यह ख़बर 21 अक्टूबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

निजी कंपनियों को कोयला खानों की ई-नीलामी के लिए राष्ट्रपति का अध्यादेश जारी

नई दिल्ली:

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने निजी कंपनियों को कोयला ब्लॉकों की ई-नीलामी के लिए अध्यादेश को मंगलवार को अपनी संस्तुति प्रदान कर दी। मंत्रिमंडल ने कल ही राष्ट्रपति से इसकी सिफारिश की थी।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने दिए एक फैसले में वर्ष 1993 के बाद आवंटित 214 कोयला खानों के आवंटन रद्द कर दिए है। न्यायालय के इस निर्णय से उत्पन्न परिस्थितियों के मद्देनजर सरकार ने अध्यादेश लाने का कदम उठाया है। सरकार के इस कदम को कोयला क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाने की बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है। इसमें बिजली, इस्पात जैसे कोयले की खपत वाली निजी कंपनियों को अपने इस्तेमाल के लिए कोयला उत्खनन हेतु कोयला ब्लाकों के लिए नीलामी में बोली लगाने का मौका मिलेगा। इसके अलावा इसमें केन्द्र और राज्य सरकार के उपक्रमों को कोयला खानों का सीधे खान आवंटन का प्रावधान होगा।

राष्ट्रपति के प्रेस सचिव वेणु राजामणि ने कहा, 'राष्ट्रपति ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।'

अध्यादेश जारी होने के बाद केन्द्र और राज्य सरकारों के एनटीपीसी और राज्य विद्युत बोर्डों जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को कोयला खानों का सीधे आवंटन किया जाएगा।

सरकार ने कहा है कि वह सीमेंट, इस्पात और बिजली क्षेत्र में काम करने वाली निजी कंपनियों के लिए ई-नीलामी में काफी संख्या में कोयला खानों को रखेगी।

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कल शाम मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा कि ई-नीलामी पूरी तरह से पारदर्शी होगी और इसे तीन से चार माह में पूरा कर लिया जाएगा। इससे मिलने वाली पूरी राशि उस राज्य सरकार को जाएगी जहां कोयला खान स्थित होगी।

झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ राज्यों को इसका बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद है जबकि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश को भी फायदा होगा।

जेटली ने कहा कि अदालत द्वारा जिन कंपनियों को दोषी करार दिया गया है उन्हें छोड़कर अन्य सभी कंपनियों को नीलामी में भाग लेने की अनुमति होगी और किसी को भी पहले इनकार का कोई अधिकार नहीं होगा। बोली लगाने वाली कंपनियां ई-नीलामी की उल्टी बोली प्रतिस्पर्धा में भाग लेंगी।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले चयन समिति प्रणाली के जरिये आवंटित कोयला खानों के तौर तरीकों को लेकर सवाल उठे हैं। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में इन खानों के आवंटन में गड़बड़ी होने का आरोप लगाया गया और इससे सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान व्यक्त किया गया।

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मामला न्यायालय में पहुंच गया और उसके बाद शीर्ष अदालत ने पिछले महीने फैसला सुनाते हुये वर्ष 1993 के बाद आवंटित 218 में से 214 खानों का आवंटन रद्द कर दिया।