विश्वविद्यालयों को खुली अभिव्यक्ति और वाद-विवाद का केंद्र होना चाहिए : राष्ट्रपति

विश्वविद्यालयों को खुली अभिव्यक्ति और वाद-विवाद का केंद्र होना चाहिए : राष्ट्रपति

नालंदा विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करते राष्ट्रपति

खास बातें

  • विश्वविद्यालय ऐसा अखाड़ा हों जहां विविध विचारों में मुकाबला हो
  • वाद-विवाद और परिचर्चा भारतीय जीवन का स्वभाव और इसका हिस्सा है
  • भारत ने उच्च-शिक्षा संस्थाओं के जरिए सहयोग और परिचर्चाओं के संदेश दिए हैं
नालंदा:

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि विश्वविद्यालयों और उच्च-शिक्षा संस्थाओं को खुली अभिव्यक्ति का केंद्र होना चाहिए और वहां वाद-विवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

नालंदा विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह विश्वविद्यालय उस विचार और संस्कृति को दर्शाता है जो 13वीं सदी में नष्ट होने से पहले के 1,200 साल तक फलती-फूलती रही. उन्होंने कहा कि इन वर्षों में भारत ने उच्च-शिक्षा संस्थाओं के जरिए मैत्री, सहयोग, वाद-विवाद और परिचर्चाओं के संदेश दिए हैं.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘डॉ. अमर्त्य सेन ने अपनी किताब ‘दि आरग्यूमेंटेटिव इंडियन’ में सही लिखा है कि वाद-विवाद और परिचर्चा भारतीय जीवन का स्वभाव और इसका हिस्सा है जिससे दूरी नहीं बनाई जा सकती.’’ उन्होंने कहा, ‘‘विश्वविद्यालय और उच्च-शिक्षा संस्थान वाद-विवाद, परिचर्चा, विचारों के निर्बाध आदान-प्रदान के सर्वोत्तम मंच हैं... ऐसे माहौल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.’’

राष्ट्रपति ने कहा कि आधुनिक नालंदा को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी परिसीमा में इस महान परंपरा को नया जीवन और नया ओज मिले. उन्होंने कहा, ‘‘विश्वविद्यालयों को खुले भाषण एवं अभिव्यक्ति का केंद्र होना चाहिए. इसे ऐसा अखाड़ा होना चाहिए जहां विविध एवं विपरीत विचारों में मुकाबला हो. इस संस्था के दायरे में असहनशीलता, पूर्वाग्रह एवं घृणा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. और तो और, इसे बहुत सारे नजरियों, विचारों और दर्शनों के सह-अस्तित्व के ध्वजवाहक का काम करना चाहिए.’’ राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय से पास होने वाले छात्रों से कहा कि वे ‘‘दिमाग की सभी संकीर्णता और संकुचित सोच’’ को पीछे छोड़कर जीवन में प्रगति करें.

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष विश्वविद्यालय के नए परिसर के पास ही स्थित हैं. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना संबंधी सहमति-पत्र पर पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) में भागीदारी करने वाले 13 देशों और चार गैर-ईएएस सदस्यों ने दस्तखत किए हैं. नालंदा विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक महत्व का जिक्र करते हुए प्रणब ने कहा कि यह भारतीय, फारसी, यूनानी और चीनी संस्कृतियों का मिलन-स्थल था.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘प्राचीन नालंदा वाद-विवाद एवं परिचर्चा के उच्च-स्तर के लिए जाना जाता था. यूं तो अध्ययन के मुख्य विषय बौद्ध ग्रंथ थे, लेकिन विभिन्न स्कूलों, वेद अध्ययन एवं अन्य द्वारा बौद्ध धर्म की आलोचना को भी अहमियत दी गई.’’ प्रणब ने दीक्षांत समारोह में दो छात्रों को गोल्ड मेडल और 12 पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों को डिग्रियां दी. उन्होंने राजगीर में 455 एकड़ में फैले इस विश्वविद्यालय के स्थायी परिसर की आधारशिला भी रखी.

‘‘हरित प्रौद्योगिकी’’ से इस विश्वविद्यालय परिसर का निर्माण किया जाएगा. प्रणब ने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि नांलदा विश्वविद्यालय नेट जीरो ऊर्जा, जीरो उत्सर्जन, जीरो पानी और जीरो कचरा परिसर बनने के लिए प्रयासरत है, जो भारत में ऐसा पहला परिसर होगा. साल 2013 में ही नेट जीरो ऊर्जा का लक्ष्य तय कर विश्वविद्यालय ने अपनी ऐतिहासिक विरासत को पर्यावरणीय स्थायित्व के अत्यावश्यक समकालीन मुद्दों से जोड़ने की कोशिश की है.’’

अभी इस विश्वविद्यालय की कक्षाएं राजगीर बस पड़ाव के पास एक अस्थायी परिसर में चलाई जा रही हैं. इस विश्वविद्यालय में अभी स्कूल ऑफ हिस्टॉरिकल स्टडीज, स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एन्वायरॉमेंट स्टडीज और स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज, फिलोसॉफी एंड कम्पैरेटिव रिलीजन्स संचालित किए जा रहे हैं.

इससे पहले, इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि राज्य सरकार विश्वविद्यालय को सभी सहायता देना जारी रखेगी. नीतीश ने कहा कि 2006 में जब पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने बिहार विधानसभा के एक संयुक्त सत्र को संबोधित किया था तो उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि नालंदा विश्वविद्यालय फिर से शुरू किया जाना चाहिए. इसके बाद जमीन चिह्नित की गई और एक विधेयक तैयार किया गया.

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रणब मुखर्जी ने इस परियोजना में काफी दिलचस्पी ली और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान इसकी घोषणा की जिसके बाद दक्षिण पूर्व एशियाई देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया जाहिर की. केंद्र की ओर से परियोजना पर काम शुरू करने के बाद राज्य सरकार ने एक कानून रद्द किया और उसे वह जमीन सौंप दी जिसे इस परियोजना के लिए अधिगृहीत किया गया था.

बहरहाल, नीतीश ने विश्वविद्यालय के परिसर के निर्माण में हो रही देरी पर रोष जाहिर किया. नीतीश ने कहा, ‘‘सुषमा स्वराज जी को आज आना था, लेकिन वह नहीं आ सकीं. वरना, मैंने उनसे पूछा होता कि परिसर का भवन कब बनकर तैयार होगा. सचिव (पूर्व) ने मुझे आश्वस्त किया है कि तीन साल के भीतर इसका निर्माण किया जाना चाहिए.’’

उन्होंने कहा कि यूनेस्को के अधिकारियों ने नालंदा के अवशेषों को विश्व धरोहर स्थल घोषित करने में ‘‘हिचकिचाहट दिखाई’’ और कहा कि भारत की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों से इसे सूची में जगह मिली. नीतीश ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि अगर हजारों साल पुराने अवशेष को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल नहीं किया जाएगा तो किसे किया जाएगा. डेस्क के काम में शामिल कुछ अधिकारियों को समस्याएं थीं, लेकिन केंद्र एवं राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के प्रयासों से समस्याएं सुलझाई गईं.’’

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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