यह ख़बर 21 अक्टूबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

कभी ऐसा तोहफा, देखा सुना है!

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। मनोहर लाल खट्टर हरियाणा के नए और दसवें मुख्यमंत्री होंगे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हटने के बाद रोहतक के लोगों को ज्यादा निराश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि खट्टर साहब का पैतृक गांव बनियानी रोहतक में ही है। खट्टर ने राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है और 26 अक्तूबर को शपथ ग्रहण होगा। हरियाणा में दो दशक बाद कोई गैर-जाट नेता मुख्यमंत्री बना है।

इसी के साथ दौड़ में शामिल बाकी धावक अब मंत्री बनने की रेस में दौड़ेंगे। मनोहर लाल खट्टर भले ही रोहतक के हैं, मगर चुने गए हैं करनाल शहर से। हालांकि बनियानी गांव में जश्न का माहौल है। करनाल में भी दिवाली मन रही है। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में पहली बार चुनाव लड़ा और हरियाणा में सबसे अधिक मतों से जीते भी। वे चौथे ग़ैर जाट नेता हैं जो हरियाणा के मुख्यमंत्री बने हैं। उनसे पहले भगवत दयाल शर्मा, भजनलाल और बनारसी दास गुप्त भी हरियाणा में ग़ैर जाट मुख्यमंत्री रहे हैं।

60 साल के खट्टर ने 17 साल की उम्र में अपना गांव छोड़ दिया था और दिल्ली के चांदनी चौक पर अपने भाई की दुकान पर काम करने लगे थे। आगे चलकर आरएसएस से जुड़े और पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। अविवाहित हैं और टूशन भी पढ़ाया है। 200 गज का एक मकान है और छह लाख बीस हज़ार का कर्ज है। यही इनकी कुल संपत्ति है। परिवार में पांच भाई हैं और दो बहने लेकिन सबसे बड़े हैं मनोहर लाल खट्टर।

खट्टर के बारे में कहा जाता है कि उन्होने भी संघर्ष के दिनों में गुजरात के शंकर सिंह वाघेला की तरह मोदी को बाइक पर घुमाया है। बीजेपी में लगता है कि शोले वाले जय वीरू की कहानी चल रही है। शंकर सिंह वाघेला को कहीं अफसोस न हो रहा हो। 1996 में जब मोदी हरियाणा के प्रभारी थे तब खट्टर ने उनके साथ काम किया है। गुजरात में भूकंप के बाद हुए चुनाव में कच्छ के चुनाव का प्रबंध देखने के लिए मोदी ने उन्हें बुलाया था। वाराणसी में जब मोदी चुनाव लड़ रहे थे तब खट्टर ने वाराणसी के 50 वॉर्ड का जिम्मा संभाला था। 1980 में वे संघ से जुड़े और बाद में बीजेपी से।

चवालीस साल के गुमनाम राजनीतिक संघर्ष के बाद वे मुख्यमंत्री पद पर पहुंचे हैं। इसलिए खट्टर साहब की किस्मत की चर्चा करने वाले उनके चार दशक को भी ज़रूर ध्यान में रखें। खट्टर साहब के कुछ लोकप्रिय बयान भी हैं जैसे आज़ादी की भी सीमा होती हैं। लड़कियां ढंग के कपड़े पहनें तो लड़कें देखेंगे नहीं। भारतीय संस्कृति के लिहाज़ से खाप के कुछ फैसले ठीक हैं।

राजनीति अजब गजब चमत्कार दिखाती है। ओम प्रकाश चौटाला ने जींद में ताऊ देवीलाल की जयंती से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की थी, लेकिन इस अभियान का अंत भी ताऊ देवीलाल के नाम पर बने स्टेडियम से ही होगा। जब 26 अक्तूबर को पंचकूला के देवीलाल स्टेडियम में मनोहर लाल खट्टर शपथ लेंगे।

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं हुआ है। देवेंद्र फड़नवीस दौड़ में आगे तो चल रहे हैं मगर उनकी दौड़ अभी पूरी नहीं हुई है। कभी उनके साथ कोई और दौड़ने लगता है तो कभी कोई और। आठ सौ मीटर की इस रेस में फड़नवीस आगे तो चल रहे थे मगर अब लग रहा है कि कोई और है जो दौड़ते हुए आगे निकल रहा है।

अब समझ आया कि क्यों नितिन गडकरी नतीजे आने के दिन से ही खुद को दिल्ली के लिए उपयुक्त बता रहे थे। मंगलवार दोपहर उनका नाम तेजी़ से दौड़ने लगा। वे नागपुर पहुंचे तो हवाई अड्डे पर सोलह विधायक स्वागत में आ गए। घर पहुंचे तो बीस बाईस विधायक पहंच गए और गडकरी से मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी स्वीकार करने के लिए कहने लगे। महाराष्ट्र चुनाव में गडकरी ने सौ से भी ज्यादा रैलियां की हैं। अखिलेश शर्मा की रिपोर्ट कहती है कि गडकरी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और ओबीसी नेता सुधीर मुनघंटीवार का नाम आगे दौड़ाना चाहते हैं, लेकिन लगता है कि सुधीर मुनघंटीवार गडकरी को अपना नेता मानते हैं। उन्होंने भी बयान दे दिया कि गडकरी जी राष्ट्र के साथ-साथ महाराष्ट्र की चिंता करें और मुख्यमंत्री बनें।

अरुण जेटली ने बरखा दत्त से मुख्यमंत्री के सवाल पर कहा है कि जो फ्रंट रनर हैं वो फ्रंट रनर ही हैं। कहीं इसका मतलब तो नहीं कि जो रेस में दौड़ रहे हैं वो दौड़ते ही रह जाएंगे और कोई और आगे निकल जाएगा। उधर ,नरम पड़ चुकी शिवसेना और नरम हो गई है और बीजेपी की बात मानने के लिए तैयार हो गई है।

इससे पहले कांग्रेस की तरह शिवसेना ने भी एनसीपी के ऑटोमेटिक समर्थक की निंदा की है। अखबार सामना में रोज़ किसी न किसी को निशाना साधने वाली शिवसेना ने आज एनसीपी के इस प्रयास को वानरचेष्टा का नाम दिया है। काकचेष्टा की मुझे जानकारी थी लेकिन वानरचेष्टा आज सुना है। हो सकता है कि ये चेष्टा भी पुरानी और पौराणिक हो।

सामना का संपादकीय लिखता है कि चुनाव से पहले पवार के लिए बीजेपी हाफ चड्ढी पार्टी थी। अपने पाप छिपाने के लिए एनसीपी सत्ता में आना चाहती है। पवार का सेक्युलरवाद झूठा है। पीएम ने एनसीपी को नेचुरली करप्ट पार्टी कहा था। जनता ने एनसीपी कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया है। ऐसे लोग सत्ता में आकर विकास की गंगा को अपवित्र कर देंगे। हमारी कोशिश है कि विकास की गंगा अपवित्र न हो।

कहीं, शिवसेना यह तो नहीं कहना चाहती कि एनसीपी कोशिश न करे क्योंकि इससे उसकी कोशिशें गड़बड़ा जा रही हैं। जो लोग बीजेपी को जीतते देख इस पार्टी में शामिल होने का मन बना रहे हैं, वो पहले से समझ लें कि काम बहुत करना होगा। अभी जश्न की शुरुआत हुई नहीं कि बीजेपी ने राज्यों के प्रभारियों की घोषणा कर दी और उन्हें नया काम दे दिया। महाराष्ट्र के प्रभारी राजीव प्रताप रूडी को अब आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का जिम्मा दिया गया है और उनकी जगह जेपी नड्डा महाराष्ट्र का जिम्मा संभालेंगे।

खैर अब बढ़ते हैं दूसरी खबर की तरफ। कुछ भी कहिये दिवाली अगर मनी है तो सूरत में। इस दिवाली के सामने बीजेपी की दो-दो दिवालियां फेल लगती हैं।

इस स्टेडियम में आप सैंकड़ों कारों की तस्वीरें देख रहे हैं। कुल 491 कारें हैं जो हरि कृष्णा एक्सपोर्ट के बेहतरीन कमर्चारियों को दिवाली के तोहफे के तौर पर दी गईं हैं। 525 कर्मचारियों को साढ़े तीन लाख के आभूषण दिए गए। और उन 200 कर्मचारियों को दो कमरे का फ्लैट दिया गया जिनके पास घर नहीं था। इसे देखकर आप अपनी अपनी कंपिनयों को लेकर उदास न हों। हरिकृष्णा एक्सपोर्ट के चेयरमैन सावजीभाई ढोलकिया ने तो कमाल ही कर दिया है। 1200 कर्मचारियों को ऐसे तोहफे दे दिए कि अब किसी को ग्लास सेट, मिठाई और काजू बादाम वाली दिवाली गिफ्ट ठीक ही नहीं लग रही है।

मीडिया के फुफेरे भाई सोशल मीडिया पर भी इस खबर की खूब चर्चा है। इतना ही नहीं इस साल से वे अपने हीरा पालिश करने वाले कामगारों को डायमंड इंजीनियर कहा करेंगे। इन कर्मचारियों के दम पर कंपनी ने इस साल एक अरब डॉलर का निर्यात किया है। ज़रूर इससे ज्यादा निर्यात करने वाली कई कंपनियां हैं, मगर सावजी भाई जैसा कोई प्रकाश में नहीं आया है। कंपनियों में कुछ कर्मचारियों को बोनस ज़रूर मिलते हैं, मगर दो सौ कर्मचारियों को फ्लैट दे देना ये हुई न बात।

वैसे खबरों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी अमेठी में कोई 12 हज़ार साड़ियां बंटवाईं हैं। लेकिन कार और मकान के सामने कहां ये साड़ियां। चलिये ये भी ठीक ही है।

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सावजीभाई ढोलकिया की एक बात मुझे तो अच्छी लगी और किसी और को चुभ सकती है। ढोलकिया साहब ने प्रेस से कहा कि मेरे कर्मचारियों ने काफी मेहनत की है। मैं सभी मुनाफे को खुद नहीं रख सकता। मुझे इनाम तो देना ही था। वैसे पिछले साल भी इन्होंने सौ कर्मचारियों को कार तोहफे में दी थी। सावजीभाई आज हमारे साथ हैं। प्राइम टाइम में।

(प्राइम टाइम इंट्रो)