अखिलेश और राहुल गांधी की नौ जनवरी को हो सकती है मुलाकात
नई दिल्ली: यूपी में चुनावी रणभेरी बजने के साथ ही सूबे का सियासी पारा गरमा गया है. चुनाव की घोषणा के एक दिन बाद ही बसपा ने 100 प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी. बीजेपी की भी आज दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुरू हो गई है. यूपी चुनावों के लिहाज से इस बैठक को अहम माना जा रहा है. इन सबके बीच कांग्रेस की तरफ से सीएम पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित ने अखिलेश के समर्थन की बात कहकर स्पष्ट कर दिया है कि सपा और कांग्रेस के बीच गठजोड़ की संभावनाएं बन रही हैं.
इसी पृष्ठभूमि में अंग्रेजी अखबार 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' की आज प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि सपा और कांग्रेस के बीच अगले सप्ताह की शुरुआत में गठबंधन पर मुहर लग सकती है. इस बात की संभावना भी व्यक्त की गई है कि अखिलेश यादव इस सिलसिले में जल्दी ही राहुल गांधी से दिल्ली में मुलाकात कर सकते हैं. राहुल गांधी फिलहाल विदेश में हैं और उनके सप्ताहांत में दिल्ली लौटने की संभावना है. माना जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच नौ जनवरी को मुलाकात हो सकती है.
अखिलेश का दांव
उल्लेखनीय है कि सपा में तख्तापलट के बाद माना जा रहा है कि पार्टी के भीतर अखिलेश खेमा मजबूत स्थिति में है और कांग्रेस भी इस गुट के साथ गठबंधन की पक्षधर है. अखिलेश पहले भी कांग्रेस के साथ गठबंधन की वकालत करते हुए कहते रहे हैं कि वैसे तो सपा अपने दम पर सत्ता में आएगी लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन होने की स्थिति में 300 सीटें जीतने में वे कामयाब होंगे. अब अखिलेश के लिए इसलिए भी कांग्रेस के साथ गठबंधन अहम माना जा रहा है क्योंकि सपा में मचे घमासान के चलते परंपरागत अल्पसंख्यक तबके के वोटों के बिखरने का अंदेशा है और बसपा द्वारा 97 मुस्लिम प्रत्याशी उतारने के बाद सपा के लिए इस वोटबैंक को अपने पाले में रखने के लिए अतिरिक्त मेहनत के रूप में ऐसे ही किसी सियासी गठजोड़ की अब मजबूरी बन चुकी है.
कांग्रेस की मंशा
उधर कांग्रेस पिछले 28 वर्षों से राज्य की सत्ता से बाहर है और इस बार के चुनावों में वह किसी भी सूरत में सम्माजनक स्थिति में आना चाहती है. पिछले विधानसभा चुनाव में उसको 27 सीटें मिली थीं. मौजूदा सियासी परिस्थितियों में राज्य में बीजेपी के उभार ने उसे बेचैन कर दिया है. उसको रोकने के लिए अखिलेश के साथ हाथ मिलाने में कांग्रेस को फायदा नजर आ रहा है.
ऐसे में गठबंधन होने पर यदि 90-100 सीटें कांग्रेस को लड़ने के लिए मिलती हैं और अखिलेश की स्वच्छ छवि, ईमानदार चेहरे का यदि सपा के साथ कांग्रेस को भी लाभ मिलता है तो यह उसके लिए फायदेमंद होगा और उसको कुछ हद तक राज्य में सियासी जमीन हासिल हो सकेगी जिसका इस्तेमाल वह 2019 के लोकसभा चुनाव में करना चाहेगी. उल्लेखनीय है यूपी में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 80 सीटों में से 71 पर कामयाबी मिली थी और इसी की बदौलत पार्टी को केंद्र में स्पष्ट बहुमत भी मिला था. ऐसे में अभी सपा और कांग्रेस के गठबंधन होने पर अगले लोकसभा चुनाव में राज्य में इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता.