सीपीएम के नए महासचिव येचुरी के आगे मुश्किलें हज़ार

विशाखापट्टनम:

लंबे समय तक प्रकाश करात के कॉमरेड रहे सीताराम येचुरी ने आखिरकार उनसे पार्टी की कमान संभाल ली, लेकिन उनके आगे दिक्कतें हज़ार हैं। सीपीएम ने महासचिव बनते ही बदलाव के संकेत दिए और कहा कि उनकी पार्टी की प्राथमिकता हिंदी पट्टी में पैर जमाना है और इसके लिए वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से भी वह नहीं चूकेगी।

पार्टी के इस सम्मेलन के दौरान सीपीएम ट्विटर पर काफी सक्रिय रही और येचुरी के महासचिव बनने की पहली औपचारिक घोषणा ट्विटर पर ही हुई। येचुरी ने कहा, 'हमारा काम नरेंद्र मोदी की तरह फॉलोवर जुटाना नहीं, बल्कि लोगों तक इंटरनेट के फायदे पहुंचाना है। इसीलिए सीपीएम ने नेट न्यूट्रेलिटी पर सबसे पहले अपना पक्ष साफ करते हुए उपभोक्ता के पक्ष में अपना रुख जाहिर किया।'


येचुरी के महासचिव बनने के बाद पार्टी ने विशाखापट्टनम के रामकृष्ण बीच पर बड़ी जनसभा की, जिसमें येचुरी ने मोदी सरकार पर करारा हमला करते हुए कहा कि आज बीजेपी सांप्रदायिकता और बाज़ारवाद की नीतियों के साथ आम जनता पर हमला कर रही है और हमें इसका मुकाबला करना है।

येचुरी को अपने साथी करात से ज्यादा उदार माना जाता है, लेकिन उन्होंने कहा कि पार्टी धर्मनिरपेक्षता और बाज़ार से जुड़ी नीतियों पर कोई समझौता नहीं करेगी।

सीताराम येचुरी के महासचिव बनने से पहले पार्टी के महासम्मेलन में तनाव के क्षण रहे और खासा सस्पेंस बना रहा। सूत्रों के मुताबिक, सीपीएम के वरिष्ठ नेता एस रामचंद्रन पिल्लई के पक्ष में केरल के पोलित ब्यूरो सदस्यों ने ज़ोर दिया, लेकिन बंगाल के बुजुर्ग नेता विमान बोस और दूसरे साथियों ने येचुरी का समर्थन किया, जिसको नकारना मुमकिन नहीं था। जिसके बाद नई सेंट्रल कमेटी में खुद प्रकाश करात ने ही येचुरी के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसका पिल्लई ने अनुमोदन किया।

अब येचुरी की राह आसान नहीं है। उनकी पार्टी की नैया मंझधार में है। वह कहते हैं कि पहली चुनौती बंगाल में खोया जनाधार वापस पाना होगी।

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सीपीएम ने पार्टी में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव भी किए हैं। पोलित ब्यूरो में वृंदा करात के अलावा सुभाषिनी अली को भी शामिल किया गया है। बंगाल से सांसद मोहम्मद सलीम  और किसान सभा के हन्नान मुल्ला को पोलित ब्यूरो में लाने से दो मुस्लिम चेहरे भी जुड़ गये हैं। येचुरी की असली परीक्षा अगले साल होने वाले केरल और बंगाल के चुनाव हैं।