यह ख़बर 12 नवंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

सुप्रीम कोर्ट के जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप, जांच के आदेश

ब्लॉग का स्क्रीनशॉट

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने एक इंटर्न द्वारा शीर्ष अदालत के तत्कालीन पीठासीन न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए तीन न्यायाधीशों की समिति गठित की।

दरअसल, एक युवा महिला इंटर्न ने हाल ही में सेवानिवृत्त शीर्ष अदालत के एक न्यायाधीश पर आरोप लगाया है कि उन्होंने पिछले साल दिसंबर में एक होटल के कमरे में उसके साथ उस समय दुर्व्यहार किया जब राजधानी सामूहिक बलात्कार की घटना से जूझ रही थी।

इस महिला ने इसी साल कोलकाता की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरीडिकल साइंस से स्नातक किया है। उसने कथित यौन उत्पीड़न की घटना के बारे में अपने ब्लॉग में लिखा है।

जर्नल ऑफ इंडियन लॉ एंड सोसायटी के लिए 6 नवंबर को लिखे गए इस ब्लॉग में महिला वकील ने कहा है कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के साथ उसके इंटर्न करने के दौरान यह घटना हुई।

ब्लॉग के अनुसार, पिछला दिसंबर देश में महिलाओं के हितों की रक्षा के आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि देश की लगभग समूची आबादी महिलाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ स्वत: ही खड़ी हो गई थी। यह अजीबो-गरीब विडंबना ही है कि दुनिया में हो रहे विरोध की पृष्ठभूमि में मेरा ऐसा अनुभव है।

ब्लॉग में लिखा गया है कि दिल्ली में उस समय यूनिवर्सिटी में मेरे अंतिम वर्ष के शीतकालीन अवकाश के दौरान मैं इंटर्न थी। मैं अपने अंतिम समेस्टर के दौरान अत्यधिक प्रतिष्ठित, हाल ही में सेवानिवृत्त हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तहत काम कर रही थी। उनकी सहायता के लिए उनके पास पहुंचने के लिए मैंने अथक श्रम किया और पुलिस की बाधाओं को चकमा दिया।

ब्लॉग में लिखा गया है, मेरी कथित कर्मठता के पुरस्कार के रूप में मुझे यौन उत्पीड़न (शारीरिक नुकसान नहीं, लेकिन हनन करने वाले) से एक वृद्ध व्यक्ति ने पुरस्कृत किया, जो मेरे दादा की उम्र का था। मैं इस पीड़ादायक विवरण का जिक्र नहीं करूंगी, लेकिन इतना जरूरी कहूंगी कि कमरे से बाहर निकलने के काफी बाद तक मेरी स्मृति में वह अनुभव रहा और वास्तव में आज भी है। कानून की इस स्नातक ने एक वेबसाइट को इंटरव्यू भी दिया है। उसका कहना है कि होटल के कमरे में न्यायाधीश ने उसका उत्पीड़न किया और इस घटना का कोई अन्य गवाह भी नहीं है।

‘लीगली इंडिया’ से बातचीत में इस युवा वकील ने कहा, यह होटल का कमरा था, (लोगों ने) मुझे स्वेच्छा से जाते देखा, मुझे शांति के साथ बाहर निकलते भी देखा। मैं भय के साथ नहीं भागी। उस समय मुझे लगा कि मुझे शांति के साथ चलना चाहिए। मैंने उस दिन किसी से भी इसका जिक्र नहीं किया। इस महिला ने अपने ब्लॉग में हादसे में इस घटना की तारीख का जिक्र नहीं किया, लेकिन वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में कहा कि यह पिछले साल 24 दिसंबर को हुआ था।

ब्लॉग के अनुसार, जैसा पहले कहा गया है मेरे दिल में उस व्यक्ति के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है और न ही उसके जीवनभर के काम और प्रतिष्ठा को दांव पर लगाना चाहती हूं। इसके विपरीत, मुझे लगा कि यह मेरी जिम्मेदारी है कि दूसरी युवा लड़कियां इस तरह की परिस्थिति में न पड़ें, लेकिन मैं इसका समाधान खोजने में विफल रही।

महिला ने यह भी कहा कि जबर्दस्त सार्वजनिक बहस, महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरुकता और नए आपराधिक कानूनों के बावजूद उसे नहीं लगता कि इस पर अंकुश लगा है। इंटरव्यू में उसने कहा, मैंने इसी न्यायाधीश द्वारा तीन अन्य मामलों (यौन उत्पीड़न) के बारे में सुना है और मैं कम से कम चार अन्य लड़कियों को जानती हूं, जिन्होंने दूसरे न्यायाधीशों के यौन उत्पीड़न का सामना किया, जो शायद मेरे जैसा बुरा नहीं रहा होगा। इनमें से अधिकांश न्यायाधीशों के चैंबरों में थीं और आसपास दूसरे लोग थे, इसलिए शायद उनके साथ इतना बुरा नहीं हुआ।

इस महिला के अनुसार, एक लड़की को मैं जानती हूं, जिसका लगातार यौन उत्पीड़न हुआ और इसकी वजह से उसे अपने काम में भी परेशानियों का सामना करना पड़ा। अंत में इस महिला ने सवाल किया है कि यौन हिंसा का सामना करते समय क्या हम गुस्से से आगे जाकर अपनी भावनाओं को अंगीकार कर सकते हैं और इस तरह की घटनाओं का सामना करते समय भावनाओं की जटिलता स्वीकार करें।

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घटना के लगभग एक साल बाद इसे उजागर करने के बारे में उसने अपने ब्लॉग में लिखा कि हालांकि इस घटना से वह बेहद आहत हुईं और इस व्यक्ति पर थोड़ा क्रोध भी हुआ, लेकिन उसे नफरत नहीं हुई। इसकी बजाय वह इस बात से हतप्रभ और आहत थी कि एक व्यक्ति, जिसकी वह इतनी इज्जत करती थी, उसने इस तरह की हरकत की।