जानें, लू और भीषण गर्मी के पीछे का विज्ञान

नई दिल्ली:

भारत गर्मी से तप रहा है। देश के अधिकतर हिस्से गर्मी की चपेट में हैं और तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच चुका है। गर्मी का प्रचंड प्रकोप एक हजार से ज्यादा जानें ले चुका है। यह इस लिहाज से अभूतपूर्व है कि पूरे देश में लोग इसकी चपेट में हैं।

उत्तरी भारत में लगभग पूरे जून में मौसम में गर्मी बने रहने का अनुमान है। तो क्या हमें राहत के लिए सूर्य भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए? शायद नहीं.. क्योंकि मॉनसून का आगमन लगभग पूरी तरह से भारतीय भूभाग पर निर्भर करता है, जो कि पूरी तरह से तप रहा है।

वहीं, अगर मानव शरीर को लगने वाली गर्मी की बात की जाए, तो इससे निपटा जा सकता है। लू का शिकार बने लोगों ने यदि बचाव के कुछ साधारण उपाय किए होते, तो उनमें से कई लोगों की जान बच सकती थी। गर्मी का विज्ञान, शरीर द्वारा गर्मी के नियंत्रण की प्रणालियां, आग उगलते सूर्य और मॉनसून के साथ इसका रिश्ता.. ये सभी एक बेहद जटिल प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं।

सूर्य और बारिश विस्तारित ढंग से एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं और चमकता सूर्य दरअसल मॉनसून के आगमन में मदद ही करता है। यह एक इत्तेफाक हो सकता है, लेकिन साल 2015 एक ऐसे समय पर आया है, जब सौर गतिविधि अपने चरम पर है। इसका अर्थ यह है कि सूर्य 11 वर्षीय सौर चक्र में अपने सबसे प्रचंड रूप में है।

नई दिल्ली स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र के अनुसार, भारत के बेहद गर्म 10 वर्ष में से आठ वर्ष हालिया दशक (2001-2010) के ही थे। इस कारण यह दशक रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म दशक बन गया। ‘अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’ नामक प्रभाव शहर के निवासियों के लिए इस स्थिति को और अधिक बिगाड़ रहा है क्योंकि अत्यधिक सीमेंट कंकरीट के कारण शहर कहीं ज्यादा गर्म हो जाते हैं।
इंसान का शरीर एक बेहद जादुई किस्म की जीवित मशीन है। इसने अपने आप को कुछ इस तरह से ढाला है कि शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस या 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट होने पर यह अच्छी तरह काम कर सकता है। इस तापमान पर शरीर की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने वाले एंजाइम उत्कृष्टता के साथ काम करते हैं। दुर्भाग्यवश शरीर द्वारा गर्मी सह सकने का स्तर काफी कम है। इसका तापमान यदि इसके मूल ताप से एक डिग्री सेल्सियस भी बढ़ जाता है तो इसे परेशानी होने लगती है।

इंसान हर मौसम में रह सकने वाले प्राणी हैं और इसके लिए खून का गर्म होना एक जरूरी चीज है। हालांकि खून को गर्म रखने के लिए बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है। मानव शरीर की यह मशीन खुद को गर्म रखने के लिए बहुत सी ऊर्जा लेती है। वहीं, इंसान बाहरी मदद के बिना अत्यधिक तापमान को बर्दाश्त नहीं कर सकता और नतीजा यह होता है कि गर्मी के प्रकोप से बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं।

मानव शरीर का मूल तापमान दरअसल शरीर के अंदर का तापमान होता है और इसे मुंह में थर्मामीटर लगाकर मापा जाता है। आमतौर पर यह तापमान 37 डिग्री सेल्सियस रहता है। वहीं हाथ की त्वचा का तापमान अपेक्षाकृत कम यानी लगभग 33 डिग्री सेल्सियस रहता है। तो शरीर के अंदर से त्वचा तक एक तरह का उष्मा क्षरण होता है और यह शरीर का ठंडा रहना सुनिश्चित करता है। जब आसपास का तापमान लगभग 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है, तो एक विपरीत प्रक्रिया शुरू हो जाती है और शरीर ऊष्मा को इकट्ठा करना शुरू कर देता है।

फिर भी प्रकृति ने मानव शरीर की त्वचा से होकर जाने वाली पसीने वाली ग्रंथियों के जरिए एक ऐसी प्रभावी शीतक प्रणाली बनाई है। जब शरीर गर्म होने लगता है तो शरीर से पसीना निकलने लगता है। जब जल वाष्पित होता है तो शरीर ठंडा होने लगता है। यह भौतिकी के उसी मूल सिद्धांत के अनुरूप है, जो कि मिट्टी के घड़ों में पानी को ठंडा रखता है।

शरीर में आंतरिक गर्मी को नियंत्रण करने वाली प्रणाली मुख्यत: मटर के आकार के हाइपोथल्मस द्वारा नियंत्रित की जाती है। हाइपोथल्मस मस्तिष्क में होता है। यह शरीर की ताप नियत प्रणाली है। यह नसों से फीडबैक तो लेता ही है, साथ ही इसके अपने भी गर्मी संसूचक होते हैं। ये शरीर में गर्मी का प्रबंधन करते हैं।

यदि शरीर को सर्दी लगती है तो हाइपोथल्मस कंपकंपी शुरू करने का संकेत भेजता है। मांसपेशियां इस प्रक्रिया में फड़कनी शुरू हो जाती हैं, जिससे गर्मी पैदा होती है। यदि शरीर को गर्मी लगती है तो त्वचा के पास रक्त नलिकाओं को फैलने का संकेत भेजा जाता है ताकि ज्यादा खून सतह तक पहुंच सके। इसके बाद पसीने के जरिए गर्मी निकलेगी। यह इंसानों के लिए एक तरह का प्राकृतिक वातानुकूलन है। गर्मी के संपर्क में जरूरत से ज्यादा आ जाने के शुरुआती संकेतों में सिरदर्द शामिल है। यदि इस पर गौर नहीं किया जाता तो एक तरह की बेचैनी अंदर बैठ जाती है। इसके बाद चक्कर और उबकाई आने लगते हैं। अगर इस पर भी ध्यान नहीं दिया जाता तो मरोड़ भी उठ सकते हैं। इसके बाद भी यदि गर्मी के संपर्क में बने रहते हैं बेहोशी भी आ सकती है।

यदि शरीर का मूल तापमान 40 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाने के बाद भी कोई व्यक्ति बिना रुके बेहद गर्म स्थितियों में काम करता रहता है तो उसे लू लग जाती है और यह आमतौर पर एक घातक स्थिति होती है। लू लग जाने के बाद शरीर से पसीना आना बंद हो जाता है और तब सिर्फ आपात उपचार ही एकमात्र हल रह जाता है। इस आपात उपचार में ड्रिप के जरिए द्रव उपलब्ध करवाए जाते हैं।

लू से बचने के लिए कुछ आसान उपाय करने चाहिए। जैसे कि सुबह 11 बजे से दोपहर चार बजे तक गर्मी के संपर्क में आने से बचें। दोपहर को आराम करना अच्छा रहेगा। भारत में छोटे शहर आज भी दोपहर के समय बंद रहते हैं। हालांकि बड़े शहरों के प्रतिस्पर्धी माहौल के कारण प्रतिष्ठान दिनभर खुले रहते हैं। नई दिल्ली स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फीजियोलॉजी एंड अलाइड साइंसेज के हीट फीजियोलॉजी डिवीजन में कार्यरत वैज्ञानिक डॉक्टर अभिषेक भारद्वाज कहते हैं कि हर घंटे एक से दो गिलास पानी जैसे द्रव पीकर लू लगने से बचने में मदद मिलती है।

यह संस्थान थार मरुस्थल में काम करने वाले भारतीय सैनिकों के प्रशिक्षण एवं पर्यावरण के अनुकूल खुद को ढालने में मददगार चीजें बनाता है। इसने एक छोटे से पैकेट में आने वाला ‘डिपसिप’ नामक एक ऐसा ‘पेय’ बनाया है, जिसमें 14 पोषकतत्व होते हैं और जो बेहद गर्म स्थितियों में काम करने वाले सैनिकों को तंदुरूस्त बनाए रखने में मदद करता है।

भारद्वाज कहते हैं कि एक व्यक्ति को हर दिन औसतन चार से छह लीटर पानी पीना चाहिए और जो लोग बाहर काम करते हैं, उन्हें शरीर को गर्मी के प्रकोप से बचाने के लिए आठ से दस लीटर पानी किसी ‘इलेक्ट्रोलेट’ के साथ पीना चाहिए।

हल्के रंग के ढीले-ढाले कपड़े भी गर्मी में अच्छे रहते हैं। गर्मी में साड़ी पहनना अच्छा है लेकिन तंग जीन्स बिल्कुल नहीं पहननी चाहिए। राजस्थानी पुरुष लंबी पगड़ियां पहनते हैं, इसके पीछे वैज्ञानिक वजह भी है। कई घुमावों वाली उनकी यह पगड़ी उनके सिर को सूरज की सीधी गर्मी पड़ने से बचाती है।

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के प्रमुख भविष्यवक्ता बी.पी. यादव ने कहा कि आईएमडी ने पहली बार गर्मी के बारे में सावधान करने के लिए ‘कोड रेड’ चेतावनी जारी की है। इसका अर्थ यह है कि जब तक बहुत जरूरी न हो, तब तक लोगों को बेहद गर्मी वाली अवधि में बाहर निकलने से बचना चाहिए और छाया में रहना चाहिए। उपमहाद्वीप में, मॉनसून एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि पूरे देश में बारिश का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा इससे ही आता है। यदि बारिश न हो तो भारत में जीवन नरक बन सकता है। गर्मियों में भूभाग गर्म हो जाता है और वायु को पतला कर देता है। तब हिंद महासागर से उठने वाली नमी युक्त भारी एवं ठंडी हवा ऊपर उठ रही गर्म हवा की जगह ले लेती है। इससे हवा का एक ऐसा प्रारूप बनता है, जिसे हम दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून कहते हैं।

आईएमडी के महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने बताया कि भारत में जीवन को चलाने के लिए गर्म गर्मियां या प्रचंड रूप से चमकता सूर्य जरूरी है। यहां तक कि आईएमडी के चिन्ह में भी संस्कृत में लिखा है, 'आदित्यात जयते वृष्टि'। इसका अर्थ है कि बारिश सूर्य से आती है। वर्षा रितु में अच्छी बारिश होना प्रचुर कृषि और प्रचुर भोजन के लिए महत्वपूर्ण है।

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पल्लव बाग्ला