यह ख़बर 16 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को झटका

नई दिल्ली:

नमस्कार.. मैं रवीश कुमार। उन्होंने सही कहा कि ये क्या है। है क्या पहले मुझे इसकी डेफनिशिन समझनी पड़ेगी। डेफनिशन मने परिभाषा। उपरोक्त पंक्ति में उन्होंने हैं गृहमंत्री राजनाथ सिंह और ये क्या है में ये है लव जिहाद।

जब 12 सितंबर को यानी उत्तर प्रदेश में मतदान से 24 घंटे पहले दिल्ली में संवाददाता ने गृहमंत्री से पूछा कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने इसके ऊपर पूरी स्टोरी छापी है। पूरे देश में इसके ऊपर एक मुहीम चल रही है, आप ऐसा नहीं मानते। तो इसी के जवाब में राजनाथ सिंह ने कहा कि ये क्या है। जबकि बीजेपी, विश्व हिन्दू परिषद और संघ की तरफ से लव जिहाद को लेकर न सिर्फ मुद्दा बनाया गया, बल्कि इसके पक्ष में विश्वसनीय से लगने वाले अनधिकृत और स्वयंसिद्ध आंकड़ें भी दिए गए।

तो क्या राजनाथ सिंह मतदान से 24 घंटे पहले भांप गए थे कि नफ़रत फैला कर वोट मांगने की रणनीति फेल हो गई है। आखिर बीजेपी ने राजनाथ सिंह, वीके सिंह, उमा भारती जैसे बड़े मंत्रियों के रहते उन महंत आदित्यनाथ को क्यों आगे किया, जो लोकसभा चुनावों तक अपने क्षेत्र तक ही सीमित रहे।

13 अगस्त को लोकसभा में जब कांग्रेस की मांग पर सांप्रदायिक हिंसा पर बहस हुई, तो बीजेपी ने जवाब देने के लिए सबसे पहले महंत आदित्यनाथ को उतारा। वह भाषण काफी आक्रामक था।

बीजेपी ने यूपी के लिए चुनाव अभियान समिति में तीनों लोगों को रखा। कलराज मिश्र, लक्ष्मीनारायण मिश्र और महंत आदित्यनाथ। महंत आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक की सूची में रखा गया। अभियान को आक्रामक बनाने के लिए लव जिहाद का जुमला उठाया गया और मथुरा कार्यकारिणी में इस पर भाषण भी हुआ मगर प्रस्ताव का हिस्सा नहीं बन सका। महंत आदित्यनाथ लव जिहाद पर बोलते रहे। चुनाव आयोग ने आदित्यनाथ के खिलाफ नोएडा में धार्मिक भावना भड़का कर वोट मांगने के आरोप में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।

बीजेपी यहीं नहीं रूकी। आदित्यनाथ के साथ-साथ उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज को उतारा, जो मदरसों को यह कहकर टारगेट करने लगे कि वहां पंद्रह अगस्त के दिन तिरंगा नहीं फहराते हैं। तो कई लोगों ने सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें लगा दीं कि देखिये के बच्चे मदरसे में तिरंगा फहरा रहे हैं।

6 और 7 सितंबर के अखबारों को देख लीजिए। लोध नेता बनकर मैदान में उतरे साक्षी महाराज कहने लगे कि मदरसों में लव जिहाद का षडयंत्र चल रहा है, वह बकायदा इसके रेट रखते हैं कि अगर सरदार की लड़की हो तो 9 लाख, अगर जैन की लड़की हो तो, 8 लाख और अगर हिन्दू की लड़की हो तो सात लाख रुपये दिए जाएंगे, उन्हें प्यार में फंसा कर शादी करने के लिए। ये पैसा अरब देशों से आ रहा है।

इन बातों का कोई प्रमाण नहीं है, मगर व्हाट्स ऐप और सोशल मीडिया के ज़रिये यह ज़हर फैला दिया गया कि ऐसा हो रहा है। शायद गृहमंत्री राजनाथ सिंह इस सच्चाई को बेहतर जानते होंगे जो उनके जवाब में भी झलका कि लव जिहाद क्या है। लेकिन राजनाथ सिंह ने समय पर इसे रोका क्यों नहीं? कहीं वह अनजान बनकर इसे जारी रहने की छूट तो नहीं दे रहे थे। क्या यह उप−जनादेश लव जिहाद अर्थात नफतर की राजनीति के खिलाफ है। अगर नहीं तो वे कौन से कारण हैं जिनके आधार पर बीजेपी के खराब प्रदशर्न को समझा जाए।

जिस उत्तर प्रदेश में चार महीने पहले बीजेपी ने लोकसभा की 73 सीटें जीती हों, वहां वह विधानसभा की अपनी ही 11 में से 8 सीटें हार जाए और 3 पर ही संतोष करना पड़े। इनमें से एक सीट रोहनिया प्रधानमंत्री के क्षेत्र वाराणसी की है, जहां बीजेपी 7805 वोटों से हार गई। रोहणिया से ही नरेंद्र मोदी ने बनारस में चुनावी प्रचार की शुरुआत की थी। वहां अनुप्रिया पटेल की मां हारी हैं। चरखारी जिसे उमा भारती ने खाली की है, वहां बीजेपी तीसरे नंबर हैं और 50,805 वोटों से हारी है।

सपा सरकार के खिलाफ मुस्लिम तुष्टीकरण से लेकर कानून व्यवस्था का मुद्दा बनाया गया, लेकिन समाजवादी पार्टी 8 सीटों पर जीती और मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में भी बीजेपी को हरा दिया। इसी के साथ लोकसभा में सपा परिवार के 5 सदस्य हो गए। परिवारवाद भी चल ही गया। वहीं सहारनपुर, लखनऊ पूर्व और नोएडा में बीजेपी की जीत का अंतर 18 हज़ार से लेकर 50 हज़ार तक है।

योगी आदित्यनाथ अब महंत आदित्यनाथ हो गए हैं और यूपी में चार महीने पहले महंत बनी बीजेपी गद्दी से कुछ नीचे उतर गई है। लव जिहाद के नाम पर बीजेपी जनता का लव नहीं पा सकी।

बीजेपी की हार की इस लघुगाथा में पश्चिम बंगाल से भी एक खबर है। पंद्रह साल बाद वहां बीजेपी का कोई विधायक बना है। बशीरहाट दक्षिण सीट पर बीजेपी ने 1500 मतों से जीत हासिल की है। चौरंगी सीट पर तृणमूल जीती है, मगर सीपीएम को एक भी सीट नहीं मिली है।
 
ख़ास बात ये है कि इससे पहले 1999 में अशोकनगर विधानसभा सीट से बीजेपी के बादल भट्टाचार्य विधायक चुने गए थे, वह भी तब जब बीजेपी और तृणमूल ने साथ चुनाव लड़ा था।

लेकिन गुजरात में कांग्रेस ने उसके कब्जे से तीन सीटें जीत ली हैं और राजस्थान में चार में से तीन सीटें लेकर सचिन पायलट ने वसुंधरा के सामने अपनी वापसी की है।

उत्तराखंड में कांग्रेस से तीन और बिहार में कांग्रेस राजद और जेडीयू गठबंधन के सामने 6 सीटें हार जाने के बाद उसे लगा कि यूपी से जवाब मिल जाएगा। इसलिए यूपी में बीजेपी ने पूरा ज़ोर लगाया।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

आखिर ऐसा हुआ क्यों? सरकार और पार्टी के बीच बेहतर तालमेल रहे इसके लिए अमित शाह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। इन सबके बीच जनधन योजना, जापान की कामयाब यात्रा, काशी को क्योटो बनाने का करार, शिक्षक दिवस का विवादास्पद मास्टर स्ट्रोक, जीडीपी का सुधरना, सेंसेक्स का उछलना सब कुछ तो अच्छा हो ही रहा था। फिर भी इन उप चुनावों में बीजेपी के अच्छे दिन क्यों नहीं आए? अखिलेश यादव और सचिन पायलट के कैसे आ गए?

(प्राइम टाइम इंट्रो)