एक हजार रुपया एक अकेले इंसान के लिए जीने की खातिर कम है : अदालत

एक हजार रुपया एक अकेले इंसान के लिए जीने की खातिर कम है : अदालत

प्रतीकात्मक तस्वीर

खास बातें

  • घरेलू हिंसा मामले में कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा- 1K गुजारे के लिए कम
  • महिला के भरण-पोषण की राशि बढ़ाकर 3 हजार रुपए करने को कहा
  • निचली अदालत ने महिला को 1,000 रुपये प्रतिमाह मुआवजे के लिए कहा था
नई दिल्ली:

महानगर में किसी अकेले इंसान को जीने के लिए एक हजार रुपया बहुत कम है. दिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा के मामले में यह टिप्पणी करते हुए महिला के भरण-पोषण का मुआवजा बढ़ाने का आदेश जारी किया.

जिला अदालत के विशेष न्यायाधीश रमेश कुमार ने दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर में रहने वाली एक महिला की अपील पर सुनवाई करते हुए महिला के भरण-पोषण की राशि का 1,000 रुपये से बढ़ातर 3,000 करने का आदेश दिया.

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘महानगर में रहने के खर्च को ध्यान में रखते हुये, निश्चित है कि किसी एक इंसान के जीने के लिए भी यह राशि बहुत कम है.’’ अदालत ने पति को भरण-पोषण का आदेश जारी करते हुए कहा कि कानूनी तौर पर पति होने के नाते महिला के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसकी है.

अदालत ने कहा, ‘‘इससे अधिक, अपीलकर्ता कानूनी तौर पर प्रतिवादी की पत्नी है और उसके द्वारा भरण-पोषण की हकदार है. अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करना पति का कर्तव्य है. इस मामले में भी पति अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता.’’ इससे पहले पांच मई को निचली अदालत ने महिला को 1,000 रुपये प्रतिमाह का भरण-पोषण दिये जाने का आदेश दिया था जिसके बाद महिला ने सत्र न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी.

महिला की ओर से दायर शिकायत के अनुसार उन दोनों की शादी दो मई 2014 को हुई थी. कथित तौर पर उसके ससुरालजनों ने कार और दहेज की मांग के लिए महिला को प्रताड़ित भी किया था. महिला ने आरोप लगाया था कि दहेज की मांग को लेकर उसकी पिटाई भी की गयी और 13 दिसंबर 2014 को उसे उसके पिता के यहां भेज दिया. उसने ससुरालवालों पर आरोप लगाया कि उन्होंने बगैर दहेज के वहां लौटने से भी मना किया था.


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