यह ख़बर 27 जून, 2014 को प्रकाशित हुई थी

प्राइम टाइम इंट्रो : सरकारी भर्तियों में भारी घोटाला

नई दिल्ली:

नमस्कार, मैं रवीश कुमार। मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की व्यापकता की चपेट में बीजेपी के नेताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं के भी नाम आने लगे हैं। पिछले एक साल से यह घोटाला जांच के स्तर पर ही है और आए दिन किसी न किसी नए मोड़ पर पहुंच जाता है।

व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम मेडिकल, इंजीनियीरग से लेकर कई प्रकार की सरकारी नौकरियों में भर्ती को आयोजित करता है। इसके माध्यम से करीब डेढ़ लाख भर्तियां हुई हैं। उनमें कितनी वाजिब हैं और कितनी नाजायज अब तो जांच से ही पता चलेगा मगर संदिग्ध तो सब हो गए हैं।

पुलिस की पाइप द्वारा जल छिड़काव का यह दृश्य भोपाल स्थित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के घर के बाहर का है। जब कांग्रेस के पार्टी के नेता कायर्कर्ता व्यापम घोटाले को लेकर घेराव करने पहुंच गए।

शुक्रवार की सुबह कई न्यूज चैनलों पर यह खबर चली कि व्यापम घोटाले के मुख्य आरोपियों में से एक पंकज त्रिवेदी ने बयान दिया है कि उन्होंने 2012 में फूड इंस्पेक्टर की नौकरी में मिहिर नाम के व्यक्ति को पास कराने में मदद की है। कथित बयान की कॉपी भी चैनलों पर चलने लगी, जिसमें कहा गया है कि मिहिर की सिफारिश गिरफ्तार पूर्वमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने की थी, क्योंकि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े पदाधिकारी सुरेश सोनी का करीबी था।  मिहिर आरएसएस के पूर्व प्रमुख दिवंगत केसी सुदशर्न का सहायक भी था। इस मामले में गिरफ्तार होने के बाद इस वक्त मिहिर जमानत पर बाहर है।

एसटीएफ के सूत्रों ने हमारे सहयोगी को बताया है कि दिवंगत नेता सुदर्शन या सोनी की भूमिका इस घोटाले में सुनिश्चित नहीं की जा सकती है, इसलिए अभी तक एसटीएफ ने इन्हें आरोपी नहीं बनाया है। पंकज त्रिवेदी ही व्यापम का निदेशक और परीक्षा नियंत्रक था जो अब जेल में है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि कानून अपना काम करेगा हमें चिन्ता नहीं है।

छह जुलाई 2013 को इंदौर पुलिस के एक छापे से यह घोटाला सामने आता है। अगस्त 2013 में इसे एसटीएफ को सौंप दिया जाता है। अगस्त से लेकर मई तक इस मामले में धीमी प्रगति के कारण इस साल मई में हाईकोर्ट अपनी निगरानी में ले लेता है और एसटीएफ की आलोचना भी करता है। फर्जी तरीके से न जाने कितने मुन्ना भाई डॉक्टर बन गए। यही नहीं घूस देने वाले छात्रों को लाभ पहुंचाने के लिए अन्य भर्ती परीक्षाओं के भी नियम बदले गए। साल 2012 तक कई भर्तियां संबंधित विभागों से ही होती थीं, मगर उनसे लेकर व्यापम को दे दी गईं।

सब इंस्पेक्ट की भर्ती में 33 प्रतिशत फिजिकल टेस्ट के अनिवार्य थे। कथित रूप से घूस देने वाले परीक्षार्थियों को लाभ पहुंचाने के लिए इसे 2012 में 20 प्रतिशत किया गया और फिर 2013 में फिजिकल टेस्ट को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया। जब घूस देने वाले छात्रों के सब इंस्पेक्टर में नहीं हुए तो कथित रूप से उन्हें एक और मौका देने के लिए परिवहन आरक्षक की वैकेंसी निकाली गई।

इस आरटीओ कांस्टेबल की भर्ती के लिए भी फिजिकल टेस्ट अनिवार्य हुआ करता था। 2012 में इस नियम को ही समाप्त कर दिया गया। जनवरी 2012 तक परिवहन आरक्षक की भर्ती पुलिस ही करती थी। मगर जुलाई 2012 में 8000 पदों की भर्ती का जिम्मा व्यापम को सौंप दिया गया।

मध्य प्रदेश के अखबारों में यह भी छपा है कि परिवहन आरक्षक की भर्ती के कुछ नियम ऐसे बनाए गए थे, जिससे सिर्फ मध्य प्रदेश के लोगों को ही नौकरी मिले। मगर जब यह पता चला कि दूसरे राज्यों के परीक्षार्थी ज्यादा घूस देते हैं तो इस नौकरी के लिए अनिवार्य दो नियमों को भी बदला गया। अस्सी के दशक में अर्जुन सिंह के बनाए नियम की नौकरी से पहले राज्य के रोजगार कार्यालय में पंजीकरण जरूरी है और 98 में दिग्विजय सिंह ने नियम बनाया था कि दसवीं और बारहवीं पास मध्य प्रदेश से ही होना चाहिए। पहले रोजगार कार्यालय में पंजीकरण वाला नियम जुलाई 2012 में बदला गया, फिर जनवरी 2013 में दसवी बारहवीं पास वाला नियम समाप्त कर दिया गया। तब साढ़े सात हज़ार भर्तियां हुईं थी।

व्यापम घोटाले का एक और पहलु है, सूचना का अधिकार कानून। पहली बार इसका इस्तमाल घूस देने और सिस्टम की आंख में धूल झोंकने में हुआ है। जिन छात्रों ने घूस दी उनसे कहा गया कि वे अपनी उत्तर पुस्तिका खाली छोड़ आएं। इन छात्रों को कंप्यूटर में छेड़छाड़ कर नंबर देकर पास कर दिया गया। मगर इनकी कॉपी पर तो था ज़ीरो। तब एक आइडिया ये निकाला गया कि ये सभी आरटीआई के तहत अपनी उत्तर पुस्तिका मांगे। जिसे ऑप्टिक मार्किंग शीट कहते हैं। रिजल्ट आने के बाद उत्तर पुस्ितका पर गोले बनाए गए और कॉपी जमा हो गई। इस स्तर के करामात हुए हैं।

पंकज त्रिवेदी व्यापम के निदेशक थे तो उन्हीं छात्रों की आरटीआई मंजूर हुई, जिन्होंने घूस दिए थे या फिर वे सब व्यापम में पास हो गए, जिन्होंने आरटीआई लगाई थी। जांच चल रही है और फैसला नहीं आया है, इसलिए जहां जहां कथित लगाना छूट गया है, वहां-वहां कथित का प्रयोग मान लिया जाए।

पंकज त्रिवेदी के भाई पीयुष त्रिवेदी राजीव गांधी प्राद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति थे। सुधीर शर्मा जो बीजेपी के पदाधिकारी थे और एक टीचर से माइनिंग टाइकून टाइप बन गए इन दिनों फरार हैं और मध्य प्रदेश की पुलिस अभी तक नहीं पकड़ पाई है। सुधीर शर्मा और जेल में बंद मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के संबंधों के कई प्रसंग मीडिया में आ चुके हैं। कथित रुप से।

अब इस एक और पहलु को ध्यान में रखियेगा, सुप्रीम कोर्ट ने मृदुलधर बनाम भारत सरकार के मामले में फैसला दिया था कि मेडिकल संस्थाओं पर निगरानी के लिए नियामक बने। इस फैसले के बाद एडमिशन और फी रेगुलेटरी कमेटी एएफआर सी बनाई जाती है। इसके चेयरमैन बनाए जाते हैं हर्षवर्धन तिवारी जो 2007 से 2013 तक इस पद पर रहे। दिग्विजय सिंह सरकार ने इस हर्षवर्धन तिवारी को कई तरह की अनियमितताओं और अकुशलता के आरोप में भोपाल विश्वविद्यालय के कुलपति पद से बर्खास्त कर दिया था।

इस घोटाले में शामिल लोगों के नाम और करतूत का जो स्वर्णिम चतुष्कोण बनता है, वो इतना तो इशारा करता ही है कि यह घोटाला किसी किरानी, चपरासी के खुराफाती दिमाग की देन नहीं है। इसे अंजाम देने वाले राजनीतिक पृष्ठभूमि का लाभ उठाते रहे और लाभ पहुंचाते भी रहे।

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घोटाला हुआ है कि क्योंकि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि एक हजार भर्तियां गैरकानूनी हुई हैं। यह हमारे माथे पर कलंक है। राजनाथ सिंह भी जोरदार बचाव कर रहे हैं। कांग्रेस सीबीआई जांच की माग कर रही है। जिन छात्रों का इन वर्षों के दौरान हक मारा गया, उनके सपनों की लूट हुई वह मांग करने लायक भी नहीं बचे हैं।