प्रेमचंद एक सदी बीत जाने के बाद भी उतने ही प्रासंगिक हैं : गुलजार

प्रेमचंद एक सदी बीत जाने के बाद भी उतने ही प्रासंगिक हैं : गुलजार

मुंशी प्रेमचंद के गांव लम्ही में लगी उनकी मूर्ति

खास बातें

  • 31 जुलाई को मनाया जा रहा मुंशी प्रेमचंद का 136वां जन्मदिन।
  • सदी बीत जाने के बाद भी प्रेमचंद की कृतियां प्रासंगिक हैं- गुलजार।
  • 'प्रेमचंद की कहानियों में दर्शाई गई समस्याएं आज भी मौजूद हैं।'
नई दिल्ली:

साहित्य के साथ गुलजार के रिश्ते में मुंशी प्रेमचंद का सबसे अधिक प्रभाव रहा है और प्रख्यात कवि-गीतकार का मानना है कि एक सदी बीत जाने के बाद भी प्रेमचंद की कृतियों ने अपनी प्रासंगिकता नहीं गंवाई है.

प्रेमचंद की कृतियों 'गोदान' और 'निर्मला' को स्क्रीनप्ले प्रारूप में आज पेश करने वाले 81 वर्षीय गुलजार ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों में दर्शाई गई समस्याएं आज भी मौजूद हैं.  गुलजार कहते हैं, 'प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे स्वतंत्रता से पहले के वक्त में थे.'

उन्होंने कहा,  'उनके साहित्य, जिन चरित्रों का उन्होंने चित्रण किया, जिन समस्याओं के बारे में उन्होंने बात की, आज भी हम उनसे उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. चाहे वह गरीबी हो या जाति के आधार पर भेदभाव, ये चीजें आज भी हमारे समाज में हैं और स्थिति बद से बद्तर हुई है. 'होरी' और 'धनिया' अब भी हमारे गांवों में हैं.'

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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