यह ख़बर 21 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

लाल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बनने की राह पर भारत

बेंगलुरू:

भारत का मंगल मिशन कामयाबी के आखिरी दौर में पहुंच रहा है। इसके साथ ही अंतरिक्ष में लाल ग्रह को लेकर चल रही रेस में भारत पहले एशियाई देश के तौर आगे निकलता दिख रहा है। खासकर जब इससे पहले चीन जैसा ताकतवर पड़ोसी नाकाम हो चुका है।

जमीन पर भारत और चीन भले ही मुस्कुराते और हाथ मिलाते नजर आएं, लेकिन दूर अंतरिक्ष में एशिया के इन दो देशों के बीच रेस लगी है। अब जबकि 24 सितंबर को भारत का मंगलयान लाल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने की तैयारी कर रहा है, भारतीय हाथी लाल ड्रैगन को पछाड़ते दिख रहे हैं।

इस जल्दबाजी के कई जमीनी और सामरिक वजहें हैं। दरअसल भारत चीन और जापान में होड़ लगी है कि मंगल पर पहले कौन पहुंचेगा। साल 2011 मंगल के लिए चीन का पहला मिशन यिंग्झू-1 नाकाम रहा था। इससे पहले साल 1998 में मंगल के लिए जापानी मिशन ईंधन की कमी से खत्म हो गया। ऐसे में भारत अब मंगल तक पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बन सकता है।

वहीं बेंगलुरू भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के प्रमुख के. राधाकृष्णन इसे रेस नहीं मानते। वह कहते हैं, 'हम किसी से मुक़ाबला नहीं कर रहे हैं। हमारा अपना कायर्क्रम और समय सीमा है। वास्तव में हम ख़ुद से मुक़ाबला कर रहे हैं।'

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

हालांकि इसरो की इस दलील से पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखा जा सकता है कि इस मिशन के पीछे गौरव सबसे अहम नहीं है। खासकर जब ये उपग्रह सिर्फ 15 महीने में दिनरात की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया ताकि पिछले साल इसे लॉन्च करने का मिला मौका कहीं हाथ से निकल ना जाए।