असहिष्‍णुता : कांग्रेस का राष्‍ट्रपति भवन तक मार्च, सोनिया बोलीं - PM की चुप्पी से लगता है सहमति है

असहिष्‍णुता : कांग्रेस का राष्‍ट्रपति भवन तक मार्च, सोनिया बोलीं - PM की चुप्पी से लगता है सहमति है

नई दिल्ली:

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के नेताओं ने संसद से राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाला। इस मार्च का मकसद देश में बढ़ती असहिष्णुता और हिंसा के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज कराना है। उसके बाद कांग्रेस नेताओं का प्रतिनिधिमंडल राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भी मिला।

राष्‍ट्रपति से मुलाकात के बाद सोनिया गांधी ने संवावदाताओं को संबोधित करते हुए कहा, 'आज देश में डर का माहौल है और कुछ तत्‍व जानबूझकर सांप्रदायिक तनाव पैदा कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ऐसी शक्तियों के साथ पूरी ताकत से लड़ेगी। हमने राष्‍ट्रपति को इस सिलसिले में ज्ञापन सौंपा है।' कांग्रेस ने बढ़ती असहनशीलता पर चिंता जताई और साथ ही ऐसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्‍पी पर भी सवाल खड़े किए। सोनिया गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री की चुप्‍पी से लगता है कि ऐसे मामलों में उनकी भी सहमति शामिल है।

वहीं पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा। राहुल ने कहा, बड़ी संख्‍या में लोग ये स्‍पष्‍ट कर चुके हैं। उन्‍होंने कहा, '2 बच्‍चों की मौत हो गई और सरकार के एक मंत्री उनकी तुलना कुत्ते से करते हैं। प्रधानमंत्री भी कुछ नहीं कर रहे हैं। ये कोई कांग्रेस पार्टी का मुद्दा नहीं है, पूरे देश का है।' राहुल ने कहा कि प्रधानमंत्री को ऐसे मामलों पर बोलना जरूरी नहीं लगता। पीएम और वित्त मंत्री को लगता है कुछ हुआ ही नहीं है।

कांग्रेस ने मंगलवार को राष्‍ट्रपति भवन तक मार्च निकाला और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उनकी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल कर असहिष्णुता के माहौल को ख़त्म करने की अपील की। राष्ट्रपति को सौंपे अपने ज्ञापन में कांग्रेस ने कहा कि सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए विनाशकारी अभियान चलाया जा रहा है। मार्च से पहले सोमवार को सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाक़ात की थी।

सोनिया गांधी की राष्ट्रपति से मुलाकात ऐसे समय में हुई, जब कांग्रेस सांप्रदायिकता को लेकर केंद्र सरकार पर ज़ोरदार हमले कर रही है। सोमवार को ही प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के पूर्णिया में चुनावी रैली के दौरान असहिष्णुता के मुद्दे पर कांग्रेस पर पलटवार किया था।

विपक्षी दल कांग्रेस का यह कदम कथित रूप से उस ‘बढ़ती असहिष्णुता’ को लेकर कलाकारों, लेखकों और वैज्ञानिकों की ओर से जताए जा रहे विरोधों की पृष्ठभूमि में आया है जो कि दादरी घटना, गोमांस मामला और अन्य ऐसी घटनाओं में झलकती है। बीजेपी और कांग्रेस की ओर से समाज में असहिष्णुता के मुद्दे को लेकर बयानबाजी हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष को एनडीए को असहिष्णुता पर सीख देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है और पार्टी को 1984 सिख विरोधी दंगों के लिए ‘अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए’ जिसमें हजारों लोगों का कत्लेआम हुआ था।

कांग्रेस ने यह कहते हुए पलटवार किया कि 2002 में गोधरा कांड के बाद हुई हिंसा की तरह ही मोदी 2015 में भी ‘राजधर्म भूल’ गए हैं क्योंकि नफरत और हिंसा के कृत्यों को लेकर ‘अपनी चुप्पी के चलते वह असहिष्णुता के एक समर्थक हैं।’

मार्च के बाद 125 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति मुखर्जी से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा और उनके हस्तक्षेप की मांग की। प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे सरीखे वरिष्ठ नेता भी शामिल थे। पुलिस ने मार्च के मार्ग में बैरिकेड लगाए थे और बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया था।

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कई कांग्रेस नेता राष्ट्रपति भवन तक मार्च में शामिल नहीं हो सके, क्योंकि पुलिस ने केवल छोटे प्रतिनिधिमंडल को जाने की अनुमति दी थी।