शशि थरूर की कांग्रेस से अलग राय, कहा-सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश मिलना चाहिए

शशि थरूर की कांग्रेस से अलग राय, कहा-सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश मिलना चाहिए

कांग्रेस सांसद शशि थरूर (फाइल फोटो)

तिरुवनंतपुरम:

केरल से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने कहा है कि हालांकि उनकी पार्टी, कांग्रेस मशहूर सबरीमाला मंदिर में पुरानी परंपरा बरकरार रखने की पक्षधर है, लेकिन उनकी निजी राय है कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए।

रीतियों और परंपराओं में बदलाव आना जरूरी
NDTV से बात करते हुए थरूर ने कहा, 'मेरी पार्टी की राय है कि सबरीमाला में पुरानी परंपरा का पालन किया जाना चाहिए लेकिन मैं निजी तौर पर इसके खिलाफ हूं क्‍योंकि मेरा मानना है कि रीतियों-परंपराओं में बदलाव आना जरूरी है।'
तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद थरूर की यह टिप्‍पणी ऐसे समय आई है जब सुप्रीम कोर्ट, इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें केरल के इस मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं को प्रवेश देने की मांग की गई है। यह मंदिर भगवान अयप्‍पा को समर्पित है और इसमें 10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश की मनाही है।

पिछले माह सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपनाया था सख्‍त रुख
पिछले माह याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन के खिलाफ सख्‍त रुख अख्तियार किया था। जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की स्‍पेशल बैंच ने पूछा था, 'आप मंदिर में महिलाओं को प्रवेश क्‍यों नहीं देते? आप किस आधार पर महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित कर रहे हैं...इसके पीछे आपका तर्क क्‍या है? महिलाएं जाना चाहें या फिर न जाना चाहें...लेकिन यह उनकी निजी पसंद होना चाहिए।' इसके साथ ही कोर्ट ने त्रावणकोर देवस्‍वोम बोर्ड से अपने इस दावे की पुष्टि में सबूत उपलब्‍ध कराने को कहा है जिससे पता चले कि मंदिर सदियों पुरानी परंपरा का पालन कर रहा है। गौरतलब है कि त्रावणकोर देवस्‍वोम बोर्ड इस मंदिर का प्रबंधन करता है।

केरल सरकार ने अपने हलफनामे में दी थी यह राय  
गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले कांग्रेस नीत केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में कहा था कि सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश से जुड़ा मुद्दा धार्मिक है और इस पर पुजारियों को ही फैसला करना चाहिए। थरूर ने कहा, 'सामाजिक परंपराओं के मामले में कुछ भी अटल नहीं है। वर्ष 1930 तक मंदिर में दलितों को इजाजत नहीं थी, लेकिन अब वे यहां प्रवेश कर सकते हैं।'

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