बिहार चुनाव से पहले दिनकर की विरासत पर सियासत

बिहार चुनाव से पहले दिनकर की विरासत पर सियासत

फाइल फोटो

नई दिल्‍ली:

शुक्रवार को दिल्ली में रामधारी सिंह दिनकर पर एक बड़ा कार्यक्रम हुआ। मौका उनकी दो किताबों 'संस्कृति के चार अध्याय' और 'परशुराम की प्रतीक्षा' के प्रकाशन के 50 साल पूरे होने का था।

कार्यक्रम में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामधारी सिंह दिनकर की मार्च 1961 को लिखी चिट्ठी का ज़िक्र किया जो उन्होंने एक वरिष्ठ नेता के लिखा था। प्रधानमंत्री ने कहा, 'दिनकर जी ने चिट्ठी में लिखा- एक या दो जातियों के समर्थन से राज नहीं चलता।

यदि जातिवाद से हम ऊपर नहीं उठे तो बिहार का सार्वजनिक जीवन गल जाएगा।' प्रधानमंत्री ने आगे बढ़ते हुए कहा, 'दिनकर का सपना था कि बिहार आगे बढ़े...अगर एक बार अवसर मिला तो बिहार औरों को पीछे छोड़कर आगे निकल जाएगा।'

प्रधानमंत्री के पैगाम को कार्यक्रम में मौजूद दूसरे नेताओं ने आगे बढ़ाने में देरी नहीं की। पार्टी के वरिष्ठ सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सीपी ठाकुर ने कहा, 'जाति का प्रभाव कम होगा तो लोग सोचेंगे कि विकास होनी चाहिये। तब सब बीजेपी को वोट देंगे।' जबकि केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने दावा किया, 'इतिहास साक्षी है। जब जब जाति के बंधन टूटे हैं परिवर्तन हुआ है। चाहे 1977 हो या 2014 का चुनाव हो...।'

दिलचस्प ये है कि दिनकर पर होने वाले इस कार्यक्रम में बिहार बीजेपी के सभी बड़े नेता मौजूद थे। बिहार में इस साल सितंबर-अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री ने बिहार की राजनीति में जातिवाद का सवाल उठा कर इस मसले पर एक नई बहस छेड़ दी है।

जेडीयू ने जवाबी प्रतिक्रिया में कहा कि प्रधानमंत्री इस मुददे पर दोहरा रुख़ अख़्तियार कर रहे हैं और दिनकर को बिहार की जाति-व्यवस्था के साथ जोड़कर देखना सही नहीं होगा। जेडीयू का आरोप है कि बिहार में चुनावों से पहले बीजेपी दिनकर का इस्तेमाल कर रही है और एक ख़ास जाति को ख़ुश करने की कोशिश कर रही है।

जेडीयू के वरिष्ठ महासचिव केसी त्यागी ने एनडीटीवी से कहा, 'पीएम हमेशा इलेक्शन मोड में रहते हैं...वो इसे चुनावों में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।' जबकि राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव ने कहा, 'नरेन्द्र मोदी की पार्टी सभी जातियों का बिहार में सम्मेलन कर रही है चुनाव आते ही...मोदी जी ने बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा नहीं दिया जिसकी मांग नितिश कुमार और हम लंबे समय से करते रहे हैं।'

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दिनकर एक बड़े कवि हैं। उनकी विरासत के राजनीतिक इस्तेमाल से बचने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि ये सवाल उठ रहा है कि ऐन चुनाव से पहले बीजेपी को दिनकर क्यों याद आ गए।