरता। इस पानी पर भी यमुना के प्रदूषण का असर है।

कालिंदीकुंज से जैतपुर जाने के लिए जैसे ही मुड़ेंगे तो दाहिनी तरफ यमुना से निकलने वाली नहर में हरी सब्जियों का काला सच आपको दिखेगा। जहां बने घाट पर हर तरह की साग सब्जियां गंदे पानी में धुलती नजर आएंगी।

दी एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट यानी टेरी की रिपोर्ट की मुताबिक, यमुना के पानी में मक्यूरी यानी पारा, निकेल, लेड, मैगनीज, क्रोमियम और जींक सरीखे हेवी मेटल खतरे की तय सीमा से कई गुना ज्यादा मौजूद हैं। यमुना जिए अभियान से जुड़े और यमुना को लेकर लंबे समय से काम करने वाले मनोज मिश्र भी मानते हैं कि यमुना के आसपास हो रही खेती को लेकर आजतक जितनी भी रिपोर्ट आईं हैं, सब खतरे की तरफ इशारा करती हैं, लेकिन मनोज मिश्र यह याद दिलाना नहीं भूलते कि जिम्मेदारी उन कल कारखानों की बनती हैं, जिसने यमुना को नदी से नाले में तब्दील कर दिया।

वजीराबाद से लेकर जैतपुर तक यमुना में 22 नाले गिरते हैं। दरअसल, जब पानी और फिर मिट्टी में जहर मौजूद हो तो सब्जियां इससे अछूती कैसे रह सकती है।

टॉक्सिक्स लिंक के एक शोध के मुताबिक, यमुना के गाद में मौजूद हेवी मेटल्स पोषक तत्वों के साथ सब्जियों में पहुंच रहे हैं। यमुना की गाद को लेकर शोध प्री मॉनसून भी किया गया और पोस्ट मॉनसून भी। कायदे से पोस्ट मॉनसून में खतरनाक तत्वों की मात्रा कम होनी चाहिए थी, लेकिन हैरान करने वाली बात है कि कई खतरनाक तत्वों की मात्रा पोस्ट मॉनसून में बढ़ी आई और अगर औसत की बात की जाए या फिर तत्वों की मौजूदगी की तो यमुना की गाद में लेड 57 mg\ किलोग्राम तक मिला। वहीं कैडमियम 0.38 mg\ किलोग्राम, क्रोमियम 796 mg\ किलोग्राम तक। पारा करीब 5 mg\ किलोग्राम और आर्सेनिक 11 mg प्रति किलोग्राम की मौजूदगी मिली।

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टॉक्सिक्स लिंक के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर डॉक्टर प्रशांत राजंकर ने बताया कि एक चीज तो इस शोध में साफ हो गई कि खतरनाक तत्वों की मौजूदगी लगातार बनी है। वह बारिश के पहले हो या फिर बाद में। और साग सब्जी इन तत्वों से अछूती नहीं रह सकती जो यमुना के किनारे उगाई जा रही हैं और हेवी मेटल्स अगर एक बार सब्जी में पहुंच जाएं तो धो लीजिए या फिर सब्जी को उबाल लीजिए, उनकी मौजूदगी रहेगी ही। यानी इन इलाकों में उगने वाली साग-सब्जियां स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक हैं। और अगर ऐसी सब्जियों को हम खा रहे हैं तो हमारे नर्वस सिस्टम में दिक्कत आ सकती है, मांसपेशियों में दर्द या फिर जोड़ों में दर्द की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। कमजोरी, थकावट, पेट दर्द, कब्जियत ये सब तो बड़ी सामान्य शिकायत हो सकती है। थायरॉइड, बांझपन, बच्चों में बर्थ डिफेक्ट, किडनी की समस्या, हार्ट को लेकर भी दिक्कत हो सकती है।