यह ख़बर 18 फ़रवरी, 2013 को प्रकाशित हुई थी

वीरप्पन के चार साथियों की फांसी पर SC ने बुधवार तक रोक लगाई

खास बातें

  • याचिका में कहा गया है कि क्योंकि इन चारों की दया याचिका पर फैसला होने में नौ साल का लंबा वक्त लग गया इसलिए इनकी फांसी की सजा रद्द कर देनी चाहिए।
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चंदन तस्कर वीरप्पन के चार सहयोगियों की फांसी पर बुधवार तक रोक लगा दी। राष्ट्रपति ने उनकी दया याचिकाएं 12 फरवरी को खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ वकील कोलिन गोंसाल्वेस की इस दलील पर बुधवार तक वीरप्पन के सहयोगियों को फांसी दिए जाने पर रोक लगा दी कि उनकी दया याचिकाओं पर फैसला बहुत देर से आया।

गोंसाल्वेस ने कहा कि न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने इस सवाल पर निर्णय सुरक्षित रखा है कि यदि दया याचिकाओं पर निर्णय बहुत देर से आता है तो दोषी को राहत मिल सकती है या नहीं।

गोंसालवेस ने न्यायालय को बताया कि यह निर्णय आठ महीने पहले सुरक्षित रखा गया था। जो भी निर्णय आता है, वह वीरप्पन के चार सहयोगियों पर भी लागू होगा।

दूसरी ओर, महान्यायवादी जीई वाहनवती ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह एक गंभीर मामला है, जिसमें 20 पुलिसकर्मियों को बारूदी सुरंग विस्फोट में मार डाला गया था। यह मामला 'जघन्यतम' श्रेणी में पाया गया है।

राष्ट्रपति ने वीरप्पन के चार सहयोगियों- गणनप्रकाशम, सिमोन एंटोनियप्पा, मीसेकर मदैया तथा बिलावेंद्रन की दया याचिका 12 फरवरी को खारिज कर दी थी। उन्हें वर्ष 1993 में तमिलनाडु-कर्नाटक सीमा पर पालर पुल के नजदीक पुलिसकर्मियों सहित 22 लोगों की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी।

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दया याचिकाएं वर्ष 2004 में दाखिल की गई थीं। दोषियों की दलील है कि उनकी याचिका पर निर्णय बहुत देरी से आया है। इसलिए उन्हें फांसी पर नहीं लटकाया जाना चाहिए।