यह ख़बर 25 जून, 2014 को प्रकाशित हुई थी

प्राइम टाइम इंट्रो : व्यापम घोटाला कितना सर्वव्यापम?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार, व्यापम किस राज्य में व्याप्त हुआ है। व्यापम कितना सर्वव्यापम है और इस सर्वव्यापी व्यापम में कौन-कौन से नेता अफसर व्याप्त हैं, जो पकड़े गए हैं। वही व्याप्त हैं या और भी कई लोग हैं जो व्यापम में व्याप्त हैं। मैं आपको पर्यायवाची की तर्ज पर व्याप्तवाची छंद नहीं सुना रहा हूं।

हिन्दुस्तान में कुछ घोटाले ऐसे हो जाते हैं जो अपने नामकरण के कारण सत्ता संबंधों के भीतरी खेल को ठीक से उजागर कर देते हैं। जैसे टू-जी, थ्री-जी के बाद सोनिया जी राहुल जी। इस छंद शैली की क्षमता से लैस मध्यप्रदेश का एक घोटाला शनै शनै ख्याति प्राप्त कर रहा है जिसे आप व्यापम घोटाला के नाम से जानते हैं।

व्यापम का मूल नाम है व्यावसायिक परीक्षा मंडल। यह मध्यप्रदेश की परीक्षा संस्था है जो मेडिकल से लेकर कई प्रकार की सरकारी नौकरियों में भर्ती का आयोजन करती है।

इस घोटाले का आगाज़ 2006 से होता है यानी तब से शिकायतें सार्वजनिक होने लगी थीं, मगर भांडा फूटता है 2013 में इंदौर पुलिस मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बारह लोगों को गिरफ्तार करती है। वहां से यह ठीक से लपेटी गई कालीन की तरह खुलने लगता है और खुलते-खुलते शिवराज सिंह चौहान की सरकार की दहलीज़ तक जा पहुंचता है।

सिर्फ मेडिकल की परीक्षा में नहीं बल्कि परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा वन रक्षक भर्तीफूड इंस्पेक्टर परीक्षाडेयरी फेडरशेन भर्ती परीक्षा पुलिस सूबेदार एस आई प्लाटून कमांडर परीक्षा सिपाही भर्ती परीक्षा में भी घोटाला पकड़ में आता है और इन मामलों में भी सैंकड़ों लोगों को आरोपी बनाया जाता है। इसे अंजाम देने के लिए पहले कई नियम बदले जाते हैं जैसे अनुसूचित जाति जनजाति और ओबीसी की आरक्षित सीटों की कैटगरी बदलकर रिजर्व कर दी जाती है और अन्य को मेरिट लिखा जाता है।

परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा से अनिवार्य फिजिकल टेस्ट को समाप्त कर दिया जाता है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि 150 भर्ती परीक्षाओं में घोटाला हुआ है। कई मुन्नाभाई डॉक्टर भी बन चुके हैं।

दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार 2008 और 2009 की मेडिकल परीक्षा में भी गड़बड़ी निकली है। इसमें पास होने वाले 127 छात्रों की परीक्षा निरस्त की गई है। इनमें से 50 तो डॉक्टर भी बन गए हैं और इलाज कर रहे हैं।

फुटबाल विश्वकप के संदर्भ में आप रोज गोल करने वाले को स्कोरर के नाम से सुनते होंगे। मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले में भी स्कोरर का जिक्र मिलता है मगर यहां रोनाल्डो और मेस्सी नहीं बल्कि वो लोग स्कोर करते हैं जो किसी छात्र के आई कार्ड पर अपनी तस्वीर लगाकर इम्तिहान दे आते हैं।

अभी तक 20 ऐसे स्कोरर पकड़े गए हैं जो दूसरे राज्यों से लाए जाते थे और मुन्ना भाइयों को पास कराकर डॉक्टर बना रहे थे। 450 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। 22 जून को 21 आरोपी छात्र छात्राओं को भी जेल भेजा गया है। 1000 से ज्यादा मेडिकल छात्रों के एडमिशन रद्द किए जा चुके हैं।

ध्यान रहे कि यह अभी सिर्फ 2012−13 की मेडिकल प्रवेश परीक्षा में उजागर हुआ है। इससे पहले की तीन परीक्षाएं भी संदेह के दायरे में हैं। उनकी जांच होगी तो पता नहीं क्या निकल जाए।

इस घोटाले ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस प्रशासनिक नियंत्रण पर सवाल उठाया है जिसकी कुशलता के नाम पर जनता उनमें प्रचंड विश्वास व्यक्त करती रही है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट इस मामले की निगरानी कर रहा है और मध्यप्रदेश सरकार की एसटीएफ जांच कर रही है। इस कांड में कुछ किरदारों के नाम हैं जिनकी भूमिका और संपर्कों की राजनीतिक व्याख्या भी की जा रही है, जैसे उनके ओएसडी ओपी शुक्ला व्यापम के कंट्रोलर पंकज त्रिवेदी, डॉ जगदीश सागर, व्यापम के सीनियर एनलिस्ट नितिन महेंद्र। बड़े नामों में एक हैं।

पूर्व उच्च और तकनीकी शिक्षामंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जेल में हैं। ये 2003 से 2013 तक खनन मंत्रालय उच्च और तकनीकि शिक्षा मंत्री थे। ज़ाहिर है बीजेपी और आरएसएस में इनकी कुछ तो अच्छी पकड़ रही होगी जो दस साल तक मंत्री रहे। इसी महीने शर्मा जी अस्थायी शिक्षक भर्ती घोटाले में पकड़े गए और मंगलवार को सिपाही भर्ती घोटाले में भी गिरफ्तार हो गए।

आरोप है कि लक्ष्मीकांत शर्मा की सिफारिश पर कई उम्मीदवारों को शिक्षक और सिपाही बनाया गया। व्यापम में गलत तरीके से नंबर बढ़वाकर। मंगलवार को हाई कोर्ट ने जांच की गति धीमी होने के कारण एसटीएफ की आलोचना भी की है।

एक और किरदार हैं इस घोटाले के सुधीर शर्मा जिनके बारे में बुधवार के इंडियन एक्सप्रेस में मिलिंद घटवाई ने लिखा है कि ये सरस्वती शिशु मंदिर में एक प्राइमरी टीचर थे, मगर बीजेपी सरकार के दौरान इनकी आर्थिक प्रगति टीचर की तनख्वाह क्षमता के कई गुना होती है। इस वक्त सुधीर शर्मा फरार हैं और एसटीएफ ने पांच हज़ार का इनाम भी रखा है। फरार होने में ही जनाब ने न जाने कितने लाख खर्च कर दिए होंगे और इनाम सिर्फ पांच हज़ार। इनाम दस हज़ार भी नहीं।

खबरों के मुताबिक 48 साल के सुधीर शर्मा के पास खदानें हैं शिक्षा संस्थान हैंकई महंगी गाड़ियां हैं। विधानसभा के भीतर और चुनावों में भी इस पर चर्चा हुई थी। मिलिंद की रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि सुधीर शर्मा का परिवार झाबुआ में दूध बेचा करता था, मगर बीजेपी की सरकार आने पर ये खदान के मालिक हो गए। सरस्वती शिशु मंदिर में टीचर से इंजीनियरिंग कालेज में लेक्चरर बने और फिर पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के ओएसडी बन गए। सुधीर शर्मा बीजेपी के एजुकेशन सेल के प्रमुख भी बनाए गए। इन सब विवादों के बाद भी मध्य प्रदेश सरकार ने सुधीर शर्मा की सेंट्र फॉर रिसर्च एंड इंडस्ट्रीयल स्टाफ परफॉरमेंस में नियुक्ति की।

सुधीर शर्मा की इस प्रगति रिपोर्ट को पढ़कर रॉबर्ट वाड्रा पर अरुण जेटली का वो ब्लॉग बरबस याद आता है जिसमें उन्होंने लिखा था कि वाड्रा के बिजनेस पर रिसर्च पेपर तैयार होना चाहिए कि बिना निवेश के एक बिजनेस शुरू होता है और वो एक दिन इतना बड़ा बन जाता है। ऐसा अध्ययन मध्यप्रदेश सहित अनेक राज्यों में पाए जाने वाले सुधीर शर्माओं पर भी होना चाहिए।

इस मामले में मध्यप्रदेश पुलिस के डीआईजी स्तर के दो अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। मुख्यमंत्री के निजी सहायक प्रेम प्रसाद का भी नाम आ रहा है जिनसे एसटीएफ पूछताछ करने वाली है।

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राज्यपाल के पूर्व ओएसडी धनराज यादव और कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना आदि के नाम भी एफआईआर के पन्नों में दर्ज हैं। शिवराज सिंह इस मामले में कम बोल रहे हैं। नई दुनिया में शिव राज सिंह चौहान का बयान छपा है जिसमें वो बीजेपी विधायकों से कह रहे हैं कि आपको सर झुकाने की ज़रूरत नहीं हैं। बचाव की मुद्रा में न रहें। आक्रामक रहें। जनता के बीच जाकर यह अहसास भी करायें कि अच्छे दिन आ गए हैं। लेकिन उन बुरे दिनों की किसी की नैतिक जिम्मेदारी बनती है जो संगठित रूप से मध्य प्रदेश में फर्जी तरीके से लाखों करोड़ों रुपये लेकर डॉक्टर बनाया जा रहा था। डॉक्टर से लेकर सिपाही तक में कथित रुप से घोटाला।