नई दिल्ली: 'आप खुद एक मां हैं लेकिन आपने अपने परिवार से ही ममता नहीं दिखाई और परिवार वालों का कत्ल कर दिया। यहां तक कि आपने दस महीने के मासूम को भी मार डाला। आपको किसी तरह की राहत नहीं दी जा सकती।'
ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सात साल पहले अपने परिवार के सात लोगों की हत्या करने वाली युवती और उसके प्रेमी की मौत की सजा पर अपनी मुहर लगा दी। इस युवती ने जेल में बच्चे को जन्म दिया था और इसी आधार पर कोर्ट से रहम की गुहार लगाई थी।
दरअसल 15 अप्रैल 2008 को अमरोहा में रहने वाली शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पिता शौकत अली, मां हाशमी, भाई अनीस अहमद, उसकी पत्नी अंजुम, भतीजी राबिया और भाई राशिद के अलावा अनीस के दस माह के बेटे अर्श की हत्या कर दी थी। सभी को पहले दवा देकर बेहोश किया गया और इसके बाद कुल्हाड़ी से वार कर हत्या की गई जबकि शबनम ने अर्श का गला दबाया।
जांच में पता चला कि शबनम गर्भवती थी लेकिन परिवार वाले सलीम से उसकी शादी के लिए तैयार नहीं थे। इसी वजह से शबनम ने प्रेमी सलीम से मिलकर पूरे परिवार को मौत की नींद सुला दिया। दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इस बीच जेल में शबनम ने बच्चे को भी जन्म दिया। लेकिन 15 जुलाई 2010 को ट्रायल कोर्ट ने दोनों को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई।
दोनों ने इलाहाबाद हाइकोर्ट में अपील की लेकिन 27 अप्रैल 2013 को हाइकोर्ट ने इसे रेयर ऑफ द रेयरेस्ट करार देते हुए सजा को बरकरार रखा। इसके बाद दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। कोर्ट ने वकील दुष्यंत पाराशर को एमीकस क्यूरी नियुक्त किया।
शबनम ने अपने साढ़े छह साल के बच्चे को देखते हुए रहम की अपील की। दुष्यंत पाराशर को भी 40 पेज की चिट्ठी लिखी। उन्होंने गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की बेंच के सामने सारी बातें रखी। लेकिन चीफ जस्टिस एचएल दत्तू ने याचिका को खारिज करते हुए मौत की सजा को बरकरार रखा।