नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर अभी सस्पेंस बना हुआ है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाक़ात कर उन्हें इसके कारण बताए। वहीं, कांग्रेस ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी।
अरुणाचल प्रदेश की सियासी लड़ाई अब दिल्ली में राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाक़ात कर उनसे अनुरोध किया कि वह अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की केंद्र सरकार की सिफारिश को मंज़ूर न करें।
कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि ये सरकार का संविधान के खिलाफ कदम है। वहीं, गुलाम नबी आजाद का कहना है कि कांग्रेस पार्टी सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करेगी।
इस बीच, गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रपति से मुलाक़ात की। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक़ राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करते हुए सरकार ने कहा
- - अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा सत्र 21 जुलाई को समाप्त हुआ और छह महीनों के भीतर यानी 21 जनवरी तक दोबारा सत्र नहीं हुआ।
- - जबकि छह महीनों के भीतर सत्र बुलाना संवैधानिक बाध्यता है और ऐसा न होने से संवैधानिक संकट पैदा हो गया है।
- - अगर सुप्रीम कोर्ट 16 दिसंबर के सत्र को मान्यता देती है तो भी इसका मतलब है कांग्रेस सरकार का अल्पमत में आ गई है।
- - राज्य सरकार राज्यपाल के पत्रों का जवाब नहीं दे रही थी।
- - राजभवन के घेराव पर राज्य सरकार चुप रही
- - राज्य में क़ानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई है।
उधर, बीजेपी ने कॉंग्रेस पर पलटवार किया। बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, वो विधायकों की बैठक तक नहीं बुला पा रहे क्योंकि नेतृत्व के प्रति अविश्वास है।
ये तय है कि इसे पूरे विवाद पर अभी अंतिम शब्द कहे जाना बाकी है। अरुणाचल प्रदेश का संकट जितना संवैधानिक है उतना ही नैतिक और राजनैतिक भी है। धारा 356 के बेजा इस्तेमाल को लेकर बहस होती रही है और मोदी सरकार बनने के बाद ये पहली बार है जब इसके इस्तेमाल पर सवाल उठे हैं। कांग्रेस के तीखे तेवरों को देखकर लगता है कि ये मामला लंबा खिंचेगा।