यह ख़बर 10 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या मोदी सरकार ने संभावनाओं की नई लकीर खींची?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। क्या वित्त मंत्री अरुण जेटली का बजट साहसिक और क्रांतिकारी है, जिसकी अपेक्षा मार्केट और बिज़ कम्युनिटी को थी। बिज़ कम्युनिटी बिजनेस बिरादरी को कहते हैं। यह बजट मनमोहन काल से किन मायनों में एक नया मोड़ लेती है और किन मायनों में उन्हीं रास्तों पर चलती नज़र आई। क्या जेटली या मोदी ने इस बजट के ज़रिये कोई नया या बड़ा आर्थिक आइडिया पेश किया जिसका इंतज़ार ढुलमुल चल रही भारतीय अर्थव्यवस्था को था। सीमाएं तो ज़ाहिर हैं, मगर उन्होंने संभावनाओं की नई लकीर क्या खींचीं।

एक गैर-कम्युनिस्ट सज्जन ने कहा कि राजनीतिक परिवर्तन से अब आर्थिक परिवर्तन नहीं होगा क्योंकि आइडिया तो वही है।

जेटली के बजट में भी चिदंबरम के बजट की तरह अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का ज़िक्र है जो 2008 के साल से चली आ रही है। मोदी सरकार अगले तीन साल में 7−8 प्रतिशत की विकास दर हासिल करना चाहती है और वित्तीय घाटा 2016−17 तक तीन प्रतिशत तक लाना चाहती है। जिसे चिदंबरम 2013−14 में 5.7 प्रतिशत से घटाकर 4.5 प्रतिशत पर छोड़ गए हैं। इसका एक मतलब यह भी होगा कि सरकार अपने खर्चे में लगातार कमी करेगी। अगर इसे होना है तो सरकार अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए पैसे कहां से लाएगी। चुनाव के समय काला धन निकाल कर करदाताओं में बांटने तक के वादे होते रहते थे, लेकिन इस बजट में इस पर चिन्ता से ज्यादा कुछ नहीं जताया गया है।
सरकारी खर्चे के बेहतर प्रबंधन के लिए व्यय प्रबंधन आयोग का प्रावधान है जिसकी बात 2011 से हो रही है। पुराना इसलिए बता रहा हूं ताकि पता चले कि नया क्या हुआ है। गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स जीएसटी पर भी यही कहा कि बात करने का टाइम चला गया, मगर साफ-साफ नहीं कहा कि कब और कैसे लागू करेंगे।
रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स एक बड़ा विवाद था, इसे समाप्त करने की बात नहीं की है, पर संकेत दिया कि आगे से इसके नाम पर प्रताड़ित नहीं किया जाएगा।

जीएसटी और रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के संदर्भ में आज उद्योग जगत को लगा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ एक बढ़िया मैनेजर नहीं बल्कि राजनेता भी हैं। इसलिए उनके बजट में दिल्ली मुंबई का चुनाव है तो पूर्वोत्तर के राज्य भी हैं। नोबल पुरस्कार से वंचित कई अर्थशास्त्री मोदी आगमन की आहट काल से ही सब्सिडी समाप्ति की दलीलें दे रहे थे। ऐसा नहीं हुआ बल्कि बेहतर प्रबंधन और लक्ष्य के नाम पर ज़रूर कुछ योजनाओं में कमी बेसी की गई है।

सब्सिडी पर क्या हुआ। फर्टिलाइज़र सब्सिडी 67970 करोड़ से बढ़कर 72970 करोड़ बढ़ गई है। करीब पांच हज़ार करोड़ की वृद्धि है।

फूड सब्सिडी पिछली बार 92000 करोड़ का था जो बढ़कर 115000 करोड़ हो गया है। मनरेगा की राशि 33 हज़ार से बढ़कर 34000 करोड़ हो गई है।

2013−14 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का बजट 21700 करोड़ था इस बार यह 14391 करोड़ दिखाई पड़ रहा है।  13−14 में सर्वशिक्षा अभियान का बजट था, 27258 करोड़ जो अब बढ़कर 28258 करोड़ हो गया है। 2013−14 में इंदिरा आवास योजना का बजट था 15184 करोड़ था और रुरल हाउसिंग पर 6000 करोड़ था। जेटली ने दोनों मदों को मिला दिया है और बजट रखा है 16000 करोड़। यानी इस मद में 5260 करोड़ कम हो गए हैं।

पेयजल आपूर्ति और ग्रामीण स्वच्छता का बजट बिल्कुल नहीं बदला है। 15260 करोड़ ही है। मिड डे मिल का बजट भी वही है 13215 करोड़।

पूर्वोत्तर राज्यों और किसानों के लिए एक चैनल आ रहा है। मदरसों को आधुनिक बनाने के लिए 100 करोड़ की घोषणा हुई, लेकिन एक्सपेंडिचर बजट वोल्यूम टू के पेज 249 से पता चलता है कि मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन का पैसा कम हुआ है। पिछले साल 160 करोड़ दिया गया था इस बार 113 करोड़।

रक्षा और बीमा सेक्टर में एफ डी आई का बढ़ना एक बड़ा कदम माना जा रहा है। बीमा क्षेत्र में एफ डी आई का बीजेपी विपक्ष में विरोध किया करती थी।

मौजूदा सरकार ठंडे बस्ते में डाल दिए गए एस ई ज़ेड को भी बहाल करेगी। बुनियादी ढांचे पर ज़ोर देने के लिए पी पी मॉडल की शर्तों को आसान और बेहतर किया जाएगा। कृषि क्षेत्र में वेयरहाउसिंग और लंबे समय के कर्ज़ के लिए पांच पांच हज़ार करोड़ का प्रावधान किया गया है।

लघु बचत में गिरावट पर सरकार चिन्तित है, इसके लिए पीपीएफ को एक लाख से डेढ़ लाख कर दिया गया है। किसान विकास पत्र फिर से जीवित हो गया है और नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट में बीमा भी शामिल होगा। सभी परिवारों के पास दो बैंक खाते हो इसके लिए समयबद्ध कार्यक्रम लांच होगा।

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और सरकारी बैंकों के विनिवेश से भी पैसे जुटाने की बात है। टैक्स में बहुत छूट तो नहीं मिली मगर इस कड़की में भी जेटली ने कई राहत दिए हैं। सोशल मीडिया में पता नहीं क्यों कुछ लोग सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए 200 करोड़ दिए जाने पर नाराज़ हो गए। नाराज़ होने वाले इन नकारात्मक लोगों को तब क्यों नहीं नाराज़गी आई जब आठ दिन पहले यानी 2 जुलाई को गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने अपने पहले बजट में 500 करोड़ का प्रावधान किया। नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री काल में भी 200 करो़ड़ रुपये दिए जा चुके हैं। मगर अब यह मूर्ति केंद्र राज्य सहयोग से बनकर तैयार होगी, लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे पब्लिक और प्राइवेट साझीदारी से पूरा करने की बात कही थी।

2500 करोड़ की प्रस्तावित योजना में प्राइवेट पार्टी का तो पता नहीं मगर सरकारों ने 800 करोड़ दे दिया है। 100 करोड़ की 29 ऐसी योजनाएं शुरू हुई हैं जिनके औचित्य पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। कई मामलों में ये योजनाएं प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए हैं तो कई मामलों में खानापूर्ति प्रतीत होती हैं। जैसे छह लाख गांवों वाले भारत के लिए गांवों में पहली बार कारोबार करने वालों की मदद क्या 100 करोड़ के फंड से हो पाएगी।
100 करोड़ में वन वंधु कल्याण योजना से क्या होगा
100 करोड़ में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से क्या होगा
100 करोड़ से लखनऊ और अहमदाबाद मेट्रो का क्या होगा
100 करोड़ का यंग लीडर प्रोग्राम किस लिए हैं
100 करोड़ से नदियों के घाटों का विकास सौंदर्यीकरण की योजना से क्या होगा
100 करोड़ नदियों को जोड़ने पर प्रोजेक्ट बनाने के लिए दिए गए हैं

100 करोड़ गुड गवर्नेंस प्रोग्राम है। बताइये इतने बड़े देश का एक से क्या होगा। वैसे गुटखा पर टैक्स बढ़ गया है। इतना सौ नंबर है कि कहीं सौ नंबर न डायल हो जाए। इतनी मेहनत से तैयार की किए गए इस बजट में विपक्ष को कोई दिशा नहीं दिखी है, किसी को लगता है कि चिदंबरम वाला ही टाइप हो गया है तो किसी को कोई नया बिग आइडिया नहीं मिला।

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अंग्रेजी चैनलों पर आने वाले उद्योगपतियों की प्रतिक्रिया देखते बनी। कई लोगों ने इंटेंट नामक विशेषण पर विशेष ज़ोर दिया। इंटेंट मतलब मंशा। चैनलों पर जब बड़े लोग बजट का विश्लेषण कर रहे थे, तभी सेंटिमेंट वाला सेंसेक्स सेंटीमेंटल हो गया और दिन भर गिरता पड़ता रहा। प्राइम टाइम...