यह ख़बर 18 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

सीमा विवाद ने चीनी राष्ट्रपति के दौरे का रंग उतार दिया?

नमस्कार मैं रवीश कुमार। पाकिस्तान जैसा तो होने का सवाल ही नहीं था, जैसा जापान के साथ हुआ वैसा भी नहीं हुआ, पर क्या चीन के साथ जो हुआ वो उतना ही हो सकता था या होते होते कुछ कम हो गया। साबरमती से यमुना के तट पर आते-आते पानी तो बदला ही कहानी भी बदल गई।

अहमदाबाद के हयात होटल से दिल्ली के ताज होटल तक आते आते दोनों के संबंध सपनों से निकल कर ज़िंदगी के हकीकत में दिखने लगे। हयात का मतलब ज़िंदगी। लद्दाख के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास जो हुआ वही सबको वास्तविक नज़र आने लगा।

साबरमती आश्रम में गांधी का चरखा कातना या राजघाट पर गांधी की समाधि पर फूल अर्पित करना वास्तविकता से दूर लगने लगा। बताया जा रहा है कि चीन की तरफ से जो आक्रामक घुसपैठ हुई है वैसी घुसपैठ बहुत सालों में नहीं देखी गई। यही तनाव अगर पाकिस्तान के साथ होता तो मीडिया में खाने का मेन्यू आउट हो जाता और नेता मिठाई से लेकर बिरयानी पर टूट पड़ते। हम पाकिस्तान के नागरिकों की तरह रहमान मलिक जैसों को विमान से नहीं उतार देते बल्कि वार्ता रद्द होने की मांग तो हो जाती। क्या पता सरकार कर भी देती।

ऐसा नहीं है कि भारत सीमा पर सक्रिय नहीं है। चीन आगे आता है तो भारत भी आता है। बताया जा रहा है कि इस बार भारत भी कम आक्रामक नहीं है।

आज सुबह चुमार में तनाव काफी बढ़ गया। चीन के हज़ार सैनिक विवादास्पद इलाके के भीतर तक आ गए। भारत ने आज नई दिल्ली में इसकी हर स्तर पर चीन से शिकायत भी की। हमारे सहयोगी बता रहे हैं कि चीन ने अपनी टुकड़ियों के लिए हेलिकाप्टर से राशन भी गिराए हैं। फिर शाम को यह खबर आई कि दोनों सेनाओं के बीच की दूरी एक किमी हो गई है और लाउडस्पीकर से बात हो रही है।

लेकिन चुमार के कार्यकारी पार्षद का इंटरव्यू चलने लगा कि चीन हमारी सीमा में 10 किमी अंदर चला आया है और सेना कह रही है कि भारत जो नहर बना रहा है वो जब तक नहीं ध्वस्त करेगा वापस नहीं जाएगी। मगर हमारे सहयोगी पुष्टि कर रहे हैं कि सिर्फ चार पांच किमी तक ही अंदर आया है।

उधर, नई दिल्ली में आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मौजूदगी में 12 करार हुए। सोमवार तक खबर थी कि चीन पांच साल में 100 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा मगर 20 अरब डॉलर के निवेश की ही घोषणा हुई जो जापान की तुलना में कम है। प्रधानमंत्री ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि भारत ने चीन से चिंता प्रकट की है, हमारे व्यापार की गति कम हुई है और असंतुलन भी बढ़ा है। भारतीय कंपनियों के लिए चीन के बाज़ार में प्रवेश और निवेश के अवसर आसान कराए जाएं।

चीन के राष्ट्रपति ने आश्वस्त भी किया है कि ठोस कदम उठाएंगे। चीन को भी भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया गया है। दोनों देशों के बीच आर्थिक गतिविधियों के लिए पांच साल की रूप रेखा बनाई गई है। प्रधानमंत्री ने इस बात के लिए राष्ट्रपति का आभार प्रकट किया कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए नाथुला से एक नया रास्ता खोलने पर सहमति हो गई है। यह नया रास्ता उत्तराखंड के रास्ते के अतिरिक्त होगा। नाथुला के रास्ते से आप मोटर से कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री के ये शब्द हैं कि हमने संबंधों को बढ़ाने की बात की है तो हमने मित्रता की भावना से कुछ कठिन विषयों पर भी खुलकर बातचीत की है। मैंने सीमा पर जो घटनाएं हुई हैं उसकी चिंता प्रकट की है और कहा है कि इन्हें सुलझाना आवश्यक है। हमारी सीमा संबंधी समझौते और भरोसा बढ़ाने के कदमों सीबीएम से फायदा हुआ है। परंतु, मैंने सुझाव दिया है कि सीमा पर शांति और स्थिरता के लिए एलएसी की क्लैरिफिकेशन बहुत बड़ा योगदान दे सकती है। यह कई सालों से रुका हुआ है और इस कार्य को दोबारा शुरू करना चाहिए।

दोनों देश एक दूसरे के बारे में अच्छी अच्छी बातें तो कर रहे थे मगर सीमा पर कुछ और हो रहा था। चीन के राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री को अगले साल चीन बुलाया है। सीमा विवाद के बारे में यही कहा कि इतिहास की देन है। सीमा पर किसी घटना को नियंत्रित करने में दोनों ही पक्ष पूरी तरह सक्षम हैं। चीन जल्द से जल्द भारत के साथ मिलकर सीमा विवाद को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है।
जब चीन और भारत एक स्वर में बोलते हैं तो पूरी दुनिया सुनती है। बुधवार तक लग रहा था कि विदेश नीति को लेकर हमारी राजनीति चुनाव पूर्व की सियासत से निकल आई है। जब बिरयानी से लेकर तंदूरी तक का हिसाब होता था, मगर इस बार कोई नहीं कह रहा कि 150 किस्म का पकवान खिलाया जा रहा है। झूले पर झुलाया जा रहा है। सब सीमा विवाद को समझ रहे थे, मगर आज जब आक्रामक घुसपैठ की ख़बरें आईं तो फिर से वैसी बातें होने लगीं।

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क्या सीमा विवाद ने चीनी राष्ट्रपति के इस दौरे का रंग उतार दिया है। भूटान, जापान और ब्रिक्स देशों के सम्मेलन से लौटने का जो आत्मविश्वास था वो दिल्ली में आज नरेंद्र मोदी के चेहरे पर नज़र नहीं आया। साबरमती के तट पर जिस तरह बाहें फैलाकर स्वागत कर रहे थे, खुश लग रहे थे, हैदराबाद हाउस में गंभीर और संकुचित से लग रहे थे। राजनयिक में देह भाषा बॉडी लैंग्वेज का भी मूल्यांकन होता है। क्या यह दौरा सचमुच ऐतिहासिक बन पाया या भारत से ज्यादा चीन भारत में आकर कुछ कह गया।

(प्राइम टाइम इंट्रो)