जम्मू कश्मीर में राज्य के झंडे पर और बढ़ा बवाल

मुफ्त्‍ी मोहम्‍मद सईद की फाइल फोटो

नई दिल्‍ली:

जम्मू कश्मीर में राज्य के झंडे का इस्तेमाल जरूरी करने के सरकारी आदेश पर मचा हुआ बवाल और बढ़ गया है। यह बवाल इसलिए और बढ़ गया है क्योंकि सरकारी आदेश जारी होने के 24 घंटों के भीतर इसे वापस लेने का आदेश जारी कर दिया गया है।

पीडीपी और बीजेपी के सरकार बनने के मात्र 12 दिनों के भीतर ये तीसरा विवाद है। इस आदेश के मुताबिक राज्य के सरकारी इमारतों और वाहनों में तिरंगे के साथ राज्य का झंडा फहराना अनिवार्य था।

वैसे अब बीजेपी के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह कह रहे है उन्हें पता नहीं ये आदेश कैसे जारी हो गया। ये सब सरकारी आदेश बिना मंजूरी के जारी हुआ है। हालांकि ये आदेश उस सरकारी विभाग ने जारी किया था जो खुद मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के अधीन आता है।

12 मार्च 2015 को राज्य के समान्य प्रशासनिक विभाग ने ये सरकारी आदेश सर्कुलर नः 13-जीएडी आफ 2015 दिनांक 12 मार्च 2015 के तहत जारी किया। इसमें बकायदा लिखा गया था कि ऐतिहासिक तथ्यों के मद्देनजर जम्मू कश्मीर के अलग संविधान और 1952 में हुए दिल्ली समझौते के मुताबिक राज्य के झंडे को वही सम्मान मिलना चाहिए जो तिरंगे को है। इसलिए सभी को निर्देश जारी किया गया था कि तिरंगे के साथ-साथ राज्य के झंडे को बराबर का मान और सम्मान दिया जाए। ऐसा न करने वालों को स्टेट फ्लैग इंसल्ट कानून के तहत कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी।

मामले पर बवाल मचने पर इसी आदेश को 24 घंटों के भीतर वापस लेने का आदेश जीएडी विभाग ने जारी कर दिया। इसमें पुराने आदेश की वापसी का कोई कारण नहीं बताया गया है। वैसे राज्य के सूचना विभाग ने अपने प्रेस नोट में जरूर कहा है कि हाईकोर्ट में लंबित उस याचिका का उल्लेख किया गया था जिसमें याचिककर्ता ने राज्य के झंडे को तिरंगे के बराबर मान-सम्मान देने की बात कही गई है। साथ ही उसी दिन जम्मू कश्मीर में गणतंत्र दिवस मनाने की प्रार्थना की गई थी जिस दिन राज्य का अपना संविधान लागू हुआ था।

अब सरकारी तौर पर अपने बचाव में कुछ भी कहा जाए ये तो सच है कि ये आदेश उस वक्त आया है जब मर्सरत के मामले पर बड़ी मुश्किल पीडीपी और बीजेपी में संबध सुधरे थे। अपने चुनाव अभियान के दौरान बीजेपी ने ये नारा जोर शोर से दिया था कि वो जम्मू कश्मीर में दो संविधान और दो निशान के खिलाफ है।


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