इन जांबाज़ पायलटों ने करगिल में पाकिस्तान की कमर तोड़ कर दोबारा कब्जे में लिया था टाइगर हिल

इन जांबाज़ पायलटों ने करगिल में पाकिस्तान की कमर तोड़ कर दोबारा कब्जे में लिया था टाइगर हिल

इस अभियान में शामिल कुछ फ्लाइट लेफ्टिनेंट्स की उम्र महज 20 के आसपास थी

नई दिल्ली:

भारतीय वायुसेना के एक समूह ने 17 साल पहले हवाई युद्ध के इतिहास में एक नई इबारत लिखी थी। करगिल युद्ध के दौरान उन्होंने समुद्र तल से 17,400 फीट से ज्यादा की उंचाई पर स्थित पाकिस्तानी चौकी को लेजर नियंत्रित बमों के जरिये ध्वस्त कर दिया था। टाइगर हिल पर पाकिस्तान द्वारा बनाई यह चौकी सामरिक रूप से काफी अहम थी, क्योंकि इससे पाकिस्तानी सैनिक श्रीनगर और लेह को जोड़ने वाली नेशनल हाइवे 1ए और द्रास को सीधा निशाना बना सकते थे।

ये पायलट तब काफी युवा था। इनमें स्क्वाड्रन लीडर्स के अलावा शामिल कुछ फ्लाइट लेफ्टिनेंट्स की उम्र तो महज 20 के आसपास थी। ये सभी इस बात को लेकर निराश थे कि सीधी मुठभेड़ को लेकर भारत में अनिर्णय की स्थिति की वजह से उन्हें पाकिस्तानी वायुसेना से दो-दो हाथ करने का मौका कभी नहीं मिल पाएगा। तब फ्लाइट लेफ्टिनेंट रहे श्रीपद टोकेकर बताते हैं कि उस वक्त वह पंजाब स्थित आदमपुर एयरबेस पर तैनात थे। वह कहते हैं, 'हम जानते थे कि वे (पाकिस्तानी वायु सेना) वहीं आसपास हैं, क्योंकि हमारे विमानों के रडार उनकी गतिविधियां पकड़ रहे थे। हालांकि हमें कभी मुठभेड़ का मौका नहीं मिला- मैं मानता हूं कि यह बेहद निराशाजनक अनुभव था।'

वहीं उस वक्त स्क्वाड्रन लीडर रहे डीके पटनायक ने मुझे करगिल युद्ध में इस्तेमाल लड़ाकू विमानों में से एक मिराज-2000 पर साथ उड़ने का मौका दिया। जब मैंने उनसे पूछा कि क्या करगिल के दौरान अपने मिशन से पहले उनके कोई घबराहट हुई थी, इस पर वह कहते हैं, 'एक बार विमान का इंजन शुरू होने पर सब कुछ सामान्य हो जाता है। हम इसके लिए प्रशिक्षित थे। हालांकि तब थोड़ी आशंका तो जरूर हुई थी। मुझे लगता है कि पहली उड़ान से पहले इस तरह की आशंका होती ही है।'
 

समुद्र तल से 33,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरकर लड़ाकू पायलटों ने इस अभियान को अंजाम दिया

17 जून, 1999 को जब करगिल युद्ध चरम पर था, तब पटनायक मुंथो ढालो पर स्थित महत्वपूर्ण पाकिस्तानी चौकी का पता लगाने और उस पर हमला करने वाले पहले पायलट थे। लद्दाख के बटालिक सेक्टर में भारतीय सरजमीं पर घुसपैठ करने वाली पाकिस्तानी सेना के लिए यह चौकी उनकी प्रशासनिक और लॉजिस्टिक बेस थी। करगिल युद्ध के दौरान पूरी पाकिस्तानी सेना के लिए यह रीढ़ के समान था। हथियारों को निशाना बनाने की मिराज-2000 की कंप्यूटर असिस्टेड क्षमता के भरोसे स्क्वाड्रन लीडर पटनायक जैसे वायुसेना अधिकारियों ने काफी ऊंचाई से सीधा गोता लगाया और पाकिस्तानी सेना की वार मशीनरी की कमर तोड़ दी।

अब वरिष्ठ ग्रुप कैप्टन बन चुके टोकेकर और एयर वाइस मार्शल पटनायक को 1999 के अभियान में उनकी बहादुरी के लिए सम्मान भी मिला। वे बताते हैं कि करगिल का अभियान उस वक्त कितना मुश्किल था। पाकिस्तानी सैनिक तब जमीन से हवा में मार करने वाली अमेरिका निर्मित स्टिंगर से लैस थे। कंधे पर रख कर चलाई जाने वाली स्टिंगर मिसाइलों का निशाना बनने का खतरा हमेशा ही बना रहता था।
 
करगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के लिए मिराज-2000 काफी कारगर साबित हुई
 करगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के लिए मिराज-2000 काफी कारगर साबित हुई

भारतीय वायुसेना के दो विमानों, एक MiG-21 और एक Mi-17 हेलीकॉप्टर को पाकिस्तानी सेना ने मार गिराया था, जिसमें पांच पायलट और वायुसैनिक शहीद हो गए थे। इस हमले से वायुसेना को इलाके में उस वक्त अपनी रणनीति बदलनी पड़ी थी। भारतीय लड़ाकू विमानों को पाकिस्तानी मिसाइलों के निशाने से बचने के लिए समुद्र तल से 33,000 फीट की उंचाई पर उड़ना पड़ता था और उसी वक्त उन्हें बम बरसाने के लिए खतरनाक ढंग से सीधा गोता लगाना पड़ता था। पाकिस्तानी सैनिक इस दौरान भारतीय विमानों पर बदस्तूर गोलीबारी दागते रहते थे।

टोकेकर कहते हैं, 'मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि मेरे विमान पर क्या दागा गया, क्योंकि जमीन से दिख रही हर चीज को वे निशाना बना रहे थे। जैसे ही वे जेट की आवाज सुनते ही वे गोलियों की झड़ी लगा देते। अब जमीन से उठते धुंए के धुंध को देख सकते थे। आप कभी यह नहीं जा पाते कि उनमें से कौन सी आपके लिए थी।'

एयर मार्शल पटनायक भी करगिल से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हैं। वह कहते हैं, 'सबसे बड़ी चिंता यह सुनिश्चित करना था कि कोई भारतीय सैनिक हमारी ही गोलियों से घायल न हो, क्योंकि हमारे सैनिक पाकिस्तान के उन ठिकानों के बेहद करीब थी, जिन्हें वायुसेना निशाना बना रही थी, और ऐसे में इसकी आशंका बेहद ज्यादा थी।' पटनायक के मुताबिक, 'किसी भी चूक का मतलब होता अपनी ही टुकड़ी को चोट पहुंचाना। दूसरा बात यह कि नियंत्रण रेखा इससे (जहां वायुसेना हमले कर रही थी) महज 6 किलोमीटर उत्तर में थी और हमें LoC के पार ना जाने के निर्देश मिले थे।'

करगिल युद्ध के बाद से वायुसेना में बहुत बदलाव आ चुका है। लेजर गाइडेड बमों और बिल्कुल सटीक हमला करने वाले हथियारों की तब खासी किल्लत थी, हालांकि अब यह हर स्क्वाड्रन के शस्त्रागार का हिस्सा है। करगिल में बेहद अहम भूमिका निभाने वाली मिराज-2000 विमान भी अब नए सेंसर्स, नए कॉकपिट और नए हथियारों से लैस है, जो कि इसे पहले से ज्यादा मारक बनाते हैं।

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