जब राष्ट्रगान नहीं गाने की ज़िद पर अड़े परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में जीती थी लड़ाई

जब राष्ट्रगान नहीं गाने की ज़िद पर अड़े परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में जीती थी लड़ाई

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह एक अहम आदेश में देश के सभी सिनेमाघरों में राष्ट्रीय गान बजाए जाने तथा उस दौरान सिनेमाहॉल में मौजूद सभी लोगों के सावधान की मुद्रा में खड़े होने को अनिवार्य कर दिया था, लेकिन हमारे देश में एक ऐसा परिवार भी है, जो राष्ट्रीय गान नहीं गाने के अपने फैसले पर अड़ा रहा, कानूनी लड़ाई लड़ी, और आखिरकार इसी सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा जीता भी था.

अंग्रेज़ी दैनिक 'इंडियन एक्सप्रेस' के ऑनलाइन एडिशन में प्रकाशित समाचार के अनुसार, केरल के इमानुएल परिवार के तीन बच्चे वर्ष 1985 में कोट्टायम जिले के एनएसएस हाईस्कूल में पढ़ते थे, और उन्हें स्कूल के बाकी बच्चों के साथ राष्ट्रीय गान नहीं गाने की वजह से स्कूल से सस्पेंड कर दिया गया था. परिवार के मुखिया और अब कॉलेज के रिटायर्ड प्रोफेसर वीजे इमानुएल उस वक्त पाला के निकट बसे एक गांव में रहा करते थे, और उनके कुल सात बच्चों में से तीन बीजू (15), बीनू (14) तथा बिंदु (10) ही उस स्कूल में पढ़ा करते थे. समाचारपत्र की रिपोर्ट के अनुसार, बाद में परिवार ने स्कूल के खिलाफ केस तो जीत लिया, लेकिन फिर उसके बाद सिर्फ एक दिन स्कूल जाकर पढ़ाई छोड़ देने का फैसला कर लिया था.

'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक, वीजे इमानुएल का सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले को लेकर कहना है कि उन्हें इस आदेश से कोई परेशानी नहीं है. उन्होंने कहा, "हम लोग राष्ट्रीय गान के सम्मान में खड़े होते ही हैं... हमें इससे कोई परेशानी नहीं... वैसे भी, सिर्फ तब ही गाना है, जब सिनेमाहॉल में जाएंगे..."

रिपोर्ट के अनुसार, इमानुएल का परिवार जेहोवा'ज़ विटनेसेज़ संप्रदाय से ताल्लुक रखता है, और अपने 'गॉड' जेहोवा के अलावा किसी की प्रार्थना करने के लिए तैयार नहीं था. स्कूल में उन दिनों इमानुएल परिवार के तीनों बच्चों के अलावा जेहोवा'ज़ विटनेसेज़ संप्रदाय से जुड़े आठ और भी बच्चे थे, और वे भी राष्ट्रीय गान के सम्मान में सिर्फ खड़े होते थे, लेकिन उसे गाते नहीं थे. इसे लेकर स्कूल में शिकायतें होने लगीं, और 25 जुलाई, 1985 को इमानुएल परिवार के तीनों बच्चों और बाकी आठ को भी स्कूल से निकाल दिया गया.

इसके बाद इस मुद्दे पर हंगामा बढ़ गया, और कांग्रेस विधायक वीसी कबीर ने इसे राज्य विधानसभा में उठाया. इसके बाद शिक्षामंत्री टीएम जैकब ने भी इसकी शिकायत की, और यूडीएफ की राज्य सरकार ने एक-सदस्यीय जांच कमेटी बना दी. कमेटी की रिपोर्ट में यह साबित नहीं हो पाया कि बच्चों ने राष्ट्रीय गान का अपमान किया है, लेकिन कहा गया कि बच्चों को लिखित में देना होगा कि वे आगे से राष्ट्रगान गाएंगे.

इमानुएल इसके लिए तैयार नहीं हुए, और उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन वहां दो बार उनकी अर्ज़ी को ठुकरा दिया गया, सो, वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. अगले ही साल वर्ष 1986 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय उनके पक्ष में सुना दिया. कोर्ट ने कहा था, "हम कह सकते हैं कि ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि राष्ट्रीय गान बजने के दौरान उसे गाना ज़रूरी है... अगर कोई उसके सम्मान में खड़ा हो जाता है, तो पर्याप्त है..."

'इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बच्चों को स्कूल में फिर दाखिला मिल गया, लेकिन किसी भी बच्चे की इच्छा स्कूल जाने की नहीं रही थी, सो, वे सिर्फ एक दिन स्कूल गए और फिर स्कूल जाना ही छोड़ दिया.

गौरतलब है कि अब इमानुएल दादा बन चुके हैं, और उनके आठ पोता-पोती हैं, जो अलग-अलग स्कूलों में पढ़ते हैं, लेकिन आज तक उनमें से कोई भी बच्चा राष्ट्रीय गान को गाता नहीं है. इमानुएल ने 'इंडियन एक्सप्रेस' को बताया कि उन्होंने बच्चों को दाखिला दिलवाने से पहले ही स्कूल प्रशासन को सारी पुरानी बातें और कोर्ट का आदेश दिखा दिया था, जिसकी बदौलत अब तक कोई परेशानी नहीं हुई है.


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