राजीव रंजन की कलम से : देश के लिए शहादत बड़ी या फिर "ग्लैमर"..!! फैसला आप खुद करें

मेजर वरदराजन और नायक नीरज कुमार सिंह की तस्वीर

नई दिल्ली:

ऐ मेरे वतन के लोगों.. जरा आंख में भर लो पानी... जो शहीद हुए हैं... उनकी जरा याद करो कुर्बानी..। ये लिखने या दोहराने की जरूरत इसलिए आन पड़ी है क्योंकि भले ही आज राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के दो वीर शहीदों को देश के सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र से  सम्मानित किया हो, पर आम तो खास लोग भी शायद ही उन्हें याद रख पाएंगे। इसका एक नजारा आज राजपथ पर भी देखने को मिला जब राष्ट्रपति इन वीर शहीदों की पत्नियों को वीरता सम्मान भेंट कर रहे थे, न तो इनके नाम पर बहुत ज्यादा तालियां बजीं और न ही देशभक्ति के नारे लगाए गए। हां, इसके स्थान पर मोदी और ओबामा के नाम पर नारे जरूर लगे।

लोगों ने जबरदस्त उत्साह के साथ इन दोनों का स्वागत किया। हर जगह अब मोदी-ओबामा के ही चर्चे है। होना तो ये चाहिए था कि 66वें गणतंत्र दिवस के मुख्य हीरो के तौर पर लोग उन अमर शहीदों की जय-जयकार करते जिनकी क़ुर्बानी से आज हम सभी सुकून के साथ गणतंत्र दिवस समारोह को देख पाए।     

आइए अब जानते हैं कि वो कौन वीर सपूत हैं जिन्होंने हमारे और आपके लिए अपनी जान की कुबार्नी दी। पहले बात नायक नीरज कुमार सिंह की। बात पिछले साल अगस्त की है। कुपवाड़ा के जंगलों में आतंकियों के जबरदस्त गोलाबारी के चपेट में नायक नीरज का साथी आ गया। अपनी जान की परवाह न करते हुए नायक नीरज ने अपने साथी को बचाया। एक आतंकी ने नीरज के ऊपर ग्रेनेड फेंका और भारी गोलाबारी करने लगा। नीरज ने अद्भुत साहस दिखाते हुए आतंकी के करीब जाकर उसे गोली मार दी। उसी दौरान एक-दूसरे आतंकी ने उस पर हमला किया जिससे उनकी राइफल जमीन पर गिर गई और सीने में गोली लग गई। बुरी तरह से घायल होने के बावजूद अदम्य साहस का परिचय देते हुए उन्होंने उस आतंकी को दबोच लिया और उसके हथियार छीन लिए और अंततः उसे मार डाला। जब तक वो होश में रहे मैदान छोड़ने को तैयार नहीं थे। बेहोश हो जाने पर उन्हें वहां से निकाला गया, लेकिन तब तक उनकी जान जा चुकी थी।

नायक नीरज के दो बेटे हैं। उनकी पत्नी पद्मेश्वरी देवी अपने पति को याद करते वक्त रो पड़ीं और कहती हैं, मुझे खुशी है ये अवार्ड मिला, लेकिन अगर वो होते तो और अच्छा लगता। पद्मेश्वरी देवी ये भी कहती हैं कि बच्चे तो समझते हैं कि पापा ड्यूटी पर हैं। छोटा वाला बेटा तो खुद भी फौज में जाने की जिद करता है और मैं भी चाहूंगी की मेरे दोनों बच्चे फौज में जाएं।
         
वहीं, मेजर मुकुन्द वरदराजन को जब पिछले साल 25 अप्रैल को कश्मीर के शोपियां में खबर मिली की एक गांव में तीन आतंकी छिपे हैं। जैसे ही खबर मिली टीम के साथ निकल पड़े। ऑपरेशन का नेतृत्व करते हुए उस घर में घुसे जहां आतंकी छिपे थे। कमरे में छिपे आतंकी को ग्रेनेड से मार गिराया। जबकि उस वक्त आतंकियों के साथियों ने उन पर जबरदस्त गोलाबारी शुरू कर दी। बुरी तरह से घायल होने के बावजूद दूसरे आतंकी को मार गिराया।

मेजर वरदराजन की पत्नी इंदु अशोक चक्र ग्रहण करने के दौरान

जब मेजर मुकुन्द को बाहर निकाला गया तब तक वो गंभीर रूप से घायल होने की वजह से शहीद हो गए। मेजर मुकुन्द की पत्नी इंदु कहती हैं कि अच्छा तो लग रहा है, पर दुख भी है। उनके रहते हुए ये मिलता तो ज्यादा अच्छा लगता। चार साल की बेटी तो समझती है कि पापा भगवान के पास चले गए हैं। बड़ी होने पर वो अगर फौज में या और जहां कहीं भी चाहेगी तो वहीं भेजूंगी। मात्र 31 साल की उम्र में देश के लिए लड़ते हुए मेजर मुकुन्द अपनी ने कुर्बानी दे दी। आज इन्दु कहती हैं कि मैं तो देशवासियों से बस इतना उम्मीद करती हूं कि वो मुकुन्द की शहादत को याद रखें। उन्हें भूलना नहीं चाहिए। कोशिश ये भी हो कम से कम लोग शहीद हों। वो ये भी कहती हैं कि अभी भी देश में देशभक्ति बची हुई है।

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अखबार से लेकर टेलीविजन तक में इन शहीदों पर एक छोटी सी खबर चल/छप जाएगी पर जितनी चर्चा परेड की दूसरे खबरों को मिल रही है, उसकी तुलना में तो ये खबर किसी कोने में दब जाएगी। वैसे न तो मेजर मुकुन्द और न ही नायक नीरज की पत्नी इस बात शिकायत देश से करेंगी कि आखिर क्यों ये देश सपूतों की कुर्बानियों को वैसा याद नहीं रखता जितना रखना चाहिए। पर क्या हमारा कोई फर्ज नहीं बनता। उनकी कुबार्नियों को ऐसे ही जाया होने दें। एक बार जरूर सोंचे क्या हम अपने शहीदों के साथ सही सलूक कर रहें है?