यह ख़बर 23 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

स्मृति ईरानी ने खारिज की संस्कृत को अनिवार्य बनाने की मांग

नई दिल्ली:

शिक्षा का भगवाकरण किए जाने के आरोपों को खारिज करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने आज संस्कृत भाषा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य बनाए जाने की मांग को सिरे से नकार दिया।

मानव संसाधन विकास मंत्री ने शिक्षा के भगवाकरण के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, 'जो लोग मुझ पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतीक या प्रतिनिधि होने का आरोप लगाते हैं वे असल में हमारी ओर से किए गए अच्छे कामों से ध्यान हटाना चाहते हैं... ये एजेंडा जारी रहेगा और जब तक हमारे अच्छे कार्यों से ध्यान हटाने की जरूरत बनी रहेगी, तब तक मेरी ऐसे ही आलोचना होती रहेगी। मैं इसके लिए तैयार हूं। मुझे कोई समस्या नहीं है।'

केंद्र द्वारा संचालित लगभग 500 केंद्रीय विद्यालयों में जर्मन के स्थान पर संस्कृत को तीसरी भाषा के रूप में लाए जाने के विवादास्पद फैसले के संबंध में पूछे गए सवालों के जवाब में ईरानी ने कहा कि वर्ष 2011 में हस्ताक्षरित एक सहमति पत्र के तहत जर्मन भाषा को पढ़ाया जाना संविधान का उल्लंघन है। इसकी जांच करने के आदेश पहले ही दे दिए गए हैं कि इस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कैसे हुए।

संस्कृत को अनिवार्य भाषा बनाए जाने की मांगों के जवाब में ईरानी ने कहा कि तीन भाषा का फॉर्मूला पूरी तरह स्पष्ट है कि संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत आने वाली किसी भी भाषा का विकल्प चुना जा सकता है।

लेकिन उन्होंने इस बात को दोहराया कि जर्मन को विदेशी भाषा के तौर पर पढ़ाया जाना जारी रहेगा।

स्मृति ईरानी ने कहा, '....हम फ्रैंच पढ़ा रहे हैं, हम मंदारिन पढ़ा रहे हैं, उसी तरीके से हम जर्मन पढ़ाते हैं। मुझे यह समझ नहीं आता कि लोगों को वह बात क्यों नहीं समझ आ रही है, जो मैं कह रही हूं।'

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ईरानी ने इससे पूर्व जर्मन के स्थान पर संस्कृत को लाए जाने के फैसले को मजबूती से सही ठहराते हुए कहा था कि मौजूदा व्यवस्था संविधान का उल्लंघन करती है।