यह ख़बर 01 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

शरद शर्मा की कलम से : अब गन्ना किसान करने लगे आत्महत्या

बागपत (यूपी):

'चीनी मिल ने गन्ने का बकाया दिया नहीं, बैंक से लोन मिला नहीं, घर के सारे गाए-भैंस बिक चुके थे, आर्थिक हालात खराब थे, वह तनाव में रहने लगा और आखिरकार उसने खुदकुशी कर ली।'

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत के टीकरी कस्बा के रहने वाले रामबीर राठी ने गुरुवार को आत्महत्या कर ली। 40 साल के रामबीर राठी 11 बीघे में खेती करते थे। रामबीर की पत्नी मंजू के मुताबिक, 'घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं चल रहे थे और रामबीर काफी समय से तनाव में भी थे, लेकिन सोचा ना था कि वो ……..वो……….' और बस इतना कहकर वह रोने लगी। ऐसा लगा मैने कुछ गलत सवाल कर दिया या फिर गलत तरीके से सवाल कर दिया।

रामबीर घर में अकेला कमाने वाला था और पांच लोगों को पालने के लिए खेती ही आमदनी का एकमात्र ज़रिया था। रामवीर के पिता ने बताया कि उनका पेट का ऑपरेशन हुआ कुछ समय पहले पानीपत में एक तो इसका खर्चा और घर का खर्चा निकालने के चक्कर में रामवीर डिप्रेशन का शिकार रहने लगा और फिर उसका भी पानीपत में इलाज चलने लगा। लेकिन गन्ने का करीब डेढ़ लाख रुपये का भुगतान महीनों से चीनी मिल ने नहीं किया बैंक लोन दे नहीं रहा था। यहां तक कि घर की पूंजी माने जाने वाले सारे गाय-भैंस भी बिक गए। अब उसके पास बेचने को कुछ था नहीं, जिससे घर का खर्च चल जाए इसलिए मजबूर होकर उसने जान दे दी।

परिवार का कहना है कि रामबीर अपनी बेटी को आईआईटी से इंजीनियर और बेटे को सेना में अफसर बनाना चाहता था। परिवार कहता है कि अब कुछ और तो नहीं हो सकता, लेकिन प्रशासन अगर मुआवज़ा दे दे तो रामबीर का सपना पूरा हो जाएगा

घर के आंगन में परिवार और पड़ोसियों के साथ बैठक में किसान केंद्र और राज्य दोनो सरकार से नाराज दिखे। रामबीर के पिता ने कहा कि राज्य सरकार से तो उम्मीद थी ही नहीं, इससे अच्छी तो माया सरकार थी कम से कम पैसे तो मिल जाते थे। रामबीर के ससुर बोले केंद्र सरकार ने चुनाव के दौरान वादा किया था कि हमको वोट दो हम पेमेंट कराएंगे लेकिन कहां हुआ पेमेंट।

घर का माहौल देखकर मैं ज्यादा रुक ना सका, लेकिन इलाके में माहौल ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं कुछ ही दूर के बामनौली गांव में भी जाऊं। क्योंकि खबर मिली कि वहां पर एक किसान ने नदी में कूदकर जान देने की कोशिश की। मैं धर्मपाल के यहां पहुंचा। देखने में घर संपन्न दिखा, मकान पक्का था और 4 भैंसें बंधी हुई थी और साथ ही एक ट्रैक्टर भी था। मैंने पूछा कि भाई आपको देखकर नहीं लगता कि आपके हालात खराब है फिर नदीं में क्यों कूदे?

धर्मपाल ने कहा 'साहब मजबूरी में ही कोई ऐसा करे है, कोई राजी होकर तो करता नहीं'। धर्मपाल ने कहा कि उनका पांच लाख रुपये चीनी पर गन्ने का बकाया है। बैंक से पहले ही लोन लिया हुआ वापस नहीं कर पाए, अब बताइये घर का खर्च कैसे चले। छह लड़कियों की शादी कर चुके हैं, लेकिन तीज−त्योहार पर उनके घर भी कुछ नहीं दे पाते तो बेटियों के यहां से उलाहने आते हैं। एक बेटा है साथ ही खेती करता है, जिसके तीन बच्चे हैं जब वह खर्चा मांगते हैं तो बताइये देने को कुछ है नहीं। अपनी इज्जत बचाना मुश्किल हो गया है गांव में।

इसी बीच कुछ और किसान घर्मपाल के घर जुट गए। मेरे सवालों पर उन्होने मुझसे पूछा कि 'आप खुद सोचकर देखो कि अगर एक महीने आपको तनख्वाह ना मिले तो आपकी क्या हालत होगी, हमारे यहां महीनों सालों से यहीं चल रहा है हमारी हालत कैसी होगी।'

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ये इलाका आमतौर पर समृद्ध माना जाता है, लेकिन हालात ने इस संपन्नता को कुछ खोखला सा कर दिया है जो यहां के किसान अपनी जान देने को मजबूर हो रहे हैं। 5000 करोड़ रुपये से ज़्यादा मिलों पर बकाया है। ऐसे में मैं उम्मीद करता हूं कि ये चलन ना बन जाए।