राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कुछ कृतियों के स्वर्ण जयंती वर्ष पर दिल्ली में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह बिहार को प्रगति और समृद्धि की सोच के साथ आगे ले जाने को प्रतिबद्ध हैं और इस राज्य की प्रगति के बिना भारत का विकास अधूरा है।
मोदी ने कहा कि एक तरफ जहां भारत का पश्चिमी भाग समृद्ध है, वहीं पूर्वी भारत ज्ञान से परिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि देश के विकास में दोनों क्षेत्रों की समान हिस्सेदारी होनी चाहिए। दिनकर जी द्वारा 1961 में लिखे एक पत्र का हवाला देते हुए मोदी ने कहा कि राष्ट्रकवि का यह मत था कि बिहार को जातपात को भूलना और सबसे अच्छे पथ का अनुसरण करना होगा।
मोदी ने पत्र का जिक्र करते हुए कहा, 'आप एक या दो जातियों के सहारे शासन नहीं कर सकते। अगर आप जातपात से ऊपर नहीं उठेंगे, तब बिहार का सामाजिक विकास प्रभावित होगा।'
मोदी ने कहा कि दिनकर जी की कविताओं ने जयप्रकाश नारायण और युवा पीढ़ी के बीच सेतु का काम किया। उस समय सरकार के खिलाफ लोगों को जगाने का काम उनकी रचनाओं के माध्यम से हुआ।
उन्होंने कहा कि दिनकर जी समाज को कभी चुप बैठने नहीं देते थे। जब तक समाज सोया रहा, तब तक वे चैन से नहीं बैठे। वे युवाओं की चेतना और अंतर्मन को आंदोलित करने के लिए केवल अपने मनोभाव को व्यक्त ही नहीं करते थे, बल्कि उनके अंदर जो आग थी, उस आग को अपनी कृतियों के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों के लिए रौशनी में तब्दील करने का काम किया।
मोदी ने कहा कि पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों का विकास पूरे देश के विकास के लिए जरूरी है। दिनकर जी से संबंधित समारोह में मोदी की उपस्थिति को बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को अपने साथ लाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।
मोदी ने कहा कि दिनकर जी का पूरा साहित्य खेत और खलिहान, गांव और गरीब से जुड़ा है। बहुत सी रचनाएं ऐसी होती हैं जो किसी न किसी को, कभी न कभी स्पर्श करती हैं। लेकिन बहुत कम रचनाएं ऐसी होती हैं जो पूरे समाज को स्पर्श करती हैं। जो कल, आज और आने वाले कल को स्पर्श करती हैं। दिनकरजी की रचनाएं ऐसी ही थीं, जिसने कल और आज को स्पर्श किया तथा आने वाली पीढ़ी के लिए भी यह प्रसांगिक है।
मोदी ने कहा, मैं सरस्वती का पुजारी हूं और एक पुजारी होने के नाते शब्द के सामर्थ्य का मुझे अनुभव है। एक शब्द से किसी विषय का अर्थ कैसे बदल जाता है, एक पुजारी और एक पाठक होने के नाते मुझे मालूम है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां शब्द को ब्रह्म माना गया है। दिनकर जी की रचनाएं 50 साल बाद भी जीवंत हैं। 50 साल बाद भी उनकी रचनाएं हमारे लिए प्रेरणा का माध्यम बनी हुई हैं। 50 साल बाद भी ये रचनाएं युवाओं को उस नजरिए से देखने को मजबूर करती हैं। इसलिए ऐसी रचनाएं सम्मान पाती हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दिनकर जी की कृतियां समाज के लिए एक सौगात हैं। इस सौगात को नई पीढ़ी तक कैसे पहुंचाएं, इस पर ध्यान देने की जरूरत है।