यह ख़बर 12 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

पूर्व सीएजी विनोद राय की किताब पर बवाल

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। एक और किताब आ रही है इसलिए एक और विवाद आ गया है। संजय बारू, नटवर सिंह, पीसी पारख के बाद अब पूर्व महालेखाकार विनोद राय की किताब आ रही है। टाइम्स नाऊ के अर्णब गोस्वामी से बात करते हुए पूर्व महालेखाकार यानी सीएजी ने कहा है कि मनमोहन सिंह चाहते तो 2-जी घोटाला रोक सकते थे तब यूपीए−2 का इतिहास ही कुछ और होता।

विनोद राय ने अर्णब को कहा है कि संसद की लोक लेखा समिति की बैठक के दौरान भोजन के वक्त कांग्रेस के सांसदों ने मुझसे कहा था कि प्रधानमंत्री का नाम बाहर रखा जाए। उनका नाम तो याद नहीं आ रहा, लेकिन 3−4 कांग्रेस सांसद थे। फिर विनोद राय तीन सांसदों के नाम ले लेते हैं कि लोक लेखा समिति की बैठक में संजय निरुपम, संदीप दीक्षित, अश्विनी कुमार मौजूद थे। फिर यह भी कहते हैं कि भोजन के समय किसने कहा कि पीएम का नाम न हो याद नहीं आ रहा।

जब किसने कहा नाम याद नहीं तो क्या किसी का नाम लेना उचित था। संजय और संदीप दोनों ने कहा है कि वे पीएसी के सदस्य तब बने जब सीएजी की रिपोर्ट आ चुकी थी, लिहाज़ा राय साहब झूठ बोल रहे हैं। विनोद राय भी यही बात कह रहे हैं कि तब तक रिपोर्ट आ चुकी थी तो फिर ये सांसद क्यों कह रहे थे कि पीएम का नाम नहीं आना चाहिए। वे आगे कहते हैं कि विनोद राय ने कहा कि पीएमओ से किसी ने नहीं प्रधानमंत्री का नाम हटाने या असर डालने के लिए दबाव नहीं डाला जबकि पीएमओ में कई अधिकारी उनके मित्र और सहयोगी थे और घर पर आना जाना होता था।

पीएमओ के किसी अधिकारी ने दबाव नहीं डाला, मगर कांग्रेस सांसदों ने कहा कि पीएम का नाम नहीं आना चाहिए। किसने कहा यह याद नहीं है। बाकी तारीख वगैरह तो उन्हें सब याद हैं। विनोद राय ने किताब में लिखा है कि टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कानून मंत्रालय ने पीएम को चिट्ठी लिखी वित्त मंत्रालय ने पीएम को चिट्ठी लिखी। वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने भी चेताया कहा कि इसकी समीक्षा मंत्रियों के समूह में हो। राजा ने भी पत्र लिखकर बताया कि वे क्या करने जा रहे हैं।

तब भी प्रधानमंत्री ने कोई एक्शन नहीं लिया। अगर वे राजा को रोक देते तो इतिहास आज कुछ और होता। ए राजा ने चिट्ठी में प्रधानमंत्री को सब पता दिया था, लेकिन पीएम ने साफ स्टैंड लेने के बजाए इतना लिखा कि आपकी चिट्ठी मिल गई है। कोई कार्रवाई नहीं की। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का पुराना बयान हैं कि उन्होंने राजा से पहले आओ पहले पाओ नीति के प्रति अपनी चिंता जता दी थी। आज इस इंटरव्यू के बाद बीजेपी की तरफ से प्रकाश झावड़ेकर ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो संसद में जवाब दिया था और जो फाइल पर है दोनों अलग है।

उन्होंने कभी ए राजा का विरोध नहीं किया इसका मतलब है कि वे राजा का समर्थन कर रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री को जवाब देना चाहिए। कांग्रेस जवाबदेही से नहीं बच सकती क्योंकि यह आरोप 10 जनपथ पर भी जाता है।

कांग्रेस नेता कमलनाथ ने कहा कि उन्होंने चिट्ठी लिखकर और बात कर कह दिया था कि गड़बड़ी हो रही है, मगर पूर्व प्रधानमंत्री ने कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने बड़ी गलती की।

क्या कमलनाथ ने यह बात कांग्रेस पार्टी की प्रमुख सोनिया गांधी को भी बताई थी जो यूपीए की चेयरपर्सन भी थी। प्रकाश जावड़ेकर ने दस जनपथ से जवाब मांगा तो उसके पड़ोस में मौजूद कांग्रेस मुख्यालय में अभिषेक मनु सिंघवी जवाब देने आ गए। कहा कि विनोद राय ने जो कहा है वो सीएजी की रिपोर्ट में कह चुके हैं। आज वे उसी बात को दोहरा रहे हैं ताकि किताब की बिक्री बढ़ जाए।

इन्हीं आरोपों के आधार पर अदालत में कई याचिकाएं दी गईं कि पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व वित्तमंत्री को नोटिस जारी किया जाए मगर अदालत ने नहीं माना।

तब क्यों नहीं विनोद राय ने खुद एक एफआईआर फाइल कर दी। आज उन बातों को बताने का क्या मतलब है। इसके बाद अभिषेक मनु सिंघवी पूर्व महालेखाकार को याद दिलाने लगे कि उन्हें सिर्फ कांग्रेस की सरकारों की रिपोर्ट ही क्यों याद रहती है। गुजरात सरकार पर सीएजी की रिपोर्ट की बात क्यों नहीं करते। जिसमें सीएजी ने कहा है कि राज्य सरकार ने साढ़े पांच हज़ार करोड़ का राजस्व सरप्लस गलत दिखाया।

गुजरात सरकार कई प्रकार के करों को वसूलने में नाकाम रही। आठ हज़ार से 16 हज़ार करोड़ का बकाया रह गया। इस बारे में राय साहब की कोई किताब नहीं आई है।

इंटरनेट पर विचरण कर रहा था तो 3 दिसंबर 2012 की इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट मिली। सीएजी से एक रिटायर अफसर और पोस्ट एंड टेलिकम्युनिकेशन के पूर्व महानिदेशक आरपी सिंह का बयान था। उनके सहयोगी पीएसी के मुखिया मुरली मनोहर जोशी के घर गए वो भी सरकारी छुट्टी के दिन। पीएसी की रिपोर्ट बनाने में मदद करने के लिए। सीएजी मुख्यालय की तरफ से उन्हें इस रिपोर्ट पर दस्तखत करने के लिए कहा गया। जबकि वे रिपोर्ट से सहमत नहीं थे।

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पीएसी की रिपोर्ट में प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, अटार्नी जनरल की आलोचना की गई थी। ज़ाहिर है इसका भी खंडन हुआ ही होगा मगर ज़िक्र इसलिए किया कि ऐसी बातों को कब तक और कहां तक गंभीरता से लिया जाए।

विनोद राय ने जो कहा उसमें नया क्या है। यह मामला अदालत में है। केंद्र में सरकार भी बदल गई है। क्या बीजेपी इस मामले को राजनीतिक तौर पर ही उठाती रहेगी या अधिकारिक तौर पर कोई कदम भी उठाएगी। क्या बीजेपी मानती है कि उनके खिलाफ भी आपराधिक मामला बनता है। कमलनाथ के बयान के बाद कांग्रेस क्या करेगी। शीला दीक्षित के बयान की तरह किनारा करेगी या विनोद राय के बयान की आलोचना की औपचारिकता निभा कर किनारे हो जाएगी।

(प्राइम टाइम इंट्रो)